JNU में विदेशी छात्रों के लिए फीस में कटौती: मानविकी में 80% तक राहत

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (01 जुलाई 2025): जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आर्थिक रूप से पिछड़े देशों से आने वाले विदेशी छात्रों के लिए ट्यूशन फीस में भारी कटौती का ऐलान किया है। विश्वविद्यालय प्रशासन का यह कदम वैश्विक शिक्षा को प्रोत्साहन देने और विदेशी छात्रों के नामांकन में तेजी लाने के उद्देश्य से उठाया गया है। खासतौर पर अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों के छात्रों को ध्यान में रखते हुए मानविकी (Humanities) विभाग की फीस में अधिकतम 80% तक की छूट दी गई है। यह निर्णय उन देशों के विद्यार्थियों के लिए राहत लेकर आया है जो संसाधनों की कमी के चलते भारत जैसे देशों में उच्च शिक्षा की ओर देख रहे हैं।

मानविकी और विज्ञान दोनों क्षेत्रों में व्यापक छूट

JNU ने विभिन्न देशों को श्रेणियों में बांटकर फीस संरचना में बदलाव किया है। सार्क देशों के छात्रों के लिए मानविकी पाठ्यक्रमों की सेमेस्टर फीस $700 से घटाकर $200 कर दी गई है, जो कि 71% की कटौती है। वहीं विज्ञान के लिए यह फीस $300 तय की गई है, जो पहले $700 थी – यानी लगभग 57% की कमी। अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी छात्रों को मानविकी कार्यक्रमों के लिए $1,500 की जगह अब केवल $300 देने होंगे और विज्ञान के लिए $1,900 के बदले $400 देने होंगे। इस प्रकार, इन क्षेत्रों के छात्रों को 78-80% तक राहत मिली है, जो भारत में उच्च शिक्षा को सुलभ और आकर्षक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

पश्चिम एशिया और अन्य देशों के लिए भी संशोधित ढांचा

पश्चिम एशिया से आने वाले छात्रों को भी इस संशोधन का लाभ मिला है। अब उन्हें विज्ञान पाठ्यक्रम के लिए $1,900 के स्थान पर $600 और मानविकी के लिए $1,500 की जगह $500 चुकाने होंगे। यह क्रमशः 68% और 66% की फीस कटौती है। इसके अतिरिक्त, अन्य सभी विदेशी छात्रों के लिए विज्ञान पाठ्यक्रमों की फीस $1,900 से घटाकर $1,250 और मानविकी की फीस $1,500 से घटाकर $1,000 कर दी गई है। हालांकि इन छात्रों को अब एक नया $500 का एकमुश्त पंजीकरण शुल्क भी देना होगा, जो पहले नहीं था।

विदेशी छात्रों की घटती संख्या बनी कारण

जेएनयू में विदेशी छात्रों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में चिंताजनक रूप से गिरती गई है। विश्वविद्यालय में 2020-21 में जहां 152 विदेशी छात्र नामांकित थे, वहीं 2021-22 में यह संख्या घटकर 122 रह गई, 2022-23 में 77 और 2023-24 में मात्र 51 छात्र रह गए। विशेषज्ञों का मानना है कि फीस की उच्च दर और प्रतिस्पर्धी वैश्विक शिक्षा बाजार में अन्य विकल्पों की उपलब्धता के कारण छात्र जेएनयू को प्राथमिकता नहीं दे रहे थे। इसी को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय ने यह रणनीतिक बदलाव लागू किया है ताकि वह फिर से विदेशी छात्रों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य बन सके।

भारत के विश्वविद्यालयों को मिलेगी वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त

इस पहल के माध्यम से न केवल जेएनयू, बल्कि भारत का उच्च शिक्षा क्षेत्र भी वैश्विक मंच पर अपनी पकड़ मजबूत कर सकेगा। दुनिया की शीर्ष यूनिवर्सिटीज की सूची में पहले ही भारत के 50 विश्वविद्यालय शामिल हो चुके हैं, जिनमें IIT दिल्ली सबसे आगे है। JNU के इस फैसले से अब यह उम्मीद की जा रही है कि अन्य विश्वविद्यालय भी इसी दिशा में कदम उठाएंगे। उच्च शिक्षा के वैश्वीकरण और ‘स्टडी इन इंडिया’ अभियान को मजबूती देने में यह निर्णय मील का पत्थर साबित हो सकता है। विदेशी छात्रों के लिए सुलभ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना भारत की वैश्विक नेतृत्व भूमिका को और भी मजबूत बनाएगा।


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