नई दिल्ली (05 जून 2025): तकनीक की रफ्तार इतनी तेज़ हो चुकी है कि कई जॉब्स अब इतिहास बनने की कगार पर हैं। एक समय था जब कॉल सेंटर की घंटियों की आवाज़ से ऑफिस गूंजते थे, लेकिन अब वहां सन्नाटा है। नोएडा, पुणे जैसे शहरों में हजारों लोग इस सेक्टर में काम करते थे, लेकिन अब उनकी जगह ले ली है AI चैटबॉट्स ने, “हेलो सर, कैसे मदद कर सकता हूं?” अब ये आवाज़ किसी इंसान की नहीं, एक प्रोग्राम की होती है। कंपनियों ने WhatsApp, IVR और AI टूल्स के ज़रिए मानव संसाधन की जगह मशीनों को तरजीह देनी शुरू कर दी है।
बैंकिंग सेक्टर भी इस बदलाव से अछूता नहीं रहा। पहले बैंक ब्रांच में लंबी कतारें लगती थीं, लेकिन अब UPI और मोबाइल बैंकिंग ने वो ज़रूरत ही खत्म कर दी है। बैंक खुद स्वीकार कर चुके हैं कि आने वाले कुछ सालों में लगभग 50% काउंटर स्टाफ की ज़रूरत नहीं रहेगी। यह ट्रेंड सिर्फ मेट्रो शहरों में नहीं, बल्कि छोटे कस्बों में भी तेज़ी से बढ़ रहा है। एक ज़माना था जब हर मोहल्ले में एक लोकल ट्रैवल एजेंट ज़रूर होता था, जो टिकट से लेकर होटल बुकिंग तक सब संभालता था। लेकिन अब MakeMyTrip, IRCTC और Google ने यह जिम्मेदारी संभाल ली है। लोग अब खुद अपनी ट्रैवल प्लानिंग करते हैं और पुराने ट्रैवल एजेंट की दुकानें या तो बंद हो चुकी हैं या फिर किसी और काम में तब्दील हो गई हैं।
पढ़ाई का तरीका भी पूरी तरह बदल चुका है। पारंपरिक ट्यूटर जो रटाने पर ज़ोर देते थे, अब छात्रों के लिए अप्रासंगिक हो गए हैं। बायजूस, अनअकैडमी और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर स्मार्ट टीचिंग का चलन बढ़ा है, जहां पढ़ाई सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं है। अब बच्चे डिजिटल माध्यमों से कॉन्सेप्ट समझते हैं और खुद से सीखते हैं।ऑफिस में काम करने वाले डाटा एंट्री ऑपरेटर भी अब संकट में हैं। जहां पहले दर्जनों लोग सिर्फ फॉर्म भरने का काम करते थे, वहां अब ऑटोमेटेड सिस्टम और AI की मदद से यह काम मिनटों में हो जाता है। कंपनियों को अब न तेज़ी चाहिए, न छुट्टी—सिर्फ परफेक्शन चाहिए, जो मशीनें दे रही हैं।
सिक्योरिटी गार्ड की जगह भी धीरे-धीरे तकनीक ले रही है। कैमरा सर्विलांस, फेस रिकॉग्निशन और RFID कार्ड ने फिज़िकल गार्ड की ज़रूरत को कम कर दिया है। अब अपार्टमेंट, मॉल और ऑफिस कैमरों से निगरानी करते हैं, वो भी 24 घंटे बिना थके। हर गली में कभी एक फोटो स्टूडियो हुआ करता था। पासपोर्ट साइज फोटो से लेकर शादी की एल्बम तक, सब वहीं से बनती थी। लेकिन अब हर मोबाइल में हाई क्वालिटी कैमरा और एडिटिंग एप्स की मौजूदगी ने फोटो स्टूडियो को लगभग अप्रासंगिक बना दिया है। ऑनलाइन फोटो प्रिंटिंग ने इस बदलाव को और पुख्ता कर दिया है।
पेपर डिलीवरी करने वाले ‘पेपर वाले भैया’ अब सिर्फ यादों में रह गए हैं। आज की पीढ़ी सुबह उठते ही अख़बार नहीं, मोबाइल उठाती है। ट्विटर, यूट्यूब और इनशॉर्ट्स जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने न्यूज़ की दुनिया को पूरी तरह बदल दिया है। छपे हुए अखबार का क्रेज अब तेजी से घट रहा है। टाइपिस्ट और स्टेनोग्राफर, जो कभी कोर्ट और सरकारी दफ्तरों की ज़रूरत थे, अब उनकी जगह डिजिटल रिकॉर्डिंग और वॉयस-टू-टेक्स्ट सॉफ्टवेयर ले चुके हैं। मिनटों में ट्रांस्क्रिप्शन तैयार होता है और इंसानी टाइपिंग अब पीछे छूटती जा रही है। कोर्ट रूम से लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस तक, अब मशीनें तेजी से काम करती हैं।
डीवीडी और वीडियो गेम रेंटल स्टोर अब इतिहास बन चुके हैं। पहले जो दुकानें वीडियो गेम्स या फिल्में किराए पर देती थीं, वहां अब कुछ और बिक रहा है। नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार और क्लाउड गेमिंग प्लेटफॉर्म्स ने इस इंडस्ट्री को खत्म कर दिया है। सब कुछ अब ऑनलाइन है देखना हो या खेलना, बस क्लिक कीजिए। सबसे अहम सवाल यह नहीं है कि कौन सी नौकरियां जाएंगी, बल्कि यह है कि क्या आप तैयार हैं बदलने के लिए? बदलाव केवल तकनीकी नहीं, मानसिक भी है। जो लोग लगातार सीखते रहेंगे, वे नए युग में भी अपनी जगह बनाए रखेंगे। लेकिन जो पुराने तरीकों से चिपके रहेंगे, उनकी जगह मशीनें या ऐप्स ले लेंगी। यह चेतावनी नहीं, एक संकेत है कि स्किल अपग्रेडेशन अब विकल्प नहीं, ज़रूरत बन गया है।
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