नई दिल्ली (19 जून 2025): मार्च 2025 में जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में लगी आग के बाद सामने आया एक सनसनीखेज मामला अब एक नई दिशा में बढ़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति ने पहली बार उन 10 चश्मदीद गवाहों के नाम सार्वजनिक किए हैं, जिन्होंने स्टोर रूम में जले हुए ₹500 के नोटों का ढेर देखा। ये गवाह दिल्ली फायर सर्विस और दिल्ली पुलिस के अधिकारी हैं। इस घटना के बाद समिति ने जस्टिस वर्मा के आचरण को संदिग्ध मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है।
नकदी की खोज और उसके बाद की रहस्यमय घटनाएं
मामला उस वक्त सामने आया जब जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने पर DFS और दिल्ली पुलिस के अधिकारी आग बुझाने पहुंचे। घटनास्थल पर मौजूद अधिकारियों ने बताया कि वे वहां भारी मात्रा में नकदी के ढेर को देखते हैं, जिनमें से कई ₹500 के नोट आधे जल चुके थे और बाकी पानी से भीग गए थे। गवाहों के मुताबिक, यह नकदी करीब डेढ़ फीट ऊंचे ढेर में बिखरी हुई थी, जो कमरे के चारों ओर फैली हुई थी। इस घटना के बाद स्टोर रूम की सफाई कर दी गई और वहां से सभी नोट गायब हो गए।
गवाहों की स्वतंत्र गवाही और अधिकारियों का बयान
एक निजी न्यूज़ चैनल के अनुसार समिति द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में इन 10 अधिकारियों के बयान महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। इनमें DFS के फायर ऑफिसर अंकित सहवाग और प्रदीप कुमार, स्टेशन ऑफिसर मनोज मेहलावत, और तुगलक रोड थाना के पुलिस अधिकारी राजेश कुमार जैसे लोग शामिल हैं। इन अधिकारियों ने अपनी आंखों से जले हुए नोटों को देखा और इसकी जानकारी दी। हालांकि, कुछ गवाहों ने यह भी कहा कि उन्हें ऊपर से आदेश मिला था कि इस मामले को आगे न बढ़ाया जाए, जो स्थिति को और संदेहास्पद बना देता है।
जस्टिस वर्मा का आचरण संदिग्ध: जांच समिति की सिफारिश
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के आचरण को अविश्वसनीय करार दिया है। उनका दावा था कि उन्हें इस नकदी की जानकारी नहीं थी, जिसे समिति ने “अविश्वसनीय” बताया। समिति ने यह भी सवाल उठाया कि यदि यह घटना कोई साजिश थी, तो जस्टिस वर्मा ने अब तक कोई शिकायत क्यों नहीं की? जांच के दौरान यह भी पाया गया कि जस्टिस वर्मा के निजी सचिव और उनकी बेटी ने सबूत मिटाने या सफाई में भूमिका निभाई हो सकती है।
नकदी गायब, षड्यंत्र का दावा खारिज
जस्टिस वर्मा ने इस पूरे मामले को अपनी छवि धूमिल करने की साजिश करार दिया था, लेकिन समिति ने इसे खारिज कर दिया है। रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि इतने सारे स्वतंत्र गवाहों द्वारा नकदी को देखना और रिकॉर्ड करना यह साबित करता है कि इसे “प्लांट” किया गया कहना अविश्वसनीय है। समिति ने जस्टिस वर्मा के परिवार के सदस्यों की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं और सुझाव दिया है कि उन्होंने सबूतों को नष्ट करने या मामले को दबाने में मदद की हो सकती है।
जस्टिस वर्मा की जवाबी प्रतिक्रिया और इस्तीफा न देने का फैसला
यह मामला अब न्यायिक परिसरों में एक बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। हालांकि जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित किया जा चुका है, लेकिन उन्हें कोई न्यायिक कार्य सौंपा नहीं गया है। इसके बावजूद, वे न तो इस्तीफा देने को तैयार हैं और न ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) के लिए राजी हैं। उनका कहना है कि इस पूरी जांच प्रक्रिया को उन्होंने “अन्यायपूर्ण” और “पूर्वाग्रही” करार दिया है।
आखिरकार क्या होगा जस्टिस वर्मा का भविष्य?
जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच की प्रक्रिया लगातार तेज हो रही है और अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट उनकी न्यायिक भूमिका को स्थायी रूप से समाप्त करेगा? इसके साथ ही यह भी देखा जाएगा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच के दौरान क्या और कौन से खुलासे सामने आते हैं।
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