शनि ग्रह: सत्य या मिथ्या | Sani: A Comprehensive Study of Saturn in Global Traditions पुस्तक का लोकार्पण

टेन न्यूज नेटवर्क

NEW DELHI News (03/10/2025): राजधानी दिल्ली 4 अक्टूबर 2025 को एक विशेष सांस्कृतिक और विद्वत आयोजन की साक्षी बनेगी। Constitution Club of India के डिप्टी स्पीकर हॉल में आयोजित समारोह में पुस्तक “Sani: A Comprehensive Study of Saturn in Global Traditions” का लोकार्पण किया जाएगा। यह ग्रंथ शनि ग्रह के मिथकों, परंपराओं और वैश्विक दृष्टिकोण का गहन अध्ययन प्रस्तुत करता है।

इस मौके पर देश के कई प्रख्यात विद्वान हस्तियां मौजूद रहेंगी जिनमें कलराज मिश्र (पूर्व राज्यपाल, राजस्थान एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री), श्याम जाजू (पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपा), प्रो. रामनाथ झा (स्कूल ऑफ संस्कृत स्टडीज़, जेएनयू) और पद्मश्री आचार्य विश्वनाथ (Jonas Massetti) (आचार्य, वेदांत-योग) शामिल हैं। पुस्तक का प्रकाशन Originals (Low Price Publications) ने किया है।

यह पुस्तक डॉ. वंदना शर्मा ‘दिया’ और मृत्युंजय शर्मा द्वारा लिखी गई है, जबकि अनुवाद कार्य डॉ. कौशलेंद्र सिंह, पुरुषोत्तम बिहारी और सनी ने किया है।

लेखिका की चार वर्षों की साधना

मुख्य लेखिका डॉ. वंदना शर्मा ‘दिया’ (सहायक प्रोफेसर, ZHDC दिल्ली विश्वविद्यालय; सलाहकार सदस्य, सेंसर बोर्ड; अनुसंधानकर्ता, IIAS शिमला) ने इस पुस्तक को तैयार करने की पृष्ठभूमि साझा की। उन्होंने कहा, इस पुस्तक को लिखने में हमें चार वर्ष का समय लगा। इसकी प्रेरणा हमें तब मिली जब हमारे परिवार पर एक गंभीर संकट आया। उस कठिन समय में मृत्युंजय शर्मा जी से हमारा परिचय हुआ और उन्होंने हमें कुछ ज्योतिषीय उपाय बताए। पहले मैं ज्योतिष पर विश्वास नहीं करती थी और इसे अंधविश्वास मानती थी। लेकिन जब हमने वे उपाय किए और धीरे-धीरे समस्याओं से राहत मिली, तब मेरे मन में यह सवाल उठा कि आखिर इस विज्ञान की गहराई क्या है। यही से शनि पर शोध का विचार पैदा हुआ।

अंधविश्वासों को चुनौती

डॉ. शर्मा का मानना है कि शनि के नाम पर समाज में कई प्रकार के भ्रम फैलाए गए हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, भारत में शनि का भय सबसे ज्यादा व्याप्त है। आम धारणा है कि तेल चढ़ाने या पूजा-पाठ करने से शनि शांत हो जाते हैं। लेकिन शोध और वेद-पुराणों के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि ऐसा कुछ भी नहीं है। यह पूरी तरह मानव निर्मित परंपरा और बाजारवाद है। वास्तविकता यह है कि शनि यानी सैटर्न केवल न्याय के प्रतीक हैं। वे किसी के चढ़ावे या प्रसाद से नहीं, बल्कि केवल कर्मों के आधार पर फल देते हैं। बुरे कर्म का दंड निश्चित है—चाहे अदालत से अपराधी छूट जाए, लेकिन शनि से उसे कभी मुक्ति नहीं मिल सकती।

उन्होंने आगे कहा, हमारे ग्रंथों में कहीं नहीं लिखा कि शनि सब पर भारी होते हैं। बल्कि वहां स्पष्ट है कि अच्छे कर्म का फल अच्छा और बुरे कर्म का फल बुरा मिलता है। पाप जितना बड़ा होगा, दंड उतना ही कठोर होगा। यह शनि का वास्तविक स्वरूप है।”

वैश्विक दृष्टिकोण

डॉ. शर्मा ने यह भी बताया कि यह पुस्तक केवल भारतीय मान्यताओं तक सीमित नहीं है। इसमें रोम और अन्य प्राचीन सभ्यताओं में सैटर्न की पूजा और उनकी भूमिका पर भी विस्तृत अध्ययन किया गया है। उनके अनुसार, ईसाई धर्म के प्रसार के बाद यूरोप में सैटर्न की पूजा कम हो गई, लेकिन उनकी ऐतिहासिक और दार्शनिक महत्ता आज भी प्रासंगिक है।

कार्यक्रम का विवरण

तारीख: शनिवार, 04 अक्टूबर 2025

समय: अपराह्न 3:30 बजे

स्थान: Constitution Club of India, डिप्टी स्पीकर हॉल, रफी मार्ग, नई दिल्ली-110001

लोकार्पण समारोह से पहले ही यह पुस्तक विद्वानों और अध्येताओं के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि, यह कृति शनि को लेकर फैली धारणाओं को नया दृष्टिकोण देगी और वैश्विक परंपराओं में सैटर्न की भूमिका को समझने का अवसर प्रदान करेगी।


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