प्रेमानंद महाराज: अनिरुद्ध कुमार पांडे से ईश्वर प्रेम में लीन जीवन की अद्भुत यात्रा

टेन न्यूज नेटवर्क

National News (25/10/2025): कानपुर के एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्मे अनिरुद्ध कुमार पांडे का जीवन आज लाखों लोगों के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। अनिरुद्ध कुमार पांडे का रूपांतरण प्रेमानंद महाराज के रूप में एक ऐसी आध्यात्मिक यात्रा है, जो श्रद्धा, तपस्या और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण से भरी हुई है। यह परिवर्तन अचानक नहीं हुआ, बल्कि बचपन से शुरू हुई एक आंतरिक साधना का परिणाम था, जो अंततः उन्हें राधा-कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह विलीन कर गई।

प्रेमानंद महाराज का जन्म 1969 में उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले के अखरी गाँव में एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके दादा सन्यासी थे, जबकि पिता शंभू पांडे और माता रामा देवी भगवान के प्रति अत्यंत श्रद्धालु थीं। बचपन से ही अनिरुद्ध धार्मिक वातावरण में पले-बढ़े और अपने बड़े भाई से भागवत पुराण का पाठ सुनते थे। धीरे-धीरे उनका मन सांसारिक पढ़ाई से हटकर आध्यात्मिक जीवन की ओर मुड़ गया।

केवल 13 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने माता-पिता का आशीर्वाद लेकर घर छोड़ दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े। उनके प्रारंभिक वर्ष वाराणसी और हरिद्वार में बीते, जहाँ उन्होंने एक संन्यासी जीवन अपनाया। उन्होंने आकाशवृत्ति का पालन किया — यानी जो भी भोजन भक्तजन देते, उसी से जीवन-निर्वाह करते थे। गंगा तट पर तपस्या, ध्यान और स्नान करते हुए उन्होंने कठोर साधना की।
वाराणसी में उन्होंने अपने पहले गुरु गौरी शरण महाराज के सान्निध्य में लगभग 15 महीनों तक आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की। प्रारंभ में वे ज्ञान मार्ग के अनुयायी थे, लेकिन धीरे-धीरे उनका मन भक्ति मार्ग की ओर आकर्षित हो गया।

उनके जीवन का निर्णायक मोड़ तब आया जब संत पंडित स्वामी राम शर्मा ने उन्हें वृंदावन में रास लीला देखने के लिए प्रेरित किया। पहले तो वे हिचकिचाए, लेकिन रास लीला के दिव्य दृश्य ने उनके हृदय को गहराई से स्पर्श किया। उसी क्षण से उन्होंने राधा-कृष्ण की भक्ति का मार्ग अपना लिया।
वृंदावन पहुँचकर उन्होंने गौरांगी शरण महाराज (जिन्हें बड़े गुरु कहा जाता है) से शरणागति मंत्र प्राप्त किया — जो पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। यहीं से उनका नया जीवन आरंभ हुआ और वे प्रेमानंद महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए।

वृंदावन में प्रेमानंद महाराज ने राधा वल्लभ सम्प्रदाय से गहरी निष्ठा के साथ जुड़कर रसिक परंपरा को आगे बढ़ाया, जो राधा-कृष्ण के प्रति परम प्रेम और भक्ति का मार्ग है। उनका नाम “प्रेमानंद” — अर्थात ईश्वरीय प्रेम का आनंद — उनके जीवन और शिक्षाओं का सच्चा प्रतिबिंब है।
आज वे एक पूजनीय संत के रूप में जाने जाते हैं, जिनकी वाणी में भक्ति, सेवा और समर्पण का संदेश निहित है। उनके प्रवचन लोगों को यह सिखाते हैं कि सच्चा आनंद भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि राधा-कृष्ण के प्रेम और भक्ति में निहित है।

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