1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडे की पुण्यतिथि, कौन थे क्रांतिकारी मंगल पांडे?
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (08 अप्रैल 2025): भारत में आज महान स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। इस अवसर पर देशभर में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए गए। स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी दफ्तरों में उनकी शहादत को याद किया गया। यूपी के बलिया, जहां उनका जन्म हुआ था, वहां विशेष कार्यक्रम हुए। भारत सरकार और रक्षा मंत्रालय ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। सोशल मीडिया पर देशवासियों ने “क्रांति के अग्रदूत” को याद किया। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने भी ट्वीट कर मंगल पांडे को नमन किया। उनकी कुर्बानी ने आजादी की पहली चिंगारी को हवा दी थी, जिसे भारत कभी नहीं भूला सकता।
1857 की क्रांति का प्रारंभ और मंगल पांडे की भूमिका
1857 की क्रांति को भारत की पहली स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है। इस विद्रोह का सूत्रपात बंगाल के बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे द्वारा किया गया था। वे ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में एक सिपाही के रूप में कार्यरत थे। ब्रिटिश सेना द्वारा इस्तेमाल की जा रही नई एनफील्ड राइफल के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी होने की बात सामने आई। यह बात हिंदू और मुस्लिम दोनों सैनिकों की धार्मिक आस्थाओं के विरुद्ध थी। मंगल पांडे ने इसका विरोध करते हुए 29 मार्च 1857 को अपने अफसरों पर गोली चला दी। यह घटना एक बड़े आंदोलन की नींव बन गई। मंगल पांडे की बहादुरी ने देश के अन्य हिस्सों में भी विद्रोह की ज्वाला भड़काई। उन्होंने भारत के युवाओं को स्वतंत्रता के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। इस विद्रोह को भारत की आजादी की पहली चिंगारी कहा जाता है।
मंगल पांडे का प्रारंभिक जीवन और परिवारिक पृष्ठभूमि
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे, जिनकी परंपरा में धार्मिकता और देशभक्ति दोनों की भावना प्रबल थी। बचपन से ही वे साहसी और न्यायप्रिय स्वभाव के थे। युवावस्था में ही उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बंगाल रेजीमेंट में नौकरी मिल गई। सेना में आने के बाद उन्होंने अंग्रेजों के व्यवहार और नीतियों को नजदीक से देखा। उन्हें यह समझ में आ गया कि ब्रिटिश शासन केवल भारत को लूटने और दबाने के लिए काम कर रहा है। उन्होंने सैनिकों में अंग्रेजों के खिलाफ जागरूकता फैलानी शुरू की। यह जागरूकता बाद में विद्रोह में बदल गई। मंगल पांडे का जीवन साहस, बलिदान और देशभक्ति की मिसाल बन गया।
विद्रोह, गिरफ्तारी और फांसी की पूरी कहानी
29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला किया, जिससे बैरकपुर छावनी में हलचल मच गई। उन्होंने लेफ्टिनेंट बोघ और सेरजेंट हेव्सन को गोली मारी। यह देख अन्य सैनिकों में भी उत्तेजना फैल गई, लेकिन अंग्रेजों की चालाकी से वे तुरंत गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर कोर्ट मार्शल किया गया और 6 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की तारीख 18 अप्रैल रखी गई थी, लेकिन अंग्रेजों को डर था कि अन्य सैनिक विद्रोह कर सकते हैं, इसलिए 10 दिन पहले यानी 8 अप्रैल को ही उन्हें फांसी दे दी गई। उनकी फांसी से पहले ही देश में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी थी। मंगल पांडे को एक सैनिक से क्रांतिकारी बनाने में ब्रिटिश अत्याचारों की बड़ी भूमिका थी। उनकी शहादत भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणास्त्रोत बन गई।
मंगल पांडे की स्मृति और विरासत
मंगल पांडे आजादी की लड़ाई के पहले नायक के रूप में याद किए जाते हैं। भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया है। बॉलीवुड ने भी 2005 में आमिर खान द्वारा अभिनीत ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ फिल्म बनाई। बैरकपुर में स्थित उनकी समाधि आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का केंद्र है। स्कूलों और पाठ्यपुस्तकों में उनके जीवन को पढ़ाया जाता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम की हर चर्चा मंगल पांडे के बिना अधूरी मानी जाती है। उनकी वीरता और बलिदान ने यह सिद्ध कर दिया कि एक व्यक्ति भी परिवर्तन की शुरुआत कर सकता है। वे आज भी युवाओं के लिए आदर्श हैं। उनकी पुण्यतिथि हर वर्ष 8 अप्रैल को ‘क्रांतिकारी दिवस’ के रूप में मनाई जाती है। मंगल पांडे भारतीय स्वाभिमान और आत्मबल के प्रतीक बन चुके हैं।
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