नई दिल्ली (26 अप्रैल 2025): भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025 के आयोजन की घोषणा कर दी है। यह प्रतिष्ठित यात्रा जून से अगस्त 2025 के बीच आयोजित की जाएगी। इस बार श्रद्धालु उत्तराखंड राज्य के लिपुलेख पास और सिक्किम राज्य के नाथू ला पास होकर अपने गंतव्य तक पहुँचेंगे। मंत्रालय ने यात्रा की पूरी तैयारी कर ली है और श्रद्धालुओं के जत्थों का गठन भी कर दिया है। श्रद्धालु इस पवित्र यात्रा के लिए विदेश मंत्रालय की वेबसाइट kmy.gov.in पर आवेदन कर सकते हैं। इस वर्ष की यात्रा को भक्तों के लिए अधिक सुव्यवस्थित और सुविधाजनक बनाने पर विशेष जोर दिया गया है। मंत्रालय ने सभी आवश्यक दिशानिर्देश और प्रक्रियाएं वेबसाइट पर उपलब्ध कराई हैं।
यात्रा के लिए कुल 15 जत्थे निर्धारित किए गए हैं, जिनमें से 5 जत्थे लिपुलेख पास के रास्ते जाएंगे। वहीं, 10 जत्थे सिक्किम राज्य के नाथू ला पास होकर यात्रा करेंगे। प्रत्येक जत्थे में 50 यात्रियों को शामिल किया जाएगा, जिससे अधिक से अधिक श्रद्धालुओं को अवसर मिल सके। यात्रियों का चयन एक निष्पक्ष, कंप्यूटर जनित और लैंगिक संतुलन आधारित प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा। यह प्रक्रिया पारदर्शिता और समान अवसर सुनिश्चित करती है। यात्रा मार्गों के चयन में श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। आवेदन प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है और इच्छुक श्रद्धालु शीघ्र आवेदन कर सकते हैं।
विदेश मंत्रालय ने 2015 से कैलाश मानसरोवर यात्रा प्रक्रिया को पूर्णत: ऑनलाइन कर दिया था। आवेदन से लेकर चयन तक की पूरी प्रक्रिया अब कंप्यूटरकृत और सरल हो चुकी है। अब यात्रियों को किसी प्रकार के पत्राचार, फैक्स या शारीरिक दस्तावेज भेजने की आवश्यकता नहीं है। मंत्रालय ने वेबसाइट पर फीडबैक विकल्प भी उपलब्ध कराया है। इसके जरिए यात्री सुझाव दे सकते हैं या किसी भी तरह की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यात्रा से जुड़ी सभी अपडेट्स और दिशानिर्देश भी वेबसाइट पर नियमित रूप से उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इससे आवेदकों को सुविधा और पारदर्शिता दोनों सुनिश्चित की जा रही है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है। इस यात्रा का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। हर साल हजारों श्रद्धालु इस कठिन लेकिन पुण्य यात्रा में भाग लेने के लिए आवेदन करते हैं। यह यात्रा आस्था, आत्मान्वेषण और साहस का प्रतीक मानी जाती है। यात्रियों को कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में यात्रा करनी होती है। इसके बावजूद श्रद्धालु भक्ति और विश्वास के साथ इस यात्रा को पूर्ण करते हैं। 2025 में भी एक बड़े उत्साह के साथ यह यात्रा आयोजित होने जा रही है।
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