स्वास्थ्य सेवा में भारत: आयुष्मान आरोग्य मंदिरों से लेकर डिजिटल क्रांति तक | डिजिटोरियल

रंजन अभिषेक टेन न्यूज नेटवर्क

New Delhi (08/07/2025): पिछले 11 वर्षों में भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली (Health Service System) में बुनियादी ढांचे की भारी कमी, संसाधनों की अनुपलब्धता और असमान स्वास्थ्य सुविधाओं से उभरते हुए एक ऐसे युग में प्रवेश किया है, जहाँ सभी नागरिकों के लिये सस्ती, सुलभ और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा साकार होती दिख रही है। इस परिवर्तन की नींव राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) द्वारा रखी गई, जिसके अंतर्गत 1.77 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिरों की स्थापना की गई, और इन मंदिरों को डिजिटल प्लेटफॉर्म (Digital Platforms) से जोड़ते हुए स्वास्थ्य सेवा की पहुँच को लोकतांत्रिक रूप दिया गया। यह बदलाव भारत को सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के अपने लक्ष्य की दिशा में मज़बूती से आगे बढ़ाता है।

भारत की वर्तमान स्वास्थ्य प्रणाली: तीन स्तरों में विभाजित

भारत की वर्तमान स्वास्थ्य प्रणाली तीन स्तरों – प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवा – पर कार्य करती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), उप-केंद्र और स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWC) के माध्यम से बुनियादी सेवाएँ जैसे टीकाकरण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य तथा रोगों की रोकथाम उपलब्ध कराई जाती हैं। द्वितीयक देखभाल में ज़िला अस्पताल एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) शामिल हैं, जबकि तृतीयक देखभाल के अंतर्गत AIIMS और PGIMER जैसे संस्थानों में जटिल सर्जरी, कैंसर उपचार और अंग प्रत्यारोपण जैसी सेवाएँ दी जाती हैं।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग: चिकित्सा शिक्षा और नैतिकता के लिए उत्तरदायी

स्वास्थ्य क्षेत्र में नियामक निकायों की भूमिका भी निर्णायक रही है। CDSCO दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता की निगरानी करता है, वहीं राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) चिकित्सा शिक्षा और नैतिकता के लिए उत्तरदायी है। फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI), IRDAI और NABH जैसे संस्थान इस प्रणाली को और मज़बूत करते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) जैसी पहलें स्वास्थ्य को एक व्यापक और डिजिटल रूप में प्रस्तुत करती हैं।

अब भी कई गंभीर चुनौतियां

हालाँकि, इन प्रगतियों के बावजूद भारत की स्वास्थ्य प्रणाली कई गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है। सबसे प्रमुख है ग्रामीण-शहरी असमानता, जहाँ 68% ग्रामीण आबादी के लिये मात्र 20% स्वास्थ्य-कर्मी उपलब्ध हैं। इसके साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की वहनीयता एक बड़ी बाधा है; 2023 में जेब से खर्च (OOPE) 47.1% रहा, जबकि PM-JAY जैसी योजनाएँ पहले से सक्रिय हैं। सरकारी अस्पतालों की बुनियादी अवसंरचना में सुधार के बावजूद, गुणवत्ता में असंगति बनी हुई है। दवाओं की गुणवत्ता भी चिंता का विषय है – हाल के वर्षों में हज़ारों दवा बैच वापस लिए गए हैं।

गौर संचारी रोगों का बढ़ता बोझ

भारत गैर-संचारी रोगों (NCD) जैसे मधुमेह और हृदय रोगों के बढ़ते बोझ से भी जूझ रहा है, जिससे हर साल लाखों लोगों की जान जाती है। NFHS-5 के अनुसार, अधिक वजन की समस्या भी तेजी से बढ़ रही है। आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के कम उपयोग, डिजिटल पहुँच की सीमाएँ, और स्वास्थ्य बीमा कवरेज की कम पहुँच भी इस क्षेत्र की कमजोरियाँ हैं। निजी स्वास्थ्य क्षेत्र की मनमानी और विनियमन की कमी से इलाज की लागत में भारी वृद्धि होती है।

क्या है समाधान

इन चुनौतियों से निपटने के लिये भारत को कई ठोस उपाय अपनाने होंगे। सबसे पहले, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को एकीकृत मॉडल के तहत सशक्त करना होगा, ताकि HWC आधुनिक उपकरणों और प्रशिक्षित पेशेवरों से सुसज्जित हो सकें। स्वास्थ्य कार्यबल का प्रशिक्षण बढ़ाना, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के लिये CHO की संख्या बढ़ाना भी आवश्यक है। टेलीमेडिसिन और डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसे ई-संजीवनी का विस्तार करके स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच को व्यापक बनाया जा सकता है। इसके साथ ही, PPP मॉडल को बढ़ावा देकर स्वास्थ्य अवसंरचना का विस्तार किया जा सकता है।

भारत को स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को सरल, सुलभ और व्यापक बनाना होगा, जिससे अनौपचारिक क्षेत्र के लोग भी इसका लाभ उठा सकें। निवारक देखभाल पर ज़ोर, जैसे नियमित जांच और जीवनशैली में सुधार लाने वाले जागरूकता अभियान, NCD के बोझ को घटा सकते हैं। सरकारी स्वास्थ्य व्यय को GDP के 2.5% तक बढ़ाने की सिफारिशें बार-बार सामने आई हैं, जो दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के लिये आवश्यक है। निजी स्वास्थ्य सेवाओं को पारदर्शिता, दर निर्धारण और जवाबदेही के स्पष्ट नियमों के अंतर्गत लाना भी अनिवार्य है।

भारत, आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली से जोड़कर एक समग्र स्वास्थ्य दृष्टिकोण विकसित कर सकता है। इसके साथ ही, स्टार्टअप, AI और स्वास्थ्य-तकनीक नवाचारों को बढ़ावा देकर स्वास्थ्य सेवा की पहुँच और गुणवत्ता को बेहतर किया जा सकता है।

अन्य देशों का मॉडल

अन्य देशों से सीखते हुए भारत को UK के NHS मॉडल, ब्राजील के सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, एस्टोनिया के डिजिटल स्वास्थ्य मॉडल, सिंगापुर की PPP नीति, और जापान की निवारक देखभाल प्रणाली जैसे सफल वैश्विक दृष्टिकोणों को अपनी नीतियों में अपनाना चाहिए।

निष्कर्ष

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली एक व्यापक परिवर्तन के दौर में है, जिसमें डिजिटलीकरण, बीमा कवरेज विस्तार, बुनियादी ढाँचे में सुधार और नीतिगत स्थिरता की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि यह परिवर्तन SDG-3 (अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण) तथा वैश्विक महामारी संधि के साथ जुड़कर आगे बढ़ता है, तो भारत एक ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था स्थापित कर सकता है जो सभी के लिये सस्ती, सुलभ, न्यायसंगत और टिकाऊ हो।।


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