भारत की प्रौद्योगिकी कूटनीति: नेहरू से मोदी तक | टेन न्यूज विशेष

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (09 फरवरी 2025): 1950 के दशक में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और वैज्ञानिक होमी भाभा के नेतृत्व में भारत ने परमाणु और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की नींव रखी, जिसमें अमेरिका की सहायता भी महत्वपूर्ण रही। 1970 के दशक में, आंतरिक लोकलुभावनवाद, नौकरशाही बाधाओं और अमेरिका विरोध के कारण प्रगति धीमी हो गई, खासकर 1974 के परमाणु परीक्षण के बाद लगे वैश्विक प्रतिबंधों के कारण। 1980 के दशक में इंदिरा और राजीव गांधी ने तकनीकी सहयोग को फिर से गति दी, खासकर दूरसंचार और कंप्यूटर क्षेत्र में।

2014 के बाद, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में तकनीकी कूटनीति को नया बल मिला। भारत ने अमेरिका के साथ उन्नत प्रौद्योगिकियों में सहयोग को प्राथमिकता दी, खासकर एआई, अर्धचालकों और परमाणु समझौतों में।

प्रौद्योगिकी कूटनीति में भारत की चुनौतियां

भारत की तकनीकी प्रगति में कई बाधाएं रही हैं। 1970 के दशक में आर्थिक लोकलुभावनवाद और नौकरशाही जटिलताओं ने तकनीकी विकास को धीमा कर दिया। अमेरिका विरोधी भावना के कारण तकनीकी सहयोग में बाधा आई, जबकि 1974 के परमाणु परीक्षण के बाद अप्रसार नीतियों के चलते वैश्विक प्रतिबंध लगे। इसके अलावा, निजी क्षेत्र को लंबे समय तक हाशिए पर रखा गया, जिससे नवाचार प्रभावित हुआ।

एक और महत्वपूर्ण चुनौती थी “प्रतिभा पलायन”। सीमित अवसरों के कारण भारतीय वैज्ञानिक और इंजीनियर बड़ी संख्या में अमेरिका और अन्य विकसित देशों की ओर रुख करने लगे, जिससे भारत को तकनीकी क्षेत्र में कुशल जनशक्ति की कमी महसूस हुई।

भारत की वर्तमान तकनीकी कूटनीति और इसके प्रभाव

मोदी सरकार ने प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देते हुए वैश्विक सहयोग को मजबूत किया है। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच भारत एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बन गया है। अमेरिका और भारत अब तकनीकी आपूर्ति श्रृंखला को चीन पर निर्भरता कम करने के लिए पुनर्गठित कर रहे हैं। इसके तहत दोनों देशों ने आईसीईटी (महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल) जैसे कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया है।

इस नए दौर में भारत को कई क्षेत्रों में लाभ हुआ है

•व्यापक तकनीकी सहयोग – अर्धचालक, एआई, जैव प्रौद्योगिकी, क्वांटम कंप्यूटिंग और स्वच्छ ऊर्जा में संयुक्त प्रयास।

•औद्योगिक आधुनिकीकरण – नागरिक और सैन्य दोनों क्षेत्रों में उन्नत तकनीकों का विकास।

•आपूर्ति श्रृंखला पुनर्व्यवस्था – चीन पर वैश्विक निर्भरता कम करने और अमेरिका, जापान व ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ गठजोड़ बनाने का प्रयास।

•डिजिटल और हरित प्रौद्योगिकियां – एआई, अर्धचालकों और परमाणु प्रौद्योगिकी में निवेश से भारत की तकनीकी क्षमताएं बढ़ रही हैं।

 

भविष्य की चुनौतियां और संभावनाएं

हालांकि भारत ने तकनीकी क्षेत्र में लंबी छलांग लगाई है, लेकिन चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। नौकरशाही बाधाएं, धीमी अनुसंधान गति और उच्च गुणवत्ता वाली तकनीकी शिक्षा की आवश्यकता बनी हुई है। इसके अलावा, घरेलू उद्योगों और स्टार्टअप्स को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए अधिक समर्थन की जरूरत है।

भारत की तकनीकी कूटनीति ने वैश्विक मंच पर देश को मजबूत स्थिति में ला दिया है, लेकिन इसे सतत विकास के लिए रणनीतिक सुधारों की आवश्यकता होगी। अगर सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर काम करें, तो भारत निकट भविष्य में एक प्रमुख तकनीकी शक्ति बन सकता है।।


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