दिल्ली हाईकोर्ट: दहेज कानून का दुरुपयोग, पति और परिवार को फंसाने की बढ़ रही प्रवृत्ति
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (14 फरवरी 2025): दिल्ली हाईकोर्ट ने पति और उसके परिवार को झूठे दहेज के मामलों में फंसाने की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A, जिसे महिलाओं को दहेज उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया था, कई मामलों में बदले की भावना से पति और उसके परिवार को परेशान करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अदालत ने 2017 में दर्ज एक एफआईआर को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
जस्टिस अमित महाजन की पीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि शिकायतकर्ता महिला और उसके पूर्व पति के बीच तीन साल पहले ही तलाक की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। तलाक का आदेश 2019 में पारित हो गया था, लेकिन महिला ने 3 साल बाद 2022 में दहेज उत्पीड़न की एफआईआर दर्ज करवाई। अदालत ने इसे संदेहास्पद बताते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में देर से लगाए गए आरोप कई बार दुर्भावना से प्रेरित होते हैं। अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि महिला की शिकायत में कोई ठोस सबूत या विशेष जानकारी नहीं थी। केवल सामान्य आरोप लगाए गए थे, जो यह दर्शाते हैं कि मामला कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग हो सकता है। जस्टिस महाजन ने कहा, कि धारा 498A को महिलाओं को सुरक्षा देने के उद्देश्य से बनाया गया था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल कई बार पति और उसके परिवार को प्रताड़ित करने के लिए किया जा रहा है।
हाईकोर्ट ने कहा कि कई मामलों में, वकीलों की सलाह पर असल घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है और झूठे आरोप लगाए जाते हैं। अदालत ने यह भी माना कि ऐसे झूठे मामलों के कारण वास्तव में पीड़ित महिलाओं की शिकायतों की गंभीरता भी कम हो जाती है, जिससे उन्हें न्याय मिलने में देरी हो सकती है। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि दहेज उत्पीड़न और महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक गंभीर सामाजिक समस्या है। जस्टिस महाजन ने कहा, यह अदालत इस बात से अनजान नहीं है कि दहेज उत्पीड़न की वजह से कई महिलाओं को अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ता है। ऐसे मामलों में दोषियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए। लेकिन अगर आरोप अस्पष्ट और बहुत देर से लगाए गए हैं, तो यह न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा।
हाईकोर्ट के इस फैसले से झूठे दहेज मामलों पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है। यह उन पति और परिवारों के लिए राहत भरा कदम है, जो बेवजह कानूनी मुकदमों में फंस जाते हैं। साथ ही, यह निर्णय न्यायिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता है, जिससे असली पीड़ितों को न्याय मिल सके और झूठे मामलों से निर्दोष लोग बच सकें। दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला दहेज कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जहां महिलाओं को सुरक्षा देना जरूरी है, वहीं झूठे आरोपों से निर्दोष लोगों को बचाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। अब देखना होगा कि इस फैसले का भविष्य में वैवाहिक मुकदमों और दहेज कानूनों के इस्तेमाल पर क्या असर पड़ता है।।
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