दिल्ली हाइकोर्ट से पत्रकार को मिली राहत, दो महीने की सुरक्षा का आदेश
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (29 मई 2025): दिल्ली हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश के पत्रकार अमरकांत सिंह चौहान को दो महीने की सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश देते हुए पत्रकार सुरक्षा के संवेदनशील मुद्दे पर एक अहम निर्णय सुनाया है। यह आदेश पत्रकार चौहान द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि भिंड के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (SP) असित यादव से उन्हें जान का खतरा है। चौहान का आरोप है कि रेत माफिया और स्थानीय पुलिस की सांठगांठ का खुलासा करने पर उनके साथ बर्बर मारपीट की गई और उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं।
जस्टिस रविंद्र डुडेजा की अदालत ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया है कि वह पत्रकार चौहान को दो महीने तक सुरक्षा दे। इस अवधि में चौहान को यह छूट दी गई है कि वह चाहें तो मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में उचित कानूनी उपायों के लिए याचिका दायर कर सकते हैं। कोर्ट ने पत्रकार के वकील से उस दिल्ली पुलिस थाने का विवरण भी मांगा है, जहां फिलहाल चौहान रह रहे हैं, ताकि बीट अधिकारी और स्टेशन हाउस अधिकारी के साथ उनकी जानकारी साझा की जा सके। हालांकि, दिल्ली पुलिस की ओर से याचिका का विरोध भी दर्ज किया गया।
पत्रकार अमरकांत चौहान का कहना है कि वे लंबे समय से चंबल नदी क्षेत्र में अवैध रेत खनन और पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत पर रिपोर्टिंग कर रहे थे। चौहान के अनुसार, इसी बात से नाराज होकर 1 मई को SP असित यादव ने उन्हें चाय पर बुलाने का बहाना किया और अपने चैंबर में बंद कर मारपीट की। उन्होंने यह भी दावा किया कि उस वक्त वहां मौजूद अन्य पत्रकारों – शशिकांत गोयल और प्रीतम सिंह राजावत समेत आधा दर्जन लोगों के साथ भी दुर्व्यवहार हुआ और उनके कपड़े तक उतरवाए गए।
इस कथित हमले की शिकायत चौहान, गोयल और राजावत ने भिंड के जिलाधिकारी को दी थी, लेकिन SP कार्यालय ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद चौहान और गोयल ने दिल्ली पहुंचकर 19 मई को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायतें दर्ज कराईं। उन्होंने यह भी कहा कि भिंड की पुलिस के दबाव और खतरे के माहौल के कारण वे मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर करने में असमर्थ थे, और इसलिए दिल्ली हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी।
याचिका में चौहान ने संविधान के अनुच्छेद 19(1) का हवाला देते हुए अपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारिता के पेशे के अधिकार की रक्षा की मांग की थी। अदालत ने मामले की गंभीरता को समझते हुए याचिका का त्वरित निपटारा किया और पत्रकार की सुरक्षा को प्राथमिकता दी। यह मामला सिर्फ एक पत्रकार पर हमले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन चुनौतियों की गूंज भी है जिनका सामना जमीनी स्तर पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को आए दिन करना पड़ता है। अदालत का यह फैसला न सिर्फ चौहान के लिए, बल्कि स्वतंत्र पत्रकारिता की सुरक्षा के लिए भी एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है।
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