New Delhi News (24 November 2025): भारत को आज उसका 53वां चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया मिल गया। राष्ट्रपति भवन में आयोजित भव्य समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस सूर्यकांत को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीशों में शामिल रहे जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल 9 फरवरी 2027 तक रहेगा। उनका कार्यकाल लगभग 15 महीनों का होगा। शपथ ग्रहण के दौरान देश-विदेश के कई प्रमुख न्यायाधिकरणों के प्रमुख और न्यायाधीश मौजूद रहे।
अंतरराष्ट्रीय न्यायाधीशों की मौजूदगी बनी खास आकर्षण
जस्टिस सूर्यकांत के शपथ ग्रहण समारोह की सबसे खास बात यह रही कि इसमें कई देशों के मुख्य न्यायाधीशों ने शिरकत की। भूटान के CJI ल्योंपो नॉर्बू शेरिंग, ब्राजील के CJI एडसन फाचिन, केन्या की मुख्य न्यायाधीश मार्था कूम, मलेशिया के संघीय न्यायालय की जज जस्टिस नालिनी पाथमनाथन, मॉरीशस की मुख्य न्यायाधीश बीबी रेहाना मुंगली-गुलबुल, नेपाल के CJI प्रकाश मान सिंह राउत और श्रीलंका के CJI पी. पद्मन सुरेसन सहित कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि शामिल हुए। इससे समारोह की प्रतिष्ठा और बढ़ गई।

विनम्र शुरुआत: ग्रामीण पृष्ठभूमि से सुप्रीम कोर्ट तक
जस्टिस सूर्यकांत का जीवन संघर्ष और साधारण परिवेश की प्रेरक कहानी है। उनका जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले के पेटवार गांव में एक शिक्षक परिवार में हुआ। बचपन में उन्होंने गांव के सरकारी स्कूल में शिक्षा हासिल की, जहाँ बेंच तक नहीं थीं। दसवीं कक्षा की परीक्षा देने के लिए वे पहली बार कस्बे हांसी गए थे। ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकले सूर्यकांत ने अपनी मेहनत और लगन से भारतीय न्यायपालिका में शीर्ष स्थान हासिल किया।
शिक्षा और वकालत का सफर
उन्होंने 1981 में हिसार के गवर्नमेंट पीजी कॉलेज से ग्रेजुएशन और 1984 में MDU रोहतक से कानून की डिग्री ली। उसी वर्ष उन्होंने हिसार की जिला अदालत से वकालत की शुरुआत की, मगर जल्द ही 1985 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट, चंडीगढ़ शिफ्ट हो गए। जुलाई 2000 में वे हरियाणा के सबसे युवा एडवोकेट जनरल बने। मार्च 2001 में उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा मिला। जनवरी 2004 में उन्हें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का स्थायी जज नियुक्त किया गया।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उल्लेखनीय योगदान
चंडीगढ़ में 14 वर्षों तक जज के रूप में अपनी सेवाएँ देते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण फैसले दिए। इनमें जेल में बंद कैदियों को वैवाहिक मुलाकात या कृत्रिम गर्भाधान के जरिए संतान का अधिकार देने वाला फैसला खास रहा। वे 2017 में डेरा सच्चा सौदा से जुड़ी हिंसा मामले की जांच और डेरे की आर्थिक अनियमितताओं की CBI जांच के आदेश देने वाली पीठ का भी हिस्सा थे। अक्टूबर 2018 को वे हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
सुप्रीम कोर्ट में लिखे कई ऐतिहासिक फैसले
सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने करीब 80 महत्वपूर्ण फैसले लिखे। इनमें अनुच्छेद 370, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पर्यावरण संरक्षण और लैंगिक समानता से जुड़े फैसले शामिल हैं। उन्होंने 1967 के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मामले से जुड़े फैसले को खारिज कर संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खोला। दिल्ली आबकारी नीति मामले में तत्कालीन सीएम अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाले आदेश में भी वे शामिल थे। वे पेगासस निगरानी मामले में बनी जांच समिति का हिस्सा भी थे।
गंभीर और संतुलित विचारों वाले न्यायविद
जस्टिस सूर्यकांत को उनके सहयोगी एक गंभीर, संतुलित और संवेदनशील न्यायविद के रूप में जानते हैं। उन्होंने हमेशा पीड़ितों के अधिकार, सार्वजनिक संसाधनों की रक्षा, आरक्षण नीति, भूमि अधिग्रहण और संवैधानिक संतुलन बनाए रखने को प्राथमिकता दी। देश के नए CJI के रूप में उनसे न्यायिक सुधार, अदालतों में लंबित मामलों की संख्या कम करने और न्यायिक जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने की उम्मीद है। आज का दिन भारतीय न्यायपालिका के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है।।
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