चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश का नाम बदलने पर भारत का जवाब: “हास्यास्पद और निरर्थक प्रयास”

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (14 मई 2025): 14 मई 2025 को भारत ने चीन की उस चाल पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई, जिसमें उसने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश के 27 स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की है। भारत ने इसे पूरी तरह से खारिज करते हुए दो टूक कहा कि इस तरह के “रचनात्मक नामकरण” से अरुणाचल प्रदेश पर भारत की संप्रभुता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने इस कदम को “निरर्थक और हास्यास्पद” बताया और कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा था, है और रहेगा। चीन की इस हरकत की भारत ने पहले भी बार-बार निंदा की है और अब फिर एक बार सख्त रुख अपनाया है।

भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश को लेकर वर्षों से सीमा विवाद चला आ रहा है। चीन इस राज्य को “दक्षिणी तिब्बत” बताकर उस पर दावा करता रहा है, जबकि भारत हमेशा इसे खारिज करता आया है। दोनों देशों के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) फैली हुई है, जहां समय-समय पर तनाव की स्थिति उत्पन्न होती रही है। 2017 में दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा के बाद चीन ने पहली बार कुछ स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की थी। उसके बाद 2024 में 30 स्थानों की चौथी सूची आई और अब 2025 में यह नई सूची जारी कर चीन ने अपने इरादे फिर जाहिर किए हैं।

भारत ने न केवल इस नाम बदलने की प्रक्रिया को सिरे से खारिज किया है, बल्कि इसे चीन की “नामकरण रणनीति” का हिस्सा बताते हुए मनोवैज्ञानिक, कानूनी और मीडिया युद्ध की चाल बताया है। रणधीर जयसवाल ने कहा कि “ये प्रयास केवल कागज़ी हैं और हकीकत को बदल नहीं सकते।” भारत का जवाबी रुख सिर्फ बयान तक सीमित नहीं है—सेना की मौजूदगी बढ़ाने से लेकर सीमावर्ती क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे को मजबूत करने तक कई ठोस कदम उठाए गए हैं। इसके साथ ही यह भी खबर आई है कि भारत ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में 30 से अधिक स्थानों के नए नाम रखने की योजना बनाई है, जो चीन को उसी की भाषा में जवाब देने का संकेत है।

चीन की यह रणनीति उसकी उस व्यापक नीति का हिस्सा है जिसे वह “तीन युद्ध” कहता है मनोवैज्ञानिक युद्ध, मीडिया युद्ध और कानूनी युद्ध। इसके तहत चीन यह भ्रम पैदा करना चाहता है कि अरुणाचल प्रदेश पर उसका अधिकार है। लेकिन यह रणनीति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता नहीं पा सकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की यह चाल केवल तनाव को बढ़ाने की कोशिश है और इससे भारत-चीन संबंधों में और दरारें आ सकती हैं। इसी बीच, चीन द्वारा सियांग नदी पर दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण की योजना और भारत द्वारा उसके जवाब में सियांग ऊपरी बहुउद्देशीय परियोजना (SUMP) की तैयारी, इस तनाव को जल संसाधनों तक भी खींच लाती है।

इतिहास बताता है कि अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत-चीन विवाद की जड़ें औपनिवेशिक युग से जुड़ी हैं। 1962 का युद्ध, जिसमें यह क्षेत्र मुख्य रणभूमि था, आज भी दोनों देशों की रणनीति को प्रभावित करता है। हाल ही में अक्टूबर 2024 में लद्दाख में सैन्य गतिरोध को खत्म करने के लिए समझौता हुआ था, जिससे कुछ उम्मीदें जगी थीं। मगर अब चीन की नई नामकरण सूची इन उम्मीदों पर पानी फेरती नजर आ रही है।

स्पष्ट है कि चीन की आक्रामक नामकरण नीति के जवाब में भारत भी अब पीछे हटने को तैयार नहीं। भारत ने साफ कर दिया है कि अरुणाचल प्रदेश पर किसी भी प्रकार की दावेदारी को न तो स्वीकार किया जाएगा, न ही सहन। विशेषज्ञों का मानना है कि आगे चलकर इस विवाद को सुलझाने का रास्ता केवल बातचीत और कूटनीतिक समाधान से ही निकलेगा, मगर तब तक भारत चीन की हर हरकत का मजबूती से जवाब देने के लिए तैयार है।।


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