राष्ट्रीय झंडा दिवस विशेष: भारतीय झंडा का इतिहास , निर्माण और फहराने संबधी नियम
टेन न्यूज नेटवर्क
New Delhi News (22/07/2025): भारत का राष्ट्रीय ध्वज जिसे हम श्रद्धा से ‘तिरंगा’ कहते हैं, न केवल एक ध्वज है, बल्कि यह उस आज़ाद भारत का प्रतीक है, जिसकी नींव बलिदान, त्याग और राष्ट्रीय एकता पर टिकी हुई है। इसकी स्वीकृति 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा द्वारा की गई थी, जबकि 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता की सुबह यह पहली बार आधिकारिक रूप से लहराया गया। इस ध्वज का स्वरूप तीन क्षैतिज पट्टियों वाला है। ऊपर केसरिया, मध्य में सफेद जिसमें गहरे नीले रंग का अशोक चक्र होता है और नीचे गहरा हरा रंग। इस ध्वज को पिंगली वेंकैया ने डिज़ाइन किया था, जिनकी कल्पना एक ऐसे प्रतीक की थी जो भारत की विविधता और अखंडता दोनों को समाहित कर सके।
तीन रंगों की गहराई और उनका अर्थ
तिरंगे के तीन रंग अपने आप में गहरे अर्थ समेटे हुए हैं। केसरिया रंग देश की शक्ति और साहस का प्रतीक है, श्वेत रंग शांति और सत्य का, जबकि हरा रंग समृद्धि, उर्वरता और विकास का प्रतीक है। सफेद पट्टी के बीच में स्थित नीला अशोक चक्र धर्म, गति और प्रगति का प्रतीक है, जिसके 24 आरे दिन के 24 घंटों और सतत गतिशीलता का प्रतीक माने जाते हैं। यह चक्र सम्राट अशोक के सारनाथ स्थित स्तंभ से प्रेरित है, जो भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धांत ‘धर्म’ का प्रतिनिधित्व करता है।
खादी: झंडे की आत्मा और स्वदेशी प्रतीक
भारत के ध्वज निर्माण की प्रक्रिया भी उतनी ही अद्वितीय और गौरवशाली है जितनी इसकी प्रतीकात्मकता। भारतीय ध्वज केवल ‘खादी’ नामक कपड़े से ही बनाया जा सकता है, जो महात्मा गांधी द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में आत्मनिर्भरता का प्रतीक बना। खादी से बना यह ध्वज दो प्रकार की बुनाई से तैयार होता है—एक जिससे कपड़ा बनता है और दूसरा खादी टाट, जो खंभे से जोड़ने में प्रयोग होता है। इस खादी की बुनाई अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है और पूरे भारत में इसे जानने वाले कारीगरों की संख्या बहुत सीमित है।
हुबली: राष्ट्रध्वज निर्माण की आधिकारिक इकाई
वर्तमान में कर्नाटक के हुबली में स्थित ‘खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ’ भारत का एकमात्र लाइसेंस प्राप्त संस्थान है जो राष्ट्रीय ध्वज का उत्पादन करता है। झंडे के निर्माण से पहले कपड़े को गदग और बागलकोट जैसे क्षेत्रों में बुना जाता है, फिर उसे बीआईएस यानी भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा कई चरणों में गुणवत्ता परीक्षण से गुज़ारा जाता है। तीनों रंगों की डाई प्रक्रिया के बाद सफेद पट्टी के बीच में अशोक चक्र को या तो कढ़ाई किया जाता है या स्टेंसिल से छापा जाता है। इसके बाद इसे फिर से परीक्षण के लिए भेजा जाता है, तभी यह ध्वज फहराने योग्य समझा जाता है।
तिरंगे का ऐतिहासिक विकास और स्वीकृति
भारत के तिरंगे का इतिहास सिर्फ 1947 में शुरू नहीं होता, बल्कि इसके पीछे दशकों की क्रांतिकारी चेतना और भावनात्मक संघर्ष छिपा है। सबसे पहला प्रस्तावित झंडा 1904 में भगिनी निवेदिता द्वारा तैयार किया गया था। इसके बाद 1906 में कोलकाता के पारसी बागान चौक में पहला चित्रित झंडा फहराया गया। 1907 में पेरिस में मैडम कामा द्वारा दूसरा झंडा फहराया गया और 1917 में एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने तीसरा चित्रित झंडा प्रस्तुत किया जिसमें यूनियन जैक, अर्धचंद्र और सप्तऋषियों को दर्शाते तारे थे।
चरखे से चक्र तक: गांधी जी का योगदान
1921 में गांधी जी को विजयवाड़ा में पिंगली वेंकैया द्वारा जो झंडा दिया गया, उसमें पहली बार चरखे को स्थान दिया गया। इसमें लाल और हरे रंग हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। बाद में इसमें सफेद रंग जोड़ा गया और यह झंडा कांग्रेस के सत्रों में प्रयुक्त होने लगा। वर्ष 1931 में पहली बार इस झंडे को ‘राष्ट्रीय ध्वज’ का दर्जा मिला, जो केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ केंद्र में चरखे वाला था। अंततः 22 जुलाई 1947 को इसी झंडे को संशोधित कर चरखे की जगह अशोक चक्र को शामिल किया गया और यह स्वतंत्र भारत का आधिकारिक ध्वज बन गया।
ध्वज संहिता: सम्मान और अनुशासन का विधान
ध्वज संहिता 2002 के अनुसार अब कोई भी भारतीय नागरिक अपने घर, कार्यालय या संस्थान में तिरंगा फहरा सकता है, बशर्ते कि वह इसके सम्मान से जुड़े नियमों का पालन करे। झंडे को सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराना चाहिए और इसे कभी भी भूमि, पानी या फर्श पर नहीं गिराना चाहिए। यह झंडा किसी भी अन्य झंडे से ऊंचा नहीं हो सकता और न ही इसे वस्त्र, पर्दे या मेज़पोश के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
फहराने की विधि और अनिवार्य नियम
झंडा फहराते समय कुछ विशिष्ट नियमों का पालन अनिवार्य होता है, जैसे दो झंडे एक साथ फहराने पर भारतीय झंडा दर्शकों की दृष्टि से बाईं ओर और अन्य झंडा दाईं ओर होना चाहिए। अगर एक ही खंभे पर दो झंडे फहराए जा रहे हों तो भारतीय झंडा सबसे ऊपर होना चाहिए। यदि यह मंच या दीवार पर लगाया जा रहा हो तो केसरिया रंग हमेशा ऊपर की ओर होना चाहिए। किसी भी स्थिति में झंडे को उल्टा नहीं फहराया जा सकता।
मानक आकार, रंग कोड और गुणवत्ता नियम
ध्वज निर्माण के लिए नौ मानक आकार तय किए गए हैं जिनमें सबसे बड़ा आकार 6300×4200 मिमी होता है और सबसे छोटा 150×100 मिमी। इनका अनुपात सदैव 3:2 होना चाहिए। इसके प्रत्येक रंग के लिए निश्चित Pantone कोड और CMYK मानक हैं ताकि रंगों की शुद्धता में कोई अंतर न आए। अशोक चक्र का व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है, जिससे उसकी दृश्य स्पष्टता बनी रहे।
भावनात्मक जुड़ाव और कानूनी अधिकार
भारत का तिरंगा न केवल राष्ट्रीय गौरव और स्वतंत्रता का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, लोकतंत्र और विविधता में एकता की भावना को भी सुदृढ़ करता है। इसे गलत रूप में उपयोग करने पर कानूनन सज़ा का प्रावधान है। झंडे को अपमानित करना या उसके मानकों का उल्लंघन करना भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अपराध माना जाता है। इसे केवल श्रद्धा और सम्मान के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए।
झंडे के प्रयोग पर प्रतिबंध और मर्यादा
ध्वज के प्रयोग से जुड़े नियमों में यह भी कहा गया है कि यह झंडा कभी भी किसी मूर्ति को ढकने, किसी शव के अलावा किसी अन्य वस्तु को लपेटने या प्रचार सामग्रियों पर छपाई के लिए नहीं प्रयोग किया जा सकता। 2005 तक इसे पोशाक के रूप में भी उपयोग नहीं किया जा सकता था, लेकिन अब संशोधन के बाद यह अनुमति प्राप्त है, बशर्ते इसका उपयोग मर्यादा में हो और यह जांघिये या नीचे के वस्त्र के रूप में न किया जाए।
ध्वज का संभालना और फहराने की परंपरा
झंडे की गरिमा को बनाए रखने के लिए उसके फहराने और उतारने की विधि, भंडारण की स्थिति, और झंडे की बुनावट सब कुछ अत्यंत अनुशासित और नियंत्रित होते हैं। तिरंगा केवल एक कपड़ा नहीं, बल्कि एक भावनात्मक प्रतीक है जो भारत के नागरिकों की उम्मीदों, संघर्षों और एक समृद्ध भविष्य की आकांक्षाओं को साकार करता है। यह प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का प्रतीक है।
नवीन जिंदल का संघर्ष और ऐतिहासिक निर्णय
इस ध्वज के सम्मान की भावना इतनी गहराई से जुड़ी है कि उद्योगपति नवीन जिंदल ने इसके सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी थी। 2002 में उच्च न्यायालय के निर्णय और केंद्र सरकार की स्वीकृति के बाद भारतीय नागरिकों को हर दिन इसे फहराने की अनुमति दी गई, बशर्ते वे उसकी गरिमा का पालन करें। यह निर्णय तिरंगे को जनता के और करीब ले आया और देशभक्ति की भावना को और सशक्त किया।
अंतरराष्ट्रीय फलक पर तिरंगे का स्थान
जब भारतीय झंडा अन्य देशों के झंडों के साथ फहराया जाता है, तो विशेष प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है। भारतीय झंडा सबसे पहले फहराया जाता है और सबसे बाद में उतारा जाता है। यह दर्शाता है कि तिरंगा केवल राष्ट्रीय नहीं, अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत की गरिमा, संप्रभुता और आत्मगौरव का प्रतीक है। इसके साथ अन्य झंडों को कभी भी एक ही पोल पर नहीं फहराया जा सकता।
तिरंगा: भारतीय चेतना की पहचान
आज का तिरंगा केवल इतिहास नहीं है, यह वर्तमान की चेतना और भविष्य की प्रेरणा है। जब यह लहराता है तो यह हर भारतीय के भीतर राष्ट्र के लिए प्रेम, आत्मबलिदान और अखंडता की भावना को जगाता है। यह तिरंगा उस सपने का प्रतीक है, जो आज़ादी के दीवानों ने देखा था और जिसकी रक्षा की ज़िम्मेदारी आज हम सब की है। भारत का तिरंगा एक जीवित प्रतीक है सम्मान, गरिमा और एकता का अविनाशी चिह्न।।
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