दिल्ली में बाइक टैक्सी ड्राइवर की बेरहमी से हत्या, बहन की गुहार पर भी नहीं पसीजा मोहल्ला
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (21 मई 2025): नई दिल्ली के एक इलाके में उस समय सनसनी फैल गई जब एक युवा बाइक टैक्सी चालक कंवलजीत की दिनदहाड़े बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस हृदय विदारक घटना ने न सिर्फ परिवार को गहरे शोक में डुबो दिया, बल्कि इलाके की संवेदनशीलता और सामाजिक उत्तरदायित्व पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए। इस निर्मम हत्या का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि पीड़ित की छोटी बहन प्रीति लगातार चीख-चीखकर मदद की गुहार लगाती रही, लेकिन आसपास के किसी भी व्यक्ति ने दरवाजा खोलकर झांकने तक की जहमत नहीं उठाई। जब तक लोग बाहर निकले, तब तक कंवलजीत की सांसे थम चुकी थीं।
प्रीति ने बताया कि उसका भाई ही पूरा घर चलाता था। मां-बाप पहले ही इस दुनिया से जा चुके थे और भाई ही उनकी एकमात्र उम्मीद था। पहले वह डिलिवरी बॉय के रूप में काम करता था, लेकिन कुछ समय से बाइक टैक्सी चलाकर गुजारा कर रहा था। सोमवार का दिन उनके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा। जिस समय कंवलजीत पर हमला हुआ, वह बाथरूम में था और कपड़े भी नहीं पहने थे। हमलावर छिपते-छिपाते ऊपर पहुंचे और पीछे से उस पर चाकुओं से हमला कर दिया। जान बचाने की कोशिश में वह सीढ़ियां उतरकर गली की ओर भागा, लेकिन हमलावर लगातार उसका पीछा करते रहे और एक के बाद एक वार करते रहे।
घटना के वक्त कंवलजीत की पत्नी ज्योति भी घर पर थीं। उन्होंने बताया कि कुछ घंटे पहले ही वह उन्हें अस्पताल से अपेंडिक्स का ऑपरेशन करवाकर घर लाया था। वे खुद चलने-फिरने की हालत में नहीं थीं। उन्होंने कहा कि जब उनके पति लगातार चिल्ला रहे थे—”मुझे बचा लो, मुझे बचा लो”—तब भी कोई बाहर नहीं आया। यह सोचकर रूह कांप जाती है कि एक इंसान की जान बचाई जा सकती थी, अगर मोहल्ले के लोग इंसानियत दिखाते।
कंवलजीत की हत्या ने दिल्ली जैसे महानगर में सामाजिक ताने-बाने की जर्जर होती हालत को उजागर कर दिया है। यह घटना दर्शाती है कि किस तरह लोगों में भय या उदासीनता इस कदर घर कर गई है कि वे किसी की जान बचाने तक से कतराते हैं। सवाल यह भी उठता है कि क्या हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां दर्द से तड़पता इंसान केवल ‘तमाशा’ बनकर रह जाता है? फिलहाल पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। परिवार न्याय की गुहार लगा रहा है और इलाके में मातम का माहौल है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कंवलजीत की जान बच सकती थी, अगर इंसानियत जिंदा होती?
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