नई दिल्ली (03 फरवरी 2025): दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर राजधानी में सियासी माहौल अपने चरम पर है। सभी राजनीतिक दल पूरी ताकत से मैदान में हैं और मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। इन सबके बीच, आम आदमी पार्टी (आप), जो खुद को आम जनता की पार्टी बताती है, सवालों के घेरे में है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ‘आम आदमी पार्टी’ के उम्मीदवार वाकई आम आदमी हैं?
आम आदमी पार्टी अब ‘खास आदमी’ की पार्टी
आम आदमी की परिभाषा पर गौर करें तो वह सामान्य आय वर्ग से संबंधित होता है। उदाहरण के तौर पर, निर्धन व्यक्ति वह है जिसकी सालाना पारिवारिक आय ₹1.25 लाख से कम है। निम्न मध्यम वर्ग ₹2 लाख से ₹5 लाख के बीच आता है, जबकि मध्यम वर्ग ₹5 लाख से ₹10 लाख के बीच की आय वाले परिवार होते हैं। उच्च मध्यम वर्ग ₹10 लाख से ₹20 लाख आय वाले परिवार होते हैं, और ₹30 लाख से अधिक की आय वाले परिवार समृद्ध वर्ग में आते हैं। अब सवाल यह है कि आम आदमी पार्टी के 70 उम्मीदवारों में कितने ऐसे हैं जो इस श्रेणी में आते हैं। यदि पार्टी के अधिकतर उम्मीदवार समृद्ध या उच्च मध्यम वर्ग से हैं, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि आम आदमी पार्टी ‘आम आदमी’ की पार्टी नहीं, बल्कि ‘खास आदमी’ की पार्टी बन चुकी है।
प्रचार शैली: अरविंद केजरीवाल के इर्द गिर्द घूमती पार्टी
पार्टी की प्रचार शैली भी सवाल खड़े करती है। अरविंद केजरीवाल जिस तरह अपने चुनावी भाषणों में बातें रखते हैं, वही बातें पार्टी के अन्य नेता भी बार-बार दोहराते नजर आते हैं। हाल ही में, केजरीवाल ने एक रैली में एक महिला का जिक्र किया, जिसने कथित तौर पर कहा कि ₹2100 मिलने पर वह चांदनी चौक से दो सूट खरीदेगी और ₹100 के गोलगप्पे खाएगी। यही बात सौरभ भारद्वाज, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह जैसे नेताओं ने भी अपने भाषणों और इंटरव्यू में दोहराई। इससे यह प्रतीत होता है कि पार्टी के नेताओं के पास स्वतंत्र विचार और प्रचार की विविधता का अभाव है।
“अपनी ही माला अपने ही गले में”, प्रायोजित प्रचार अभियान
आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार को लेकर यह आरोप लगाया जाता है कि वह अपने ही प्रायोजित समर्थकों के माध्यम से एक माहौल बनाने की कोशिश करती है। कहा जाता है कि पार्टी चुनिंदा 200-300 लोगों को अपने साथ रखती है, जो हर जनसभा में नेताओं को फूलों की माला पहनाकर स्वागत करते हैं और इस तरह से एक सुनियोजित माहौल तैयार किया जाता है।
इसके अलावा, आम आदमी पार्टी पर यह भी आरोप लगता है कि वे वास्तविक रोड शो नहीं करते, बल्कि एक प्रकार का “रोड शो ऑफ” करते हैं, जहां केवल उनके प्रायोजित समर्थक ही शामिल होते हैं। ये समर्थक पार्टी और उसके नेताओं की ब्रांडिंग करने का काम करते हैं।
पार्टी के प्रचार अभियान का एक अन्य पहलू यह भी बताया जाता है कि उनके साथ एक विशेष मीडिया और डिजिटल ग्रुप सक्रिय रहता है। यह समूह आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेताओं, जैसे अरविंद केजरीवाल, आतिशी मार्लेना और अन्य वरिष्ठ नेताओं के आसपास रहता है। केवल यही लोग इन नेताओं तक पहुंच पाते हैं, उनसे बात कर सकते हैं और उनके वीडियो रिकॉर्ड करते हैं। इस तरह, पूरे प्रचार अभियान को पहले से ही एक नियोजित और प्रायोजित रूप में संचालित करने का आरोप लगाया जाता है।
आम आदमी पार्टी में आम आदमी का पहुंचना कितना मुश्किल?
इसके अलावा, आम आदमी पार्टी के नेताओं तक पहुंचने की प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठते हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता और मंत्री छोटे मीडिया समूहों या यूट्यूब चैनलों को इंटरव्यू देने से बचते हैं और केवल बड़े मीडिया समूहों के साथ बातचीत करते हैं। यदि मीडिया के लोग ही पार्टी से संवाद करने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं, तो आम जनता के लिए पार्टी तक पहुंच बनाना कितना मुश्किल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के मतदाताओं के बीच खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। लेकिन पार्टी के नेताओं की आर्थिक पृष्ठभूमि, प्रचार शैली और संवाद प्रक्रिया को लेकर उठे सवाल इसके ‘आम आदमी’ के दावे पर संदेह पैदा करते हैं। यदि पार्टी अपने मूल सिद्धांतों और वादों पर आत्ममंथन नहीं करती है, तो इसका नाम महज एक राजनीतिक नारा बनकर रह जाएगा।।
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