कॉरपोरेट निवेश में मंदी: माँग की सुस्ती और ढाँचागत चुनौतियों ने रोकी रफ्तार | डिजिटोरियल
रंजन अभिषेक (टेन न्यूज नेटवर्क)
New Delhi News (18/07/2025): सरकार द्वारा लगातार कर रियायतें, बुनियादी ढाँचे में निवेश और औद्योगिक विकास योजनाओं के बावजूद, भारत में कॉरपोरेट निवेश की रफ्तार सुस्त बनी हुई है। जून 2025 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) की वृद्धि दर गिरकर 1.2% पर आ गई—जो पिछले नौ महीनों में सबसे कम है। इससे न केवल औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट दर्ज की गई, बल्कि देश की विकास दर और रोज़गार सृजन की संभावनाओं पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों के अनुसार, कॉरपोरेट निवेश में गिरावट के पीछे सबसे बड़ा कारण है उपभोक्ता मांग में कमी। 2019 में कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के बावजूद, मुनाफा बढ़ने के बाद भी कंपनियाँ विस्तार से बच रही हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 बताता है कि जहाँ कंपनियों के लाभ में वृद्धि हुई है, वहीं मशीनरी में सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) चार वर्षों में केवल 35% बढ़ा है। इसके साथ ही नियुक्तियाँ और वेतन वृद्धि भी कम बनी हुई हैं, जिससे मांग और निवेश के बीच असंतुलन बना हुआ है।
भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने ब्याज दरों में कटौती और तरलता में ढील जैसे उपाय किए हैं, लेकिन कमजोर मांग के चलते कंपनियाँ कर्ज लेने से बच रही हैं। कंपनियाँ पहले से मौजूद परिसंपत्तियों का उपयोग अधिक कुशलता से कर रही हैं और नई क्षमता जोड़ने से परहेज कर रही हैं। परिणामस्वरूप, कॉरपोरेट निवेश का जीडीपी में अनुपात घटकर वित्त वर्ष 2022-23 में 12% रह गया, जो विकास के स्वर्णिम वर्षों (2004-2008) में 16% था।
सरकारी पूंजीगत व्यय में तेज़ी आई है, वित्त वर्ष 2025-26 में 11.21 लाख करोड़ रुपये का आवंटन (GDP का 3.1%) किया गया है। फिर भी, निजी निवेश की रफ्तार नहीं बढ़ी। परियोजनाओं की लंबी समय-सीमा, मशीन-प्रधान अवसंरचना के चलते कम रोजगार सृजन और भारी आयात निर्भरता इसके प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा, अवसंरचना क्षेत्र में ऋण वितरण में देरी, विशेषकर बड़े प्रोजेक्ट्स में 2-3 साल तक लगना, निवेश के उत्साह को ठंडा कर देता है। नवंबर 2023 में इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को दिया गया ऋण मात्र 2.1% की दर से बढ़ा, जो पिछले साल 11.1% था। इसके विपरीत, वैयक्तिक ऋणों में 30.1% की वृद्धि हुई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उद्योग क्षेत्र की तुलना में घरेलू मांग तो है, पर निवेश नहीं।
वैश्विक स्तर पर स्थिति चुनौतीपूर्ण
वैश्विक स्तर पर भी स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। संरक्षणवादी नीतियों और टैरिफ से निर्यात आधारित निवेश को झटका लगा है। ऐसे में निवेश-लाभ संबंध पर विचार आवश्यक हो गया है। अर्थशास्त्री टुगान बारानोव्स्की ने कहा था कि निवेश स्वयं मांग उत्पन्न कर सकता है, जबकि कालेकी का मत था कि मांग के बिना निवेश नहीं हो सकता। मौजूदा परिस्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था “कम मांग–कम निवेश” के दुष्चक्र में फँसी प्रतीत होती है।
सरकार द्वारा कई अहम योजनाएं लागू
सरकार ने निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ लागू की हैं जैसे मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, पीएम गतिशक्ति, राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम, PLI योजनाएँ, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस सुधार, राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (NSWS), और इंडिया इंडस्ट्रियल लैंड बैंक जैसी पहलें। 90% से अधिक FDI प्रवाह अब स्वचालित मार्ग से आ रहा है, जिससे लालफीताशाही में कमी आई है। फिर भी, इन प्रयासों के प्रभावी परिणाम के लिए समग्र नीति दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि निवेश को स्थायी रूप से पुनर्जीवित करने के लिए समग्र माँग बढ़ाना अनिवार्य है। सामाजिक क्षेत्र पर व्यय, MGNREGA जैसी ग्रामीण रोजगार योजनाएँ और लक्षित नकद हस्तांतरण घरेलू खपत को बढ़ा सकते हैं। साथ ही, भूमि लागत में पारदर्शिता, बेहतर उपयोग नीति, और प्रतिस्पर्धा आधारित सुधार ज़रूरी हैं। निजी निवेश का जोखिम कम करने के लिए दीर्घकालिक वित्तीय प्रोत्साहन और ग्रीनफील्ड निवेशों के लिए VGF जैसी योजनाएँ लागू की जानी चाहिए।
क्या है समाधान
भारत को चाहिए कि वह ग्रीन कैपेक्स, नेट-ज़ीरो, और सर्कुलर इकोनॉमी जैसे सतत् विकास क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करे। साथ ही, PLI योजनाओं को केवल उत्पादन से नहीं, बल्कि रोज़गार और नवाचार से भी जोड़ा जाए। मिशन-आधारित रणनीतियों से रक्षा, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर और EV जैसे उभरते क्षेत्रों में दीर्घकालिक निवेश को बढ़ावा दिया जा सकता है।
अंततः, भारत की जनसांख्यिकीय बढ़त और वैश्विक पुनर्संरेखण की पृष्ठभूमि में यह एक ऐतिहासिक अवसर है, जहाँ माँग-सृजन, ढाँचागत सुधार, वित्तीय स्थिरता और संस्थागत विश्वास के समेकित प्रयासों से कॉरपोरेट निवेश की नई लहर लाई जा सकती है। केवल कर-रियायतों या ब्याज दरों से निवेश नहीं बढ़ेगा; इसके लिए ज़मीनी सुधार और समावेशी रणनीति जरूरी है।।
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