दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश हरीश साल्वे ने “एक राष्ट्र – एक चुनाव” विधेयक का किया समर्थन

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (19 मार्च 2025): दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और वरिष्ठ विधि विशेषज्ञ हरीश साल्वे ने “एक राष्ट्र – एक चुनाव” विधेयक का समर्थन किया। उन्होंने इसे कानूनी रूप से वैध और संविधान-सम्मत बताया। इस प्रस्ताव को लेकर देश में विभिन्न मतभेद हैं, लेकिन साल्वे ने इसे लोकतंत्र के लिए लाभकारी बताया। विधेयक पर उच्च स्तरीय समिति के समक्ष तीन घंटे तक गहन चर्चा हुई। साल्वे ने संवैधानिकता और कानूनी प्रक्रियाओं पर विस्तार से अपनी राय रखी। उनका मानना है कि यह चुनावी प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित बनाएगा। उन्होंने इसे न्यायिक दृष्टिकोण से भी संतुलित बताया।

“एक राष्ट्र – एक चुनाव” पर विस्तृत चर्चा

हरीश साल्वे ने इस विधेयक को संघीय ढांचे के अनुरूप बताते हुए इसका समर्थन किया। उन्होंने तर्क दिया कि यह विधेयक संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करता। इसके विपरीत, यह चुनावी व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाएगा। चर्चा के दौरान कई विधि विशेषज्ञों ने अपने मत प्रस्तुत किए। कुछ विशेषज्ञों ने इस विधेयक की व्यवहारिकता पर सवाल उठाए। हालांकि, साल्वे ने स्पष्ट किया कि यह चुनावी प्रक्रिया में समन्वय लाएगा। यह न केवल प्रशासनिक रूप से फायदेमंद होगा, बल्कि मतदाता जागरूकता भी बढ़ाएगा।

संविधान और संघीय ढांचे पर विधेयक का प्रभाव

बैठक में पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.पी. शाह ने इस विधेयक के संभावित प्रभावों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यह विधेयक राज्यों के अधिकारों को प्रभावित कर सकता है। उनका मानना था कि प्रत्येक राज्य की राजनीतिक परिस्थितियां अलग होती हैं। इसलिए, एक साथ चुनाव कराना संघीय ढांचे के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, साल्वे ने इन तर्कों को खारिज करते हुए अपनी राय रखी। उन्होंने बताया कि यह प्रणाली न केवल संवैधानिक है, बल्कि इसे कानूनी रूप से भी समर्थित किया जा सकता है। उन्होंने अन्य देशों के उदाहरण भी दिए, जहां समान चुनाव प्रणाली लागू है।

साल्वे की भूमिका और उच्च स्तरीय समिति

हरीश साल्वे केंद्र सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति के सदस्य भी थे। इस समिति की अध्यक्षता भारत के पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने की। समिति का उद्देश्य “एक राष्ट्र – एक चुनाव” के कानूनी और प्रशासनिक पहलुओं की समीक्षा करना था। इसमें विभिन्न विधि विशेषज्ञों और पूर्व न्यायाधीशों को शामिल किया गया। समिति ने विभिन्न राज्यों और राजनीतिक दलों से भी सुझाव मांगे। साल्वे ने समिति के समक्ष अपने कानूनी दृष्टिकोण को विस्तार से प्रस्तुत किया। उनकी राय को समिति के कई अन्य सदस्यों का समर्थन मिला।

समिति की सिफारिशें

बैठक में विधेयक से जुड़े विभिन्न कानूनी और प्रशासनिक पहलुओं की समीक्षा की गई। समिति ने निष्कर्ष निकाला कि “एक राष्ट्र – एक चुनाव” विधेयक को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं। राम नाथ कोविंद ने कहा कि यह विचार संविधान के अनुरूप है। साल्वे की दलीलों को समिति के अन्य सदस्यों ने भी महत्वपूर्ण माना। समिति ने चुनाव आयोग और अन्य संस्थाओं से आगे की प्रक्रिया पर विचार करने को कहा। इस विधेयक को लागू करने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सुधार आएगा। इससे देश में चुनावी खर्च भी कम होगा।

हरीश साल्वे के समर्थन से “एक राष्ट्र – एक चुनाव” विधेयक को कानूनी वैधता मिली है। उनकी राय से यह स्पष्ट हुआ कि यह विधेयक संविधान-सम्मत है। चुनावी प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने में यह प्रस्ताव सहायक हो सकता है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने इसकी व्यवहारिकता पर सवाल उठाए हैं। सरकार अब इस विधेयक को लागू करने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। इसके लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता भी हो सकती है। आने वाले समय में इस पर और चर्चाएं होने की संभावना है।


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