दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से अपील वापस लेने की मांग की, क्या है पूरा मामला?
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (22 मई 2025): दिल्ली में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से उस अपील को वापस लेने की अनुमति मांगी है जो पूर्ववर्ती आम आदमी पार्टी (आप) सरकार द्वारा दायर की गई थी। यह अपील राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के उस आदेश के खिलाफ थी जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) को ठोस कचरा निगरानी समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इस मामले का उल्लेख आज सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह की पीठ के समक्ष अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी द्वारा किया गया।
लाइव लॉ के अनुसार एएसजी ने बताया कि दिल्ली सरकार वास्तव में ऐसे कुल सात मामलों को वापस लेना चाहती है, जिनमें एक अध्यादेश, एक अधिनियम और एलजी को विभिन्न समितियों का अध्यक्ष बनाए जाने से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। उन्होंने कहा कि अब इन मामलों को लेकर न्यायालय को “खुद को परेशान करने की ज़रूरत नहीं है।” उनकी मांग पर पीठ ने इन सभी सात मामलों को सुनवाई के लिए कल सूचीबद्ध कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि जिन मामलों में से एक का आज उल्लेख हुआ, उसमें 16 फरवरी 2023 को एनजीटी की प्रधान पीठ, नई दिल्ली ने ठोस कचरा प्रबंधन से संबंधित मामलों की निगरानी के लिए उपराज्यपाल को समिति का प्रमुख नियुक्त किया था। इस समिति में दिल्ली के मुख्य सचिव (संयोजक), दिल्ली सरकार के शहरी विकास, वन एवं पर्यावरण, कृषि और वित्त विभागों के सचिव, डीडीए के उपाध्यक्ष, भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के सचिव या उनके प्रतिनिधि (जो अतिरिक्त सचिव से कम न हों), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के डीजी फॉरेस्ट या उनके नामित अधिकारी (कम से कम डीडीजी स्तर के), शहरी विकास मंत्रालय के सचिव या उनके प्रतिनिधि, सीपीसीबी के अध्यक्ष, दिल्ली नगर निगम के आयुक्त तथा संबंधित ज़िलों के जिलाधिकारी और पुलिस उपायुक्त शामिल थे।
यह समिति राजधानी में ठोस कचरा प्रबंधन से जुड़ी सभी समस्याओं से निपटने के लिए गठित की गई थी। इसमें नए अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना, मौजूदा संयंत्रों का विस्तार और पुराने कचरा स्थलों के निपटान जैसे मुद्दों को शामिल किया गया। एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था, “हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 18 वर्षों तक निगरानी और एनजीटी द्वारा 9 वर्षों तक निगरानी के बाद भी संकट का समाधान नहीं हो सका, तब इस पर अब दिल्ली प्रशासन के उच्चतम स्तर पर निगरानी होनी चाहिए।”
दिल्ली सरकार द्वारा दायर अपील एनजीटी अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत थी, जिसमें कहा गया कि एलजी को समिति का अध्यक्ष बनाए जाने का निर्णय संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है। याचिका में यह तर्क दिया गया कि “स्थानीय शासन से जुड़े मामलों में कार्यपालिका शक्तियाँ विशेष रूप से राज्य सरकार (जीएनसीटीडी) के पास होती हैं, जब तक कि संसद द्वारा स्पष्ट रूप से कोई कानून न बनाया गया हो।”
इसके अलावा यह भी कहा गया कि संविधान की अनुसूची 12 के अनुक्रम 6 के तहत “सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और ठोस कचरा प्रबंधन” स्थानीय निकायों यानी दिल्ली की नगरपालिकाओं के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। अनुच्छेद 239AA का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया, “एलजी केवल एक औपचारिक प्रमुख हैं, सिवाय उन मामलों के जो पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित हैं, जहाँ उन्हें संविधान द्वारा विशेष अधिकार प्राप्त हैं।”
याचिका में यह भी कहा गया कि “एनजीटी द्वारा सुझाए गए सुधारात्मक उपाय जैसे कि नए कचरा प्रसंस्करण संयंत्रों की स्थापना, मौजूदा संयंत्रों का विस्तार और पुराने कचरा स्थलों की सफाई, ये सभी ऐसे कार्य हैं जिनके लिए बजटीय आवंटन की आवश्यकता होती है जो दिल्ली सरकार द्वारा किया जाता है। इसलिए इस संबंध में निर्वाचित सरकार की भूमिका अत्यंत आवश्यक हो जाती है।” याचिका के अनुसार, एनजीटी का यह निर्णय संघीय ढांचे के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है क्योंकि इससे दिल्ली सरकार के बजट निर्धारण और कार्यान्वयन की शक्ति समाप्त हो जाती है।
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