डिजीटोरियल | 8 साल में GST का सफर: राजस्व, सुधार और चुनौतियाँ

रंजन अभिषेक (टेन न्यूज नेटवर्क)

New Delhi News (07/07/2025): देश में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) को लागू हुए 1 जुलाई 2025 को आठ वर्ष पूरे हो गए। इस दौरान जीएसटी ने भारत की कर व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाते हुए न केवल राजस्व संग्रहण को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया, बल्कि व्यापारिक सुगमता, डिजिटलीकरण और पारदर्शिता को भी बढ़ावा दिया। लेकिन इसके बावजूद कुछ महत्वपूर्ण सुधार और ढांचागत चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं।

जीएसटी की आठ साल की प्रमुख उपलब्धियाँ

जीएसटी ने राजस्व संग्रह के क्षेत्र में रिकॉर्ड कायम किया है। वित्त वर्ष 2024-25 में मासिक औसत संग्रह ₹1.84 लाख करोड़ रहा, जबकि पूरे वर्ष का सकल संग्रह ₹22.08 लाख करोड़ तक पहुँच गया। इससे चोरी में कमी आई और अर्थव्यवस्था में औपचारिकता बढ़ी।

डिजिटलीकरण के मोर्चे पर ई-इनवॉइसिंग, ई-वे बिल, रियल टाइम क्रेडिट मिलान, और ऑटोमैटिक रिटर्न सिस्टम जैसे डिजिटल टूल्स ने कर अनुपालन को सरल बनाया है। खासकर एमएसएमई सेक्टर के लिए यह एक बड़ा सहारा बनकर उभरा है, जिससे उन्हें ऋण और सरकारी खरीद में सुविधा मिली है।

जीएसटी लागू होने के बाद पंजीकृत करदाताओं की संख्या 65 लाख से बढ़कर 1.51 करोड़ हो चुकी है, जो उद्योगों के औपचारीकरण की ओर इशारा करती है। इसके अलावा ईज़ ऑफ डुइंग बिज़नेस में भी भारत की स्थिति मजबूत हुई है, क्योंकि अंतरराज्यीय कर बाधाएँ समाप्त हुई हैं और चुंगी, प्रवेश शुल्क जैसी जटिलताओं का अंत हुआ है।

जीएसटी के तहत ‘एक राष्ट्र, एक कर’ का सपना साकार हुआ है। कैस्केडिंग टैक्स इफेक्ट यानी एक ही वस्तु पर बार-बार टैक्स लगने की समस्या में कमी आई है और इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) ने व्यापारिक लागत को कम किया है।

वर्तमान ढाँचे की चुनौतियाँ

हालांकि, जीएसटी को लेकर कुछ अहम समस्याएँ भी बनी हुई हैं। अब भी पेट्रोलियम उत्पाद, शराब जैसी उपभोक्ता वस्तुएँ इसके दायरे से बाहर हैं, जिससे दोहरी कर व्यवस्था और ITC की बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।

जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण (GSTAT) की स्थापना में देरी से मामलों के समाधान में विलंब हो रहा है। करदाताओं को उच्च न्यायालयों की शरण लेनी पड़ती है जिससे निर्णय प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

वर्तमान जटिल टैक्स संरचना भी एक प्रमुख चिंता का विषय है। 0.25%, 1%, 3% जैसे अतिरिक्त दरों के अलावा पांच प्रमुख स्लैब (5%, 12%, 18%, 28%) में वस्तुओं को वर्गीकृत करना विवाद का कारण बनता है।

प्रक्रियात्मक दृष्टि से भी जटिल अधिसूचनाएँ, बार-बार बदलाव और मैनुअल इंटरप्रिटेशन व्यापारियों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। मध्यस्थ सेवाओं, इंटर-कंपनी ट्रांजैक्शन और स्टाफ ट्रांसफर पर अस्पष्ट नियम अनुपालन को और कठिन बनाते हैं।

आवश्यक सुधार और भविष्य की राह

विशेषज्ञों का मानना है कि अब चरणबद्ध रूप से पेट्रोलियम और शराब जैसे उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए। इससे कर आधार बढ़ेगा और दोहरी कराधान से राहत मिलेगी।

GSTAT की सभी राज्यों में जल्द स्थापना, AI आधारित जांच प्रणाली, और स्वचालित रिटर्न सिस्टम जैसे उपाय आवश्यक हैं। ICEGATE, DGFT, RBI, और MCA जैसे संस्थानों से GSTN का रियल टाइम डिजिटल इंटीग्रेशन भी जरूरी है।

इसके अतिरिक्त, क्रिप्टोकरेंसी, कार्बन क्रेडिट और डिजिटल गुड्स/सेवाओं को जीएसटी के तहत लाना अगली पीढ़ी के कर सुधार की दिशा में निर्णायक कदम हो सकता है।

8 वर्षों में जीएसटी ने भारत के कर ढाँचे को आधुनिक, डिजिटलीकृत और राजस्व-सक्षम बनाया है। लेकिन सुधार की गति को बनाए रखना जरूरी है ताकि “एक राष्ट्र, एक कर” की परिकल्पना पूर्ण रूप से फलीभूत हो सके। कर सरलीकरण, अपीलीय समाधान, और डिजिटल पारदर्शिता को प्राथमिकता देते हुए भारत अपने $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की ओर तेज़ी से बढ़ सकता है।।


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