Digitorial: महँगाई दर में गिरावट, बेरोज़गारी में वृद्धि: भारत के सामने बड़ी चुनौती!

रंजन अभिषेक (टेन न्यूज नेटवर्क)

नई दिल्ली, (05 जुलाई 2025): भारत में इस वर्ष महँगाई दर घटकर 2.8% पर आ गई है, जो एक आर्थिक उपलब्धि है, लेकिन साथ ही बेरोज़गारी दर 5.1% से बढ़कर 5.8% हो गई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन के बीच गंभीर असंतुलन बना हुआ है। कृषि क्षेत्र की बेहतर स्थिति ने खाद्य महँगाई को नियंत्रण में रखा, लेकिन यह प्रदर्शन व्यापक स्तर पर रोज़गार के अवसर नहीं दे पाया। ऐसे में भारत को न केवल आर्थिक वृद्धि, बल्कि समावेशी रोज़गार सृजन को भी प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

कौशल प्रशिक्षण और बाजार की मांग के बीच अंतर

सरकार के प्रयास और प्रमुख योजनाएँ

बेरोज़गारी से निपटने के लिये भारत सरकार ने कौशल भारत मिशन और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसे कार्यक्रमों के तहत युवाओं को प्रशिक्षित करने पर ज़ोर दिया है। अब तक 1.37 करोड़ से अधिक अभ्यर्थियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है, लेकिन इनमें से केवल 18% को ही रोज़गार मिला, जिससे यह साफ़ है कि कौशल प्रशिक्षण और नौकरी बाज़ार की मांग के बीच अभी भी बड़ा अंतर है।

डिजिटल इंडिया ने ग्रामीण क्षेत्रों को किया मजबूत

मेक इन इंडिया और PIL (उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन) योजनाओं के माध्यम से विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने की कोशिश की गई, जिससे 2017-18 से 2019-20 के बीच रोजगार 57 मिलियन से 62.4 मिलियन तक पहुंचा। इसके साथ-साथ डिजिटल इंडिया और प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान जैसे कदमों ने ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल पहुंच को मजबूत किया, जिससे नागरिकों को ऑनलाइन रोज़गार और सरकारी सेवाओं तक पहुँच मिली।

सरकार ने राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) के तहत 111 लाख करोड़ रुपए निवेश लक्ष्य रखा है, जिससे लाखों नौकरियाँ उत्पन्न करने की संभावना है। बजट 2024-25 में युवा बेरोज़गारी पर ध्यान केंद्रित करते हुए 2 लाख करोड़ रुपए की योजनाएँ लाई गईं, जो पहली बार नौकरी करने वालों को प्रोत्साहन, विनिर्माण क्षेत्र में सहायता और नौकरी की गुणवत्ता सुधारने पर आधारित हैं।

रोज़गार में बाधाएँ: असंतुलन के प्रमुख कारण

हालांकि सरकार ने कई योजनाएँ चलाई हैं, फिर भी कुछ संरचनात्मक समस्याएँ बनी हुई हैं। सबसे प्रमुख चुनौती है पूंजी-प्रधान विकास मॉडल, जिसमें निवेश मशीनों और तकनीक में अधिक हो रहा है जबकि श्रमिकों की ज़रूरत कम होती जा रही है। 2014-23 के बीच पूंजी स्टॉक में 74% वृद्धि हुई, जबकि रोज़गार केवल 36% बढ़ा।

इसके अलावा, भारत के 80-90% श्रमिक अभी भी अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, जहाँ वेतन, सामाजिक सुरक्षा और नौकरी की सुरक्षा का अभाव होता है। PLFS के अनुसार, कुल कार्यबल का 57.3% स्व-नियोजित और 18.3% अवैतनिक पारिवारिक श्रमिक हैं। कौशल विकास के प्रयास भी श्रम बाज़ार की मांगों से मेल नहीं खाते, जिससे कुशल युवाओं के होते हुए भी नौकरियाँ नहीं मिल रही हैं।

विनिर्माण क्षेत्र की धीमी वृद्धि, SME/MSME इकाइयों की अस्थिरता (जिनमें से 25-30% पाँच वर्षों में बंद हो जाती हैं), कृषि क्षेत्र में 45.76% कार्यबल की निर्भरता और सरकारी नौकरियों को लेकर समाज में उच्च आकांक्षाएँ, ये सभी कारण रोज़गार सृजन में बाधा उत्पन्न करते हैं।

क्या है समाधान

रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के उपाय

भारत को अब श्रम-प्रधान विनिर्माण क्षेत्रों जैसे वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण, और लघु उद्योगों को प्राथमिकता देनी चाहिये। SME और MSME इकाइयों को कर प्रोत्साहन और सस्ती पूँजी तक पहुँच दिलाकर बड़े पैमाने पर रोज़गार उत्पन्न किया जा सकता है।

ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने, ऋण और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराने से पलायन रुकेगा और स्थानीय स्तर पर नौकरियाँ उत्पन्न होंगी। शिक्षा और उद्योग के बीच बेहतर समन्वय हेतु पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल अपनाया जाना चाहिये, ताकि पाठ्यक्रम उद्योग की ज़रूरतों के अनुसार हो।

हरित रोजगार, जैसे सौर ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन, और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग को बढ़ावा देकर भारत सतत् विकास और रोज़गार सृजन दोनों लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। साथ ही स्वास्थ्य, तकनीक और निर्माण जैसे क्षेत्रों के लिए उद्योग-विशिष्ट नीतियाँ बनाकर श्रम बाज़ार का विस्तार किया जा सकता है।

श्रम संहिताओं को प्रभावी ढंग से लागू करने से गिग वर्कर्स, संविदा श्रमिकों और अनौपचारिक श्रमिकों को कानूनी और सामाजिक सुरक्षा दी जा सकती है। सार्वजनिक अवसंरचना निवेश, विशेषकर परिवहन और शहरी विकास में, कुशल-अकुशल दोनों प्रकार के श्रमिकों के लिये व्यापक रोज़गार सृजित कर सकता है।

अंततः, भारत को कृषि से गैर-कृषि क्षेत्रों में श्रमिकों के संक्रमण को सहज बनाना होगा। इसके लिये अनुकूलित कौशल प्रशिक्षण, ग्रामीण प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना और कृषि आधारित लघु उद्योगों को समर्थन आवश्यक है।

निष्कर्ष

भारत को यदि अपनी आर्थिक संवृद्धि को सतत और समावेशी बनाना है, तो केवल GDP वृद्धि पर्याप्त नहीं है। ज़रूरत इस बात की है कि यह वृद्धि व्यापक और श्रम-सघन क्षेत्रों में निवेश के ज़रिये अधिक रोज़गार सृजित करने वाली हो। कौशल विकास, हरित रोजगार, ग्रामीण उद्यमिता और औपचारिक रोज़गार को प्राथमिकता देकर ही भारत युवा कार्यबल को रोज़गार की दिशा में सशक्त बना सकता है और आर्थिक समृद्धि के लाभों को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुँचा सकता है।।

 


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