जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का ज्ञापन, 145 सांसदों ने किया समर्थन

टेन न्यूज चैनल

New Delhi News (21/07/2025): कैश कांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा (Yashwant Verma) के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया ने जोर पकड़ लिया है। सोमवार को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला (Om Birla) और राज्यसभा चेयरमैन जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) को 145 सांसदों के हस्ताक्षर वाला पत्र सौंपा गया, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की सिफारिश की गई है। इस पत्र पर कई प्रमुख विपक्षी नेताओं के साथ-साथ सत्ता पक्ष के कुछ सांसदों के भी हस्ताक्षर हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस मुद्दे पर राजनीतिक सहमति बनती दिख रही है।

दोपहर दो बजे विपक्षी दलों के नेताओं ने औपचारिक रूप से लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से मुलाकात कर हस्ताक्षरित पत्र सौंपा। इसके साथ ही राज्यसभा के लिए भी समान पत्र राज्यसभा चेयरमैन को सौंपा गया है। संसदीय परंपराओं के अनुसार, महाभियोग प्रक्रिया की शुरुआत तभी हो सकती है जब संसद के दोनों सदनों में पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो और प्रारंभिक स्तर पर जांच की सिफारिश हो चुकी हो।

इससे पहले, रविवार को संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने जानकारी दी थी कि 100 से अधिक सांसद पहले ही इस प्रस्ताव के समर्थन में हस्ताक्षर कर चुके हैं और संख्या लगातार बढ़ रही है। रिजिजू ने कहा था कि चूंकि यह संवैधानिक प्रक्रिया है, इसलिए इसे सरकार अकेले शुरू नहीं कर सकती, इसके लिए सभी दलों की सहमति और सहयोग आवश्यक है। अब जबकि संख्या 145 तक पहुंच गई है, यह स्पष्ट संकेत है कि संसद में यह मुद्दा गंभीरता से उठने जा रहा है।

महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन करने वालों में कांग्रेस, टीडीपी, जेडीयू, जेडीएस, जनसेना पार्टी, सीपीएम और शिवसेना जैसे दलों के सांसद शामिल हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सुप्रिया सुले, केसी वेणुगोपाल और भाजपा के अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी और पीपी चौधरी जैसे वरिष्ठ नेताओं के नाम भी इस पत्र में शामिल हैं। इससे यह भी साफ है कि यह केवल विपक्ष की पहल नहीं, बल्कि व्यापक राजनीतिक समर्थन वाला मामला बन चुका है।

इस बीच, जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर खुद पर लगे आरोपों और प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित इन-हाउस पैनल की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए कहा है कि पैनल को ऐसी सिफारिश करने का अधिकार नहीं है। साथ ही, उन्होंने यह भी दावा किया है कि उनके खिलाफ कोई औपचारिक शिकायत नहीं दी गई और जांच प्रक्रिया के दौरान उन्हें अपनी बात कहने का अवसर भी नहीं दिया गया।

महाभियोग प्रस्ताव की दिशा में यह घटनाक्रम न्यायपालिका और विधायिका के बीच संवैधानिक संतुलन की गंभीर परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है। यदि प्रस्ताव आगे बढ़ता है तो यह देश के इतिहास में दुर्लभ अवसरों में से एक होगा जब किसी उच्च न्यायिक अधिकारी के खिलाफ संसद में औपचारिक रूप से महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि संसद, न्यायपालिका और राजनीतिक दल इस संवेदनशील मसले को किस दिशा में ले जाते हैं।।


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