मुंबई (15 मार्च 2025): बॉलीवुड में इन दिनों जहां बड़े प्रोडक्शन हाउस नए-नए प्रयोग कर रहे हैं, वहीं कुछ युवा फिल्मकार भी सिनेमा को नई दिशा देने में जुटे हैं। इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ गया है निर्देशक अविनाश दास का, जिनकी नई फिल्म ‘इन गलियों में’ सोशल मीडिया और दर्शकों के एक खास वर्ग में खूब चर्चा बटोर रही है। यह फिल्म प्रसिद्ध लेखक वसु मालवीय को उनके बेटे पुनर्वसु द्वारा श्रद्धांजलि है। पुनर्वसु ने न सिर्फ इस फिल्म की पटकथा लिखी है, बल्कि इसके अधिकतर गीत भी उन्हीं के शब्दों से सजे हैं। इन गीतों में वही मिठास और गहराई है, जो कभी संजय लीला भंसाली की सुपरहिट फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ के गानों में देखने को मिली थी। यही वजह है कि यह फिल्म बॉलीवुड की मसाला फिल्मों से अलग, साहित्य और कला प्रेमियों के लिए एक बेहतरीन सौगात बनकर उभरी है।
फिल्म की कहानी
यदुनाथ फिल्म्स के बैनर तले बनी इस फिल्म की ज्यादातर शूटिंग लखनऊ और उसके आसपास हुई है। फिल्म की कहानी दो गलियों – राम गली और रहीम गली के इर्द-गिर्द घूमती है, जो हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पेश करती हैं। यह दोनों गालियां सालों से एक साथ मिलकर होली का त्योहार मनाती हैं। फिल्म में हरि राम और शब्बो नाम के दो किरदार हैं, जो गली में सब्जी बेचकर अपनी जिंदगी गुजारते हैं। शब्बो के माता-पिता नहीं हैं, जबकि हरि राम अपनी मां के साथ रहता है। इसी गली में एक और अहम किरदार मिर्जा साहब (जावेद जाफरी) की चाय और कबाब की दुकान है, जो गली के लोगों के लिए मुलाकात और बातचीत का केंद्र बनी रहती है। मिर्जा साहब एक शायर हैं और हमेशा मुहब्बत का पैगाम देते रहते हैं।
लेकिन कहानी तब नया मोड़ लेती है, जब चुनावी माहौल में एक नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता में फूट डालने की साजिश करता है। वह भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के दौरान गली में बड़ी स्क्रीन लगवाकर सांप्रदायिक दंगे भड़काने की योजना बनाता है। लेकिन क्या उसका यह नापाक इरादा पूरा हो पाता है या राम-रहीम गली के लोग मिलकर उसे नाकाम कर देते हैं? यह जानने के लिए आपको ‘इन गलियों में’ की यात्रा करनी होगी।
कलाकारों की शानदार परफॉर्मेंस
फिल्म में जावेद जाफरी, इश्तियाक खान, सुशांत सिंह, अवंतिका दसानी, विवान शाह, राजीव ध्यानी और हिमांशु वाजपेयी जैसे बेहतरीन कलाकार हैं। हालांकि, फिल्म की असली जान जावेद जाफरी हैं, जो अपने शानदार अभिनय से कहानी को गहराई और मजबूती देते हैं। उनका किरदार मिर्जा साहब न सिर्फ लोगों को जोड़ने का काम करता है, बल्कि समाज को एक सकारात्मक संदेश भी देता है।
गीत-संगीत और निर्देशन
फिल्म का संगीत और गीत इसकी आत्मा हैं। पुनर्वसु ने खुद इसके अधिकांश गीत लिखे हैं और उनकी शुरुआती धुनें भी तैयार की हैं। इन गानों में एक अलग तरह की मिठास और गहराई है, जो आज की बॉलीवुड फिल्मों में कम ही सुनने को मिलती है। अविनाश दास का निर्देशन इस फिल्म को और भी खास बना देता है, क्योंकि उन्होंने छोटे-छोटे भावनात्मक और सामाजिक मुद्दों को बखूबी पर्दे पर उतारा है।
क्यों देखें यह फिल्म?
अगर आप मसाला फिल्मों से हटकर एक अच्छी, संवेदनशील और सामाजिक संदेश देने वाली फिल्म देखना चाहते हैं, तो ‘इन गलियों में’ आपके लिए परफेक्ट चॉइस हो सकती है। यह फिल्म सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में टैक्स फ्री होनी चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देख सकें और समझ सकें कि धर्म और राजनीति के नाम पर लोगों को बांटना कितना खतरनाक हो सकता है।
होली के इस खास मौके पर भाईचारे और प्यार का पैगाम देती इस फिल्म को जरूर देखें। दो घंटे से भी कम अवधि की यह फिल्म आपको शुरुआत से अंत तक बांधे रखेगी और एक मजबूत संदेश देकर जाएगी – मजहब से ऊपर है इंसानियत!।।
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