महाकुंभ 2025: एकता, आस्था और राष्ट्रीय चेतना का भव्य संगम | लोकसभा में क्या बोले पीएम मोदी

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली, (18 मार्च 2025): प्रधानमंत्री ने लोकसभा में प्रयागराज महाकुंभ 2025 पर संबोधित करते हुए इसे भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का विराट उत्सव बताया। उन्होंने कहा कि यह आयोजन न केवल श्रद्धा और आस्था का प्रतीक था, बल्कि राष्ट्रीय एकता और देश की सामूहिक चेतना का भी प्रतिबिंब बना।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में प्रयागराज की जनता, उत्तर प्रदेश सरकार और आयोजन से जुड़े सभी कर्मयोगियों का आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ को सफल बनाने में पूरे समाज और प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस आयोजन के माध्यम से भारत की अद्वितीय परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों की झलक पूरी दुनिया ने देखी।

महाकुंभ: एक ऐतिहासिक पड़ाव

प्रधानमंत्री ने महाकुंभ की तुलना भारतीय इतिहास के उन महत्वपूर्ण मोड़ों से की, जिन्होंने राष्ट्र को नई दिशा दी। उन्होंने भक्ति आंदोलन, स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के “दिल्ली चलो” नारे और महात्मा गांधी के दांडी मार्च का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रयागराज महाकुंभ भी वैसा ही एक ऐतिहासिक पड़ाव है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा।

विश्व स्तर पर भारतीय संस्कृति का प्रभाव

प्रधानमंत्री ने महाकुंभ की वैश्विक छवि को रेखांकित करते हुए बताया कि हाल ही में मॉरीशस यात्रा के दौरान वे प्रयागराज से पवित्र जल लेकर गए थे। जब यह जल मॉरीशस के गंगा तालाब में अर्पित किया गया, तो वहां भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत माहौल देखने को मिला। यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति और परंपराएं सिर्फ भारत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरी दुनिया में सम्मान और श्रद्धा की दृष्टि से देखी जाती हैं।

नवयुवकों में बढ़ती आस्था और परंपराओं से जुड़ाव

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का युवा गर्व के साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत को अपना रहा है। महाकुंभ में युवा पीढ़ी की भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि हमारी परंपराएं केवल अतीत की धरोहर नहीं हैं, बल्कि भविष्य की दिशा भी तय कर रही हैं। जब समाज अपनी जड़ों से जुड़ता है, तो आत्मविश्वास और आपसी सद्भाव भी मजबूत होता है।

महाकुंभ से एकता और भाईचारे का संदेश

महाकुंभ 2025 में देश के हर कोने से लाखों श्रद्धालु आए और संगम तट पर “हर-हर गंगे” के जयघोष के साथ भारत की एकता का परिचय दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आयोजन ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को सशक्त करता है। यहां भाषा, क्षेत्र, जाति या वर्ग का कोई भेद नहीं था, बल्कि सब एक ही आध्यात्मिक चेतना से बंधे हुए थे।

नदी संरक्षण की प्रेरणा

प्रधानमंत्री ने महाकुंभ से मिली एक और महत्वपूर्ण सीख पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देशभर की नदियों की रक्षा के लिए हमें “नदी उत्सव” जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे जल संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और आने वाली पीढ़ियों को नदियों के महत्व को समझने का अवसर मिलेगा।

महाकुंभ से निकला अमृत: आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम

अपने संबोधन के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा कि महाकुंभ से जो सकारात्मक ऊर्जा और प्रेरणा मिली है, वह देश की एकता और विकास के मार्ग को और सशक्त करेगी। यह आयोजन भारत की शक्ति, श्रद्धा और संकल्पों की सिद्धि का सशक्त माध्यम बनेगा। उन्होंने आयोजन से जुड़े सभी लोगों को बधाई दी और देशवासियों को महाकुंभ की सफलता के लिए नमन किया।

महाकुंभ 2025 केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक शक्ति का एक भव्य प्रदर्शन भी था। इसने न केवल राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया, बल्कि आध्यात्मिक चेतना को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इस आयोजन की सफलता भारत के भविष्य के प्रति नई उम्मीद और विश्वास को दर्शाती है, जो आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की ओर एक और सशक्त कदम है।।


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