प्रेम केवल स्त्री – पुरुष का नहीं, आत्मसम्मान, करुणा और संपूर्ण सृष्टि का जुड़ाव है: डॉ वंदना शर्मा

टेन न्यूज़ नेशनल

नई दिल्ली (15 फरवरी 2025): हर साल 14 फरवरी को मनाया जाने वाला वैलेंटाइन डे प्रेम और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। यह दिन पश्चिमी देशों से आया एक ऐसा उत्सव है, जो अब भारत समेत कई अन्य देशों में भी लोकप्रिय हो चुका है। आमतौर पर इसे प्रेमी-प्रेमिका के प्रेम के रूप में देखा जाता है, लेकिन क्या प्रेम का अर्थ केवल रोमांटिक रिश्तों तक सीमित है? भारतीय दर्शन प्रेम को एक व्यापक और आध्यात्मिक रूप में देखता है, जहां माता-पिता, गुरु, समाज और स्वयं से प्रेम भी उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है।

इस अवसर पर टेन न्यूज़ नेटवर्क द्वारा एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का संचालन टेन न्यूज़ नेटवर्क के फाउंडर गजानन माली ने किया और दर्शकों को प्रेम के वास्तविक स्वरूप को समझने की प्रेरणा दी। इस खास चर्चा में मुख्य वक्ता डॉ. वंदना शर्मा रहीं, जो भारतीय दर्शन की विद्वान, चार पुस्तकों की लेखिका, और दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. जाकिर हुसैन कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने हाल ही में मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में भारतीय दर्शन पर विशेष व्याख्यान दिया है और 100 से अधिक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों का आयोजन कर चुकी हैं।

प्रेम का विश्लेषण: माता-पिता, आत्म-प्रेम और ब्रह्म की अवधारणा

वेलेंटाइन डे को लेकर चर्चा की शुरुआत इस विचार से हुई कि प्रेम केवल स्त्री-पुरुष तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक दायरा है। डॉ. वंदना शर्मा ने प्रेम को विभाजित दृष्टिकोण से देखने की प्रवृत्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “हमारे शरीर के परमाणु भी एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, इसीलिए वे एक साथ जुड़े हुए हैं। यदि वे प्रेम न करें, तो हमारा अस्तित्व ही संभव नहीं होता।”

उन्होंने प्रेम के विभिन्न आयामों को समझाते हुए कहा कि “प्रेम केवल माता-पिता, स्त्री-पुरुष या परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्म-प्रेम, प्रकृति से प्रेम, और संपूर्ण सृष्टि के प्रति प्रेम का भाव भी है। भारतीय दर्शन में प्रेम को ईश्वर का स्वरूप माना गया है। करुणा, मैत्री और दया सभी प्रेम के ही रूप हैं, और घृणा या ईर्ष्या भी प्रेम का ही परिवर्तित रूप है।”

बाजारवाद और वेलेंटाइन डे का प्रसार

डॉ. वंदना शर्मा ने बताया कि वेलेंटाइन डे पश्चिमी देशों का उत्सव है, जो बाजारवाद के कारण भारत में तेजी से फैल रहा है। उन्होंने कहा, “बाजारवाद का सबसे बड़ा लक्ष्य जेनरेशन ज़ी (Gen Z) है। इन युवाओं के मन में उपभोक्तावादी प्रवृत्ति विकसित की जाती है, जिससे वे फूल, ग्रीटिंग कार्ड और अन्य वेलेंटाइन डे उत्पादों की ओर आकर्षित होते हैं। कामवासना को बढ़ावा देना आसान होता है, और बाजार इसे भुनाने में लगा रहता है।”

प्रेम को एक दिन तक सीमित करने की आवश्यकता नहीं

डॉ. शर्मा ने भारतीय संस्कृति में प्रेम के महत्व को बताते हुए कहा, “भारतीय दर्शन के अनुसार प्रेम को मनाने के लिए किसी एक विशेष दिन की आवश्यकता नहीं है। यदि जीवन प्रेम में स्थित हो, तो हर दिन एक उत्सव बन जाता है। मातृ-पितृ प्रेम के लिए मदर्स डे और फादर्स डे जैसे विशेष दिनों की जरूरत नहीं होती, बल्कि हमें पूरे जीवनभर अपने माता-पिता के प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट करना चाहिए।”

उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी को सच्चा प्रेम है, तो उसे “आजीवन सत्य और सात्त्विकता में स्थिर रहना चाहिए।”

भारतीय शिक्षा प्रणाली और दर्शन की उपेक्षा

डॉ. वंदना शर्मा ने लॉर्ड मैकाले की शिक्षा प्रणाली का उल्लेख करते हुए कहा कि इसने भारतीय शिक्षा को बहुत हानि पहुंचाई। उन्होंने दुख व्यक्त किया कि “आज भी भारतीय दर्शनशास्त्र को वह गरिमा प्राप्त नहीं है, जो पश्चिमी विचारधाराओं को मिलती है। बड़े विश्वविद्यालयों में भी भारतीय दर्शनशास्त्र को पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता।”

सिनेमा और प्रेम की प्रस्तुति

बॉलीवुड फिल्मों में प्रेम के चित्रण पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि “बॉलीवुड की स्क्रिप्ट पहले की तुलना में कमजोर हो गई है। जहां गाइड जैसी फिल्मों में प्रेम का वास्तविक चित्रण था, वहीं आज की फिल्मों में प्रेम को केवल भौतिक आकर्षण तक सीमित कर दिया गया है।”

उन्होंने प्रेम पर आधारित कुछ फिल्मों की सिफारिश भी की:

कन्नड़ फिल्म ‘चार्ली 777’, जो एक दंपति और एक पशु के बीच के प्रेम को दर्शाती है।

हिंदी फिल्म ‘गाइड’, जिसमें प्रेम के गहरे आयामों को दिखाया गया है।

गजानन माली ने भी इस चर्चा में हिस्सा लेते हुए ‘मदर इंडिया’ का उदाहरण दिया और बताया कि “इस फिल्म में माता-पिता द्वारा बच्चों के लिए किए गए संघर्ष और ग्रामीण समाज में प्रेम की अनूठी झलक देखने को मिलती है।”

राधा-कृष्ण और राम-सीता का प्रेम: एक विश्लेषण

राधा-कृष्ण और राम-सीता के प्रेम पर चर्चा करते हुए डॉ. वंदना शर्मा ने कहा, “आज का प्रेम मुख्य रूप से भौतिक आकर्षण पर आधारित है, जबकि राम और सीता का प्रेम त्याग, कर्तव्य और दिव्यता का प्रतीक था। राम और सीता केवल एक दंपति नहीं थे, बल्कि वे शक्ति के दो स्वरूप थे, जो इस धरती पर लोगों को प्रेम और धर्म का पाठ सिखाने आए थे।”

सोशल मीडिया और आधुनिक समाज में प्रेम की धारणा

डॉ. शर्मा ने सोशल मीडिया और सिनेमा के प्रभाव पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि जब कोई संस्कृति बार-बार किसी परंपरा को अपनाती है, तो वह धीरे-धीरे सामान्य लगने लगती है। उन्होंने कहा, “हमारे दिमाग में ‘मिरर न्यूरॉन्स’ होते हैं, जो हमें दूसरों की नकल करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए, जब समाज में कोई विशेष उत्सव मनाया जाता है, तो लोग उसे अपनाने लगते हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि “वेलेंटाइन डे केवल प्रेमी-प्रेमिका तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे माता-पिता, गुरु और मित्रों के साथ भी मनाया जा सकता है। प्रेम को केवल एक रिश्ते में सीमित नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे एक व्यापक दृष्टिकोण से देखना चाहिए।”

जेनरेशन ज़ी को संदेश

आधुनिक युवाओं (Gen Z) को संदेश देते हुए डॉ. वंदना शर्मा ने कहा कि “आज की पीढ़ी तकनीक और ज्ञान में बहुत आगे है। उन्हें अपनी आधुनिक सोच को बनाए रखते हुए भारतीय संस्कृति और मूल्यों से भी जुड़ा रहना चाहिए। जो पेड़ अपनी जड़ों से कट जाता है, वह जल्दी सूख जाता है।”

अंत में, उन्होंने गजानन माली और टेन न्यूज़ की पूरी टीम का आभार व्यक्त किया और कहा कि टेन न्यूज से उन्हें भी बहुत कुछ सीखने को मिलता रहा है।

इस विशेष चर्चा ने प्रेम के विभिन्न आयामों को उजागर किया और यह समझाने का प्रयास किया कि प्रेम केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि जीवनभर निभाई जाने वाली भावना है। डॉ. वंदना शर्मा ने प्रेम के दार्शनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर विचार प्रस्तुत किए और युवाओं को अपने मूल्यों और परंपराओं से जुड़े रहने का संदेश दिया।

टेन न्यूज़ नेटवर्क इस प्रकार के ज्ञानवर्धक चर्चाओं को आगे भी जारी रखेगा, ताकि समाज को सकारात्मक और विचारशील दृष्टिकोण प्रदान किय जा सके।।


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