नई दिल्ली (14 अप्रैल 2025): दिल्ली नगर निगम (MCD) के शाहदरा साउथ जोन में बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है, जिसमें 609 जब्त गाड़ियों को बिना टेंडर प्रक्रिया के ठिकाने लगाने का मामला सामने आया है। इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (Anti Corruption Branch – ACB) ने एमसीडी के 10 अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। जांच में सामने आया है कि इस अनियमितता के कारण नगर निगम को करोड़ों रुपये का राजस्व नुकसान हुआ है।
ACB की शुरुआती जांच में पाया गया कि साल 2010 से 2021 के बीच शाहदरा साउथ जोन के स्टोर से जब्त की गई कुल 609 गाड़ियों को बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के बेच दिया गया। इन गाड़ियों को टेंडर प्रक्रिया के जरिए नीलाम किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। 2024 में जब इनमें से 281 गाड़ियों को मेसर्स पाइनव्यू नामक स्क्रैप कंपनी को सौंपा गया, तब इस मामले में गड़बड़ी का खुलासा हुआ। जांच के दौरान यह भी सामने आया कि एमसीडी के स्टोर में वर्तमान में केवल 9 गाड़ियां ही उपलब्ध हैं। शेष 319 गाड़ियों का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। इन सभी गाड़ियों का रिकॉर्ड एमसीडी के पास होना चाहिए था, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही या मिलीभगत के कारण ये गायब हैं। इस पूरे मामले में 12 अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में आई थी।
ACB ने एमसीडी से सभी 12 अधिकारियों के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी थी। लेकिन एमसीडी ने केवल 10 अधिकारियों के खिलाफ पूछताछ और जांच की इजाजत दी। दो प्रशासनिक अधिकारियों धीरज कुमार और दिनेश कुमार को उनके मूल विभाग को रिपोर्ट करते हुए जांच से बाहर रखा गया। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि उनके विभागों ने इस पर क्या कार्रवाई की है। जिन 10 अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 409 (आपराधिक विश्वासघात), 120बी (आपराधिक साजिश), 34 (साझा इरादा) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) के तहत मामला दर्ज किया गया है। इनमें जेई, एलआई, एपीएचआई और पीएचआई जैसे विभिन्न पदों पर कार्यरत अधिकारी शामिल हैं। इससे पहले ACB (एंटी करप्शन ब्रांच) ने सुभाष चंद शर्मा, एएसओ एलआई, मुकेश शर्मा, एसएसओ, एडीसी के माध्यम से, विनय पाराशर जेएसए, एलआई, यशबीर सिंह जेएसए, एलए, रणवीर जेई, रविंदर मीना जेई, रविंदर पाल एपीएचआई, पवन कुमार एपीएचआई, केके गुप्ता पीएचआई, पंकज कुमार एलआई, धीरज कुमार एओ और दिनेश कुमार एओ के खिलाफ पूछताछ और जांच शुरू करने की परमिशन मांगी थी।
इस घोटाले ने न केवल निगम के अंदर गहरे भ्रष्टाचार को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि कैसे वर्षों तक एक संगठित तरीके से सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग होता रहा। यह मामला केवल जब्त गाड़ियों के गायब होने का नहीं, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की गंभीर विफलता का भी प्रतीक बन चुका है। ACB अब यह जानने में जुटी है कि इन गाड़ियों से हुई अवैध कमाई किन-किन हाथों तक पहुंची और किस तरह से दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ कर घोटाले को अंजाम दिया गया। आने वाले दिनों में इस मामले में और बड़े नाम सामने आ सकते हैं।
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