ग्रेटर नोएडा (24 जनवरी 2025): 14 साल पहले भट्टा-पारसौल में भूमि अधिग्रहण के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद अब प्रशासन ने कार्रवाई तेज कर दी है। सीबीसीआईडी मेरठ की टीम ने बुधवार को भट्टा, पारसौल, सक्का और आछेपुर गांवों में 27 किसानों के घरों पर कुर्की का नोटिस चस्पा किया। इन किसानों को कोर्ट में पेश होने के लिए एक माह का समय दिया गया है। यदि वे अदालत में हाजिर नहीं होते हैं, तो उनके घरों की कुर्की की जाएगी।
2011 की हिंसा और प्रशासन की कार्रवाई
मई 2011 में यमुना प्राधिकरण द्वारा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था। यह आंदोलन लगभग 20 दिनों तक चला और 7 मई को यह हिंसा में बदल गया। भट्टा गांव में किसानों और पुलिस के बीच हुई गोलीबारी में दो पुलिसकर्मियों और दो किसानों की मौत हो गई थी। इसके बाद प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई करते हुए सैकड़ों किसानों के खिलाफ हत्या, लूट और दंगा जैसी गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज किए। कई किसानों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।
27 किसानों पर कुर्की का खतरा
सीबीसीआईडी इंस्पेक्टर हरेराम यादव ने बताया कि जिन 27 किसानों के खिलाफ नोटिस जारी किया गया है, वे लंबे समय से कोर्ट में पेश नहीं हो रहे हैं। इन किसानों को एक माह का समय दिया गया है, ताकि वे अदालत में हाजिर हो सकें। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो उनके घरों की कुर्की की जाएगी। जिन किसानों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें राजीव उर्फ राजू, राकेश, चंद्रपाल, रतन सिंह, जयेंद्र, उम्मेद, अनिल, विक्टर, सुशील, कालू, जयकुमार और अन्य किसान शामिल हैं।
किसानों में हड़कंप, सरकार से न्याय की मांग
नोटिस चस्पा होने के बाद गांवों में हड़कंप मच गया है। किसान लंबे समय से सरकार से इन मुकदमों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी यह मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है। किसानों का कहना है कि 2011 की घटना के बाद से उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी है।
किसानों की पंचायत से उपजा था आंदोलन
2011 में यमुना प्राधिकरण द्वारा भूमि अधिग्रहण के दौरान क्षेत्र के 10 से अधिक गांवों के किसानों ने किसान नेता मनवीर तेवतिया के नेतृत्व में पंचायत बुलाई थी। पंचायत लगभग 20 दिनों तक चली और किसानों ने आबादी निस्तारण को मुख्य मुद्दा बनाया। लेकिन 7 मई को यह आंदोलन हिंसक हो गया।
प्रशासन का सख्त रुख
सीबीसीआईडी की इस कार्रवाई को लेकर प्रशासन का कहना है कि कोर्ट के आदेश का पालन करना अनिवार्य है। यदि किसान अदालत में पेश नहीं होते, तो कुर्की की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। वहीं, किसान संगठन इस कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं और मामले को राजनीतिक साजिश बता रहे हैं।
घटना के 14 साल बाद भी यह मामला किसानों और प्रशासन के बीच तनाव का बड़ा कारण बना हुआ है। अब यह देखना होगा कि किसान अदालत में हाजिर होते हैं या प्रशासन को सख्त कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ेगा।।
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