नई दिल्ली (19 फरवरी 2025): देशभर में आज 19 फरवरी को मराठा सम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाई जा रही है। इस मौके पर देशभर के सभी दिग्गज राजनीतिक हस्तियों ने उन्हें याद किया और राष्ट्र के लिए उनके योगदान को एवं उनके विचारों को आत्मसात करने का संकल्प लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवाजी महाराज के जयंती पर उन्हें याद करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर मराठी में अपना विचार साझा किया। जिसका हिन्दी अनुवाद है “छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के अवसर पर मैं उन्हें नमन करता हूँ। उनके पराक्रम और दूरदर्शी नेतृत्व ने स्वराज्य की नींव रखी, जिससे अनेक पीढ़ियों को साहस और न्याय के मूल्यों को संजोने की प्रेरणा मिली। वे हमें एक सशक्त, आत्मनिर्भर और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए प्रेरित करते हैं।”
गृह मंत्री अमित शाह ने संदेश देते हुए कहा “‘हिंदवी स्वराज्य’ का उद्घोष करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज जी का जीवन नीति, कर्तव्य और धर्मपरायणता का संगम था। कट्टरपंथी आक्रांताओं के विरुद्ध जीवनपर्यंत संघर्ष कर सनातन स्वाभिमान के धर्म ध्वज रक्षक छत्रपति शिवाजी महाराज जी एक राष्ट्रनिर्माता के तौर पर सदैव स्मरणीय रहेंगे। “शिव जयंती के अवसर पर अद्वितीय साहस के प्रतीक, छत्रपति शिवाजी महाराज जी को कोटिशः नमन।”
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर लिखा “छत्रपति शिवाजी महाराज जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन और अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। अपने साहस और शौर्य से उन्होंने हमें निडरता और पूरे समर्पण के साथ आवाज़ उठाने की प्रेरणा दी। उनका जीवन हम सभी के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेगा।”
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती भारत, विशेष रूप से महाराष्ट्र में, अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह दिन 19 फरवरी को पड़ता है और इसे मराठा साम्राज्य के संस्थापक के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। शिवाजी महाराज न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि वे एक कुशल प्रशासक और रणनीतिकार भी थे, जिन्होंने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की। शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनके पिता शहाजीराजे भोसले बीजापुर सल्तनत में एक उच्च पदस्थ सेना नायक थे, जबकि उनकी माता जीजाबाई ने उन्हें हिंदू संस्कृति, धर्म और नीतिशास्त्र की शिक्षा दी। उनकी माता ने उनमें स्वतंत्रता और स्वाभिमान की भावना विकसित की, जिससे शिवाजी ने कम उम्र में ही नेतृत्व कौशल विकसित कर लिया।
16 वर्ष की आयु तक शिवाजी महाराज ने अपने आसपास के क्षेत्रों में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए एक सेना संगठित कर ली थी। 1645 में तोरणा किला जीतकर उन्होंने मराठा साम्राज्य के विस्तार की नींव रखी। इसके बाद उन्होंने राजगढ़, सिंहगढ़ और पुरंदर किलों पर विजय प्राप्त की, जिससे उनकी ताकत बढ़ती गई।शिवाजी महाराज का प्रमुख संघर्ष मुगलों, आदिलशाही और निजामशाही से था। उन्होंने अपनी रणनीतिक सोच और छापामार युद्धनीति (गुरिल्ला वारफेयर) का उपयोग करके कई कठिन युद्धों में जीत हासिल की। उनके सबसे प्रसिद्ध अभियानों में 1664 में सूरत की लूट और 1666 में आगरा से उनकी साहसिक बच निकलने की घटना शामिल है, जब वे औरंगजेब द्वारा बंदी बनाए गए थे।
शिवाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्धनीति को विकसित किया, जिसे “शिवसूत्र” के नाम से जाना जाता है। इस युद्धनीति के तहत उन्होंने दुश्मनों पर अचानक आक्रमण कर उन्हें पराजित किया और फिर सुरक्षित स्थानों पर लौट गए। यह रणनीति बड़े और संगठित शत्रुओं के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हुई। 6 जून 1674 को शिवाजी महाराज का भव्य राज्याभिषेक रायगढ़ किले में हुआ। इस अवसर पर उन्हें “छत्रपति” की उपाधि प्रदान की गई। यह घटना मराठा साम्राज्य के स्वतंत्र अस्तित्व को स्थापित करने का प्रतीक बनी।
शिवाजी महाराज ने भारतीय इतिहास में पहली बार एक मजबूत नौसेना का निर्माण किया। उन्होंने तटीय रक्षा के लिए सिंधुदुर्ग और विजयदुर्ग जैसे किलों का निर्माण कराया, जिससे विदेशी आक्रमणकारियों और मुगलों के समुद्री हमलों का प्रभावी रूप से मुकाबला किया जा सका। शिवाजी महाराज ने एक संगठित प्रशासन की नींव रखी। उन्होंने अष्टप्रधान मंडल (आठ मंत्रियों की परिषद) की स्थापना की, जिसमें प्रत्येक मंत्री के पास विशिष्ट कार्यभार था। उनकी राजस्व प्रणाली, न्याय प्रणाली और सैनिक संगठन आधुनिक समय के प्रशासनिक ढांचे की नींव मानी जाती है।
शिवाजी महाराज सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उन्होंने अपने राज्य में मुस्लिम प्रजा की सुरक्षा सुनिश्चित की और उनके धार्मिक स्थलों को कोई नुकसान नहीं पहुँचने दिया। वे न्यायप्रिय शासक थे और हमेशा गरीबों तथा किसानों के हित में निर्णय लेते थे।
शिवाजी महाराज और मुगल सम्राट औरंगजेब के बीच कई संघर्ष हुए। औरंगजेब ने उन्हें दबाने के लिए कई बार अपने सेनापतियों को भेजा, लेकिन शिवाजी की रणनीति के आगे मुगलों को बार-बार हार का सामना करना पड़ा। 1666 में शिवाजी महाराज को औरंगजेब ने आगरा बुलाकर बंदी बना लिया, लेकिन अपनी चतुराई और साहस से वे मिठाई के टोकरे में छिपकर आगरा से भाग निकले। यह घटना उनकी असाधारण बुद्धिमत्ता का परिचायक थी।
शिवाजी महाराज ने एक मजबूत और अनुशासित सेना का गठन किया। उन्होंने हल्के और तेज-तर्रार घुड़सवारों की टुकड़ियों को संगठित किया, जिससे उनकी सेना अधिक गतिशील और प्रभावी बन गई। शिवाजी महाराज ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर नियम बनाए। उनकी सेना में महिलाओं के प्रति कोई भी दुर्व्यवहार करने वाले सैनिकों को कठोर दंड दिया जाता था।
शिवाजी महाराज ने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मुगलों और विदेशी व्यापारियों की एकाधिकार नीति को तोड़ा और किसानों व व्यापारियों को संरक्षण प्रदान किया। शिवाजी महाराज के अंतिम वर्ष चुनौतियों से भरे थे। उन्होंने मुगलों और अन्य शत्रु राज्यों के खिलाफ लगातार संघर्ष किया। उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगा, लेकिन वे अंतिम समय तक अपने साम्राज्य की रक्षा में लगे रहे।
3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका प्रभाव बना रहा और उनके उत्तराधिकारी संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य को आगे बढ़ाया। बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शिवाजी जयंती को राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने के लिए मनाने की शुरुआत की। यह आज भी महाराष्ट्र, कर्नाटक और अन्य राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है।
आज भी शिवाजी महाराज की नीतियाँ और रणनीतियाँ भारतीय सेना, प्रशासन और राजनीति के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं। उनके नेतृत्व कौशल से प्रबंधन और रणनीतिक अध्ययन में भी महत्वपूर्ण शिक्षाएँ ली जाती हैं।शिवाजी महाराज का आदर्श शासन, न्यायप्रियता और बहादुरी आज भी भारतीय युवाओं और नेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी छापामार युद्धनीति को आज भी सैन्य रणनीतियों में लागू किया जाता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन साहस, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक कौशल का प्रतीक है। उनकी जयंती न केवल एक ऐतिहासिक उत्सव है, बल्कि राष्ट्रप्रेम, साहस और नेतृत्व की सीख देने वाला पर्व भी है। उनकी शिक्षाएँ भारत के गौरवशाली अतीत और उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती हैं।।
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