जल संकट से निपटने की कार्ययोजना: वैदिक परंपराओं से आधुनिक समाधान

लेखक: प्रो. बलवंत सिंह राजपूत, वरिष्ठ वैज्ञानिक, (पूर्व) कुलपति एवं (पूर्व) अध्यक्ष, उ.प्र. राज्य उच्च शिक्षा परिषद

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (22 मार्च 2025): विश्व जल दिवस हमें यह सोचने पर विवश करता है कि भविष्य में शुद्ध जल का संकट कितना भयावह हो सकता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने कहा था कि यदि तृतीय विश्व युद्ध हुआ तो वह पीने योग्य जल के लिए होगा। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह कथन और भी प्रासंगिक हो गया है। तेजी से सूखते झरने, तालाब, नदियां, नलकूप तथा कुएं जल संकट के संकेत दे रहे हैं। भूमिगत जल स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। एक समय था जब हमारे पूर्वज प्राकृतिक स्रोतों से शुद्ध जल ग्रहण करते थे, लेकिन आज की पीढ़ी बोतलबंद पानी या आरओ के शुद्धिकरण पर निर्भर हो गई है। यदि जल की उपलब्धता इसी प्रकार घटती रही तो आने वाली पीढ़ियां एक-एक चम्मच शुद्ध जल के लिए संघर्ष करती नजर आएंगी।

प्राचीन वैदिक परंपराएं जल संरक्षण और जल स्रोतों की पवित्रता बनाए रखने पर विशेष बल देती थीं। वेदों में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि अन्न और जल को प्रदूषण से मुक्त रखा जाए, वायुमंडल को स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक बनाया जाए तथा पृथ्वी की मृदा को हर प्रकार के प्रदूषण से बचाया जाए। वैदिक काल में प्रकृति और मानव के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए विभिन्न उपाय अपनाए जाते थे। वेदों में जल को देवता (वरुण देव) के रूप में पूजा जाता है और विभिन्न नदियों की महत्ता को स्वीकार किया गया है। एक प्रसिद्ध वैदिक मंत्र में कहा गया है: “गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु।।” अथर्ववेद (1/6/1) और यजुर्वेद (36/12) में जल को शुद्ध रखने और जल में स्नान करने के लाभों का उल्लेख किया गया है। वैदिक परंपरा में जलस्रोतों को दूषित करना महापाप माना गया है। जल संरक्षण के लिए झरनों, तालाबों, कुओं और नदियों का निर्माण और प्रबंधन अनिवार्य माना गया था।

यदि हमें भविष्य में जल संकट से बचना है, तो हमें समस्त शुद्ध जल स्रोतों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। सभी प्राकृतिक जल स्रोतों को प्रदूषण से मुक्त रखते हुए उनके अंधाधुंध दोहन को रोकना होगा। नदियों में सतत जल प्रवाह बनाए रखते हुए उन्हें हर प्रकार के प्रदूषण से बचाने के लिए प्रभावी प्रबंधन करना होगा। सूखे जल स्रोतों को पुनर्जीवित करके उन्हें जल प्रवाहयुक्त बनाने के प्रयास करने होंगे। पहाड़ी क्षेत्रों में सूखते झरनों को पुनर्जीवित करने के लिए कुशल जल प्रबंधन प्रणाली विकसित करनी होगी।

इसके अलावा, स्वास्थ्यवर्धक जलस्रोतों को संरक्षित करते हुए किसी भी प्रकार के प्रदूषण से बचाना होगा। अंधाधुंध भूगर्भीय जल दोहन को रोकने के लिए नियम बनाए जाने चाहिए और समरसेबुल पंपिंग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। वर्षा जल के संचयन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए ताकि भूजल स्तर को बनाए रखा जा सके। ड्रेनेज तंत्र को नियंत्रित करके अपशिष्ट जल को शुद्ध कर सिंचाई और अन्य उपयोगों के लिए पुनः इस्तेमाल करना होगा। समुद्री जल को पीने योग्य बनाने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का विकास आवश्यक है। जल स्रोतों की सुरक्षा के साथ-साथ जलक्षेत्र (वाटरशेड) प्रबंधन और जल संसाधन प्रवर्धन (वाटर रिसोर्स एनहांसमेंट) को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

जल संरक्षण एक सामूहिक जिम्मेदारी है, जिसमें शासन, प्रशासन, वैज्ञानिक समुदाय और आम जनता की भागीदारी आवश्यक है। यदि हम अपनी वैदिक परंपराओं के अनुरूप जल स्रोतों की पवित्रता बनाए रखने के उपायों को अपनाएं और जल संरक्षण की आधुनिक तकनीकों को विकसित करें, तो न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी शुद्ध जल की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है। विश्व जल दिवस हमें यही संदेश देता है कि जल संरक्षण को अपनी प्राथमिकता बनाएं, अन्यथा आने वाली पीढ़ियों के लिए जल एक दुर्लभ संसाधन बन जाएगा।


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