New Delhi News (23 November 2025): नई दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम इस समय भारत की आर्थिक विविधता का जीवंत प्रदर्शन बन गया है। यहां पारंपरिक हस्तशिल्प, कृषि आधारित उद्यम, स्टार्टअप इनोवेशन और देश के विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक व औद्योगिक विशिष्टताएं एक ही मंच पर सजी हुई हैं। 44वां भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (आईआईटीएफ) 2025, जिसका मुख्य विषय “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” रखा गया है, 14 नवंबर से प्रारंभ हुआ और इसमें देशभर के 3,500 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए हैं। यह मेला केवल एक व्यावसायिक आयोजन नहीं, बल्कि उद्यमियों, कारीगरों, स्टार्टअप्स और ग्रामीण क्षेत्रों के निर्माताओं के लिए सीखने, बाजार समझने, खरीदारों से जुड़ने और सरकारी सहायता योजनाओं की जानकारी पाने का बड़ा प्लेटफॉर्म है।
आईआईटीएफ को भारत की अर्थव्यवस्था के उभरते चेहरे के रूप में देखा जाता है, जहां पहली पीढ़ी से लेकर अनुभवशाली उद्यमी तक अपने उत्पादों की मांग का परीक्षण करते हैं और भविष्य के लिए महत्वपूर्ण ग्राहक आधार तैयार करते हैं। 1980 से भारत व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) द्वारा आयोजित यह मेला एमएसएमई, कारीगरों और स्टार्टअप्स के लिए भारत का सबसे प्रभावी वाणिज्यिक मंच माना जाता है। पिछले वर्ष यह मेला करीब 10 लाख आगंतुकों का केंद्र रहा था। आयोजन स्थल भारत मंडपम—123 एकड़ में फैला देश का विश्व स्तरीय प्रदर्शनी परिसर—7,000 सीट वाले कन्वेंशन हॉल और सात बड़े प्रदर्शनी हॉल के साथ अंतरराष्ट्रीय आयोजनों का प्रमुख केंद्र बन चुका है।
इस वर्ष बिहार मंडप में 45 वर्षीय श्रीधी कुमारी सुर्खियों में रहीं, जो पिछले 12 वर्षों से भागलपुरी रेशम और ज़री-कढ़ाई की उत्कृष्ट साड़ियों के लिए सम्मानित होती आ रही हैं। उनके उत्पाद को जीआई टैग प्राप्त है और बिहार सरकार की महिला उद्यमिता योजनाओं ने उन्हें बड़ा संबल दिया है। इसी तरह, 49 वर्षीय तरुण पांडे नालंदा से अपनी पारंपरिक बावबूटी साड़ियों के साथ आठवीं बार मेले में शामिल हुए। वे बताते हैं कि आईआईटीएफ उनकी दो से ढाई महीने की आय के बराबर कमाई देता है और उनके स्थाई ग्राहक उन्हें “नालंदा के बुनकर” के रूप में पहचानते हैं।
महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के प्रहलाद रामराव बोर्गद, जो किसान से उद्यमी बने, अपनी ऑर्गेनिक हल्दी, दालें, मसाले और अचार के साथ मेले में पहुंचे। 2015 में ‘सूर्य किसान’ ब्रांड लॉन्च करने के बाद वे बताते हैं कि मेले ने उन्हें न केवल कमाई दी बल्कि ग्राहकों की अपेक्षाओं और बाजार की पेशेवर समझ भी प्रदान की। इससे उनकी चार से पाँच महीने की आय के बराबर लाभ मिलता है।

महाराष्ट्र मंडप में लातूर की रुक्मनी सैलज और उनकी बेटी द्वारा प्रदर्शित पारंपरिक गोधारी रजाइयाँ भी आकर्षण का केंद्र बनी रहीं। यह कला पीढ़ियों से हस्तनिर्मित रूप में तैयार की जाती है, लेकिन मशीन से बनने वाले सस्ते विकल्पों ने इसे चुनौती दी है। आईआईटीएफ उनके लिए सिर्फ बिक्री का मंच नहीं बल्कि अपनी सांस्कृतिक परंपरा को जीवित रखने का अवसर है।
वहीं झारखंड की पारंपरिक लाख की चूड़ियाँ, जिन्हें 49 वर्षीय शिल्पी झाबर मल प्रदर्शित करते हैं, मेले का एक अनोखा आकर्षण हैं। झाबर मल बताते हैं कि उनके स्टॉल से मिलने वाले ऑर्डरों से करीब 400 आदिवासी महिलाएँ रोजगार पाती हैं, जो लाख हस्तशिल्प सहकारी समिति के माध्यम से काम करती हैं।
आईआईटीएफ जैसे व्यापार मेले सीधे बिक्री के साथ-साथ दीर्घकालीन बाजार समझ, उपभोक्ता व्यवहार और ग्राहक संबंध निर्माण का बड़ा माध्यम बनते हैं। अक्सर प्रदर्शकों को त्वरित बिक्री के अलावा बाद में आने वाले ऑर्डरों से कई महीनों के बराबर कमाई होती है। इस वर्ष का आयोजन “विकसित भारत 2047” की दृष्टि के तहत किया गया है, जो भारत की आर्थिक शक्ति, राजनीतिक स्थिरता और वैश्विक व्यापार साझेदारियों को रेखांकित करता है।

शाम के समय मेले में जगमगाती रोशनी और व्यस्त मंडप एक जीवंत आर्थिक परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं, जहां हर स्टॉल अपने आप में संघर्ष, कौशल और सपनों की कहानी कहता है। श्रीधी, तरुण, प्रहलाद, रुक्मनी और झाबर जैसे हजारों उद्यमियों के लिए आईआईटीएफ वह जगह है जहां परंपरा उद्यमशीलता से मिलती है, स्थानीय प्रतिभा राष्ट्रीय पहचान पाती है, और छोटे व्यवसायों को नई गति मिलती है। अपने 44वें संस्करण में आईआईटीएफ यह साबित करता है कि भारत की आर्थिक प्रगति केवल बड़े उद्योगों पर नहीं बल्कि छोटे उद्यमियों के जुनून, रचनात्मकता और मेहनत पर भी समान रूप से निर्भर है।
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