National News (02 December 2025): 1 दिसंबर 2025 को दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा जारी उस निर्देश ने देशभर में बहस छेड़ दी, जिसमें सभी मोबाइल कंपनियों को मार्च 2026 से बेचे जाने वाले नए फोन में संचार साथी ऐप को प्री-इंस्टॉल करने को कहा गया था। आदेश में यह भी शामिल था कि इस ऐप को फोन से हटाया या डिसेबल नहीं किया जा सकेगा। निर्देश सामने आते ही राजनीतिक विवाद शुरू हो गया, जिसके बाद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सफाई दी कि ऐप को इंस्टॉल करना और एक्टिव करना पूरी तरह वैकल्पिक होगा और इसे अनिवार्य नहीं किया जा रहा।
संचार साथी ऐप एक साइबर सुरक्षा टूल
सरकार के मुताबिक संचार साथी एक साइबर सुरक्षा टूल है, जिसे दूरसंचार विभाग ने चोरी हुए फोन को ब्लॉक करने, फ्रॉड कॉल्स पर रोक लगाने और किसी फोन के IMEI की सत्यता जांचने के लिए तैयार किया है। यह ऐप एंड्रॉयड और iOS दोनों प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है और इसे सेंट्रल इक्विपमेंट आइडेंटिटी रजिस्टर (CEIR) से जोड़ा गया है, जिसमें देश के हर मोबाइल का IMEI नंबर दर्ज रहता है। सरकार का दावा है कि इस ऐप की मदद से अब तक 37 लाख से अधिक चोरी या गुम हुए फोन को ब्लॉक किया जा चुका है।
शुरुआत में जारी प्रेस नोट में पुराने और नए सभी फोन में ऐप इंस्टॉल करने की बात कही गई थी। लेकिन विवाद बढ़ने पर केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट कहा कि यूजर चाहे तो इसे एक्टिवेट करे, चाहे तो डिलीट कर दे—यह पूरी तरह वैकल्पिक रहेगा।
सरकार का तर्क है कि नकली और डुप्लीकेट IMEI वाले मोबाइल फोन तेजी से बढ़ रहे हैं, जिनके चलते साइबर सुरक्षा से जुड़े खतरे भी बढ़े हैं। मंत्रालय के अनुसार ऐप का उद्देश्य नागरिकों को नकली फोन से बचाना और फोन आधारित गैरकानूनी गतिविधियों की ट्रैकिंग आसान बनाना है।
हालांकि, इसके बावजूद ऐप की तुलना इजरायल के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से की जाने लगी है। कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने इसे “पेगासस प्लस प्लस” बताते हुए कहा कि ऐसा ऐप सरकार को नागरिकों की निजी जिंदगी में दखल देने का रास्ता दे सकता है। सोशल मीडिया पर भी संचार साथी को निगरानी के उपकरण के रूप में देखने का ट्रेंड चलने लगा है, क्योंकि यह फोन में स्थाई रूप से मौजूद रहने वाला ऐप बन सकता था, जिसे हटाया नहीं जा सके।
राजनीतिक दलों ने भी इस कदम का विरोध किया है। कांग्रेस ने दिशा निर्देशों को असंवैधानिक करार देते हुए तत्काल वापस लेने की मांग की है। पार्टी नेताओं का कहना है कि निजता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है, और संचार साथी जैसे ऐप इसे खतरे में डाल सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला ने भी इसे निजता और व्यक्तिगत आजादी पर हमला बताते हुए कहा कि यदि ऐप हटाया नहीं जा सके, तो सरकार कॉल, मैसेज और लोकेशन तक की निगरानी कर पाएगी।
बढ़ते विरोध और निगरानी संबंधी चिंताओं के बीच केंद्र सरकार अब बैकफुट पर दिख रही है। मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दोबारा स्पष्ट किया कि संचार साथी में किसी भी तरह की जासूसी, कॉल मॉनिटरिंग या निगरानी जैसी सुविधा शामिल नहीं है और इसका इस्तेमाल केवल सुरक्षा उद्देश्यों के लिए किया गया है। विवाद के बाद सरकार ने यह निर्णय लिया कि ऐप पूरी तरह वैकल्पिक रहेगा और इसे इंस्टॉल करना या न करना पूरी तरह यूजर के हाथ में होगा।।
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