CJI संजीव खन्ना का ऐतिहासिक कार्यकाल समाप्त, न्यायिक गरिमा और पारदर्शिता को दिया सर्वोच्च स्थान
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (13 मई 2025): भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना मंगलवार को अपने पद से सेवानिवृत्त हो गए। महज छह महीने के कार्यकाल में उन्होंने ऐतिहासिक न्यायिक और प्रशासनिक फैसले लिए। उनका कार्यकाल ‘बातें कम, काम ज़्यादा’ की मिसाल बना। उन्होंने संविधान की मूल भावना, पारदर्शिता और जवाबदेही को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उनके फैसलों ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को मजबूती दी। खन्ना ने कम बोलकर बड़े फैसलों से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।उनका कार्यकाल भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन गया।
धर्मनिरपेक्षता को संविधान की आत्मा बताया
नवंबर 2024 में जस्टिस खन्ना ने सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्दों पर ऐतिहासिक फैसला दिया।उन्होंने संविधान की प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाने की मांग खारिज कर दी। बेंच ने कहा कि ये शब्द संविधान की मूलभूत विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। खन्ना ने धर्मनिरपेक्षता को समानता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा बताया। फैसले में स्पष्ट किया गया कि यह विचार भारत के संवैधानिक ताने-बाने में गहराई से जुड़ा है।1976 में जोड़े गए ये शब्द देश की विविधता और एकता की पहचान हैं। इस फैसले ने संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की दृढ़ रक्षा की।
मंदिर-मस्जिद विवादों पर निर्णायक रोक
देशभर में धार्मिक स्थलों को लेकर बढ़ते विवाद पर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। निचली अदालतों द्वारा मंदिर के दावे पर मस्जिदों के सर्वे आदेश दिए जा रहे थे। खन्ना ने इन पर सख्त आदेश देते हुए यथास्थिति बहाल करने को कहा। उन्होंने निर्देश दिया कि जब तक कोर्ट तय न करे, कोई नई याचिका न दाखिल हो। निचली अदालतों को प्रभावी आदेश पारित करने से भी रोक दिया गया। यह निर्णय सामाजिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता की दिशा में अहम रहा। उन्होंने 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को न्यायिक सुरक्षा दी।
हाईकोर्ट जजों पर विवाद में लिया सख्त रुख
खन्ना के कार्यकाल में दो हाईकोर्ट जज विवादों में घिरे। जस्टिस शेखर यादव की टिप्पणी और जस्टिस वर्मा के आवास से नकदी बरामदगी चर्चित रहीं। खन्ना ने इन दोनों मामलों में त्वरित जांच और निष्पक्षता को प्राथमिकता दी। उन्होंने वर्मा केस में तीन जजों की जांच कमेटी गठित की। जब आरोप पुष्ट हुए, तो वर्मा से इस्तीफा मांगा गया। इंकार पर रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी गई। उनका यह कदम न्यायपालिका की साख बचाने के लिए निर्णायक सिद्ध हुआ।
संपत्ति सार्वजनिक कर पारदर्शिता की मिसाल
खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति सार्वजनिक करने का साहसिक कदम उठाया। 1 अप्रैल 2025 को फुल कोर्ट की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया। इस निर्णय के तहत भविष्य में सभी जज अपनी संपत्ति सार्वजनिक करेंगे। यह फैसला न्यायपालिका में जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। पहली बार सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे कदम उठाकर नज़ीर पेश की।इससे जनता का विश्वास न्यायिक संस्थाओं पर और मज़बूत हुआ।खन्ना ने दिखाया कि न्यायिक पदों पर बैठे लोगों को भी जनता को जवाब देना चाहिए।
कॉलेजियम सिफारिशों में पारदर्शिता लाई
खन्ना ने कॉलेजियम की नियुक्तियों पर उठते सवालों का व्यावहारिक जवाब दिया। उन्होंने तीन वर्षों की सभी सिफारिशें सार्वजनिक कर दीं।इसमें जातीय, लिंग और वर्गीय प्रतिनिधित्व की भी जानकारी दी गई। उन्होंने यह भी बताया कि कितने उम्मीदवार जजों के रिश्तेदार थे।इस कदम ने भाई-भतीजावाद के आरोपों को कमजोर किया ।न्यायिक नियुक्तियों में समानता और निष्पक्षता का संदेश दिया गया। यह पारदर्शिता न्यायपालिका की स्वीकार्यता बढ़ाने में सहायक बनी।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता की प्रभावी रक्षा
खन्ना ने अपने कार्यकाल में नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया। उन्होंने जीएसटी और सीमा शुल्क कानूनों के तहत गिरफ्तारी पर सख्त टिप्पणी की। राधिका अग्रवाल केस में गिरफ्तारी को मनमाना बताया।उन्होंने यूपी पुलिस को सिविल केस को आपराधिक मामला न बनाने की चेतावनी दी। सुप्रीम कोर्ट में सिविल विवादों पर एफआईआर की बाढ़ पर चिंता जताई। फैसले में कहा गया कि यह न्याय की मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने आम नागरिकों के अधिकारों को केंद्र में रखा।
वक्फ एक्ट विवाद को शांत किया
वक्फ संशोधन कानून पर विवाद को खन्ना ने संतुलित समाधान दिया। उन्होंने कानून की कुछ धाराओं पर अंतरिम रोक लगाने की बात कही। इसके बाद केंद्र सरकार ने वक्फ संपत्ति डिनोटिफिकेशन पर रोक की घोषणा की। नई नियुक्तियों पर भी फिलहाल रोक लगा दी गई। इस फैसले से धार्मिक अल्पसंख्यकों में भरोसा कायम हुआ। खन्ना ने दिखाया कि न्यायिक हस्तक्षेप से तनाव के बीच संतुलन लाया जा सकता है। उन्होंने कानून और संवेदना के बीच संतुलन साधा।
बड़े वकीलों की प्राथमिकता पर लगाई लगाम
सुप्रीम कोर्ट में बड़े वकीलों की प्राथमिकता को खन्ना ने खत्म किया। उन्होंने मौखिक अनुरोध पर जल्द सुनवाई की व्यवस्था बंद कर दी। कहा कि सभी वकील प्रक्रिया से अनुरोध पत्र दें, चाहे कितना भी बड़ा नाम क्यों न हो। इससे न्यायिक प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनी।सामान्य वकीलों को भी न्याय की समान पहुंच मिली। उनका यह फैसला न्यायिक बराबरी का उदाहरण बना। न्यायालय की गरिमा और निष्पक्षता को बल मिला।
न्यायिक गरिमा के प्रतीक बने जस्टिस खन्ना
जस्टिस संजीव खन्ना ने चुपचाप लेकिन निर्णायक कार्यशैली से न्यायपालिका में बदलाव लाया। वह अपने चाचा जस्टिस एचआर खन्ना की तरह ही साहसी और सिद्धांतवादी साबित हुए। 1976 में ADM जबलपुर केस में एचआर खन्ना ने अल्पमत का ऐतिहासिक फैसला दिया था।संजीव खन्ना ने भी धर्मनिरपेक्षता, जवाबदेही और नागरिक अधिकारों के लिए निर्णायक फैसले दिए। उनका कार्यकाल अल्पकालिक जरूर रहा, लेकिन प्रभावी और ऐतिहासिक बन गया। उन्होंने दिखाया कि न्यायाधीश अपने आदेशों के माध्यम से बोलते हैं, न कि शब्दों से। उनकी न्यायप्रियता भारतीय लोकतंत्र के लिए एक स्थायी प्रेरणा बनकर रहेगी।।
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