भारतीय लकड़ी हस्तशिल्प निर्यात को सुरक्षित रखने के लिए EPCH ने सरकारी हस्तक्षेप की मांग की

दिल्ली/एनसीआर, 21 अगस्त 2025 – हस्तशिल्प निर्यातकों के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसीएच) के उपाध्यक्ष सागर मेहता और ईपीसीएच के महानिदेशक की भूमिका में मुख्य संरक्षक और आईईएमएल के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार; ईपीसीएच के नेतृत्व में भारत सरकार के वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह और पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मुलाकात की। इस बैठक में यूरोपियन यूनियन डीफॉरेस्टेशन रेग्युलेशन (ईयूडीआर) के अनुपालन में भारत सरकार से हस्तक्षेप की मांग की गई।

बैठक में ईपीसीएच के कार्यकारी निदेशक आर. के. वर्मा तथा जोधपुर के प्रमुख सदस्य निर्यातक मनोज बोथरा, राजेंद्र बंसल, जे. पी. जैन, आशीष मेहता, गौरव जैन, मनीष पुरोहित और सहारनपुर के प्रमुख सदस्य निर्यातक परमिंदर सिंह भी उपस्थित रहे, ईपीसीएच के अतिरिक्त कार्यकारी निदेशक राजेश रावत ने जानकारी दी।

प्रतिनिधिमंडल ने इस मामले पर विस्तार से चर्चा करने के लिए उच्च स्तरीय अधिकारियों से भी मुलाकात की।

ईयूडीआर के प्रभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए डॉ. नीरज खन्ना ने कहा, “हम यूरोपीय संघ की वनों की कटाई के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता की सराहना करते हैं, लेकिन ईयूडीआर के अनुपालन की आवश्यकताएं हमारे लकड़ी हस्तशिल्प निर्यातकों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं। हमारे उत्पाद मुख्यतः आम, बबूल और शीशम की लकड़ी से बनाए जाते हैं, जो कृषि वानिकी से प्राप्त होते हैं और प्राकृतिक वनों की कटाई में योगदान नहीं करते।”

उन्होंने आगे कहा, “यदि इन नियमों को स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखे बिना लागू किया गया, तो इससे उत्पादन में गिरावट, ऑर्डर रद्द होने और कारीगरों व उनके आश्रितों में व्यापक बेरोजगारी हो सकती है।”

नीतिगत समर्थन पर प्रकाश डालते हुए डॉ. राकेश कुमार ने कहा, “ ग्रामीण, शहरी और कस्बाई भारत के लाखों कारीगरों के लिए हस्तशिल्प क्षेत्र आर्थिक रीढ़ के समान है। ईयूडीआर लकड़ी के निर्यातकों पर समान दायित्व लागू करता है, जो भारत जैसे देशों की विशिष्ट परिस्थितियों की अनदेखी करता है। सरकार के हस्तक्षेप के बिना, ईयूडीआर के प्रावधानों का अनुपालन करना हमारे निर्यातकों के लिए बहुत मुश्किल हो सकता है।”
उन्होंने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से आम, बबूल और शीशम की लकड़ी के लिए छूट की मांग करने और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से कटाई के समय भू-स्थान डेटा उपलब्ध कराने के निर्देश जारी करने की अपील की, जिससे निर्यातकों को वन-कटाई मुक्त सप्लाई चेन स्थापित करने में मदद मिले।

सागर मेहता ने कहा, “यूरोपीय संघ के वनों की कटाई नियम लकड़ी हस्तशिल्प निर्यातकों, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) और कारीगर आधारित उद्यमों के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करते हैं। हम सतत और जिम्मेदार व्यापार का समर्थन करते हैं, लेकिन हमारे क्षेत्र की विशिष्ट प्रकृति को समझना आवश्यक है। हम सरकार और उद्योग के सहयोग से एक व्यावहारिक अनुपालन ढांचा विकसित करने की मांग करते हैं।”

आर. के. वर्मा ने कहा, “ईपीसीएच हमेशा वैश्विक स्थिरता ढांचे के साथ अपने कदम मिलाकर चलने के लिए प्रतिबद्ध रहा है। इसका उदाहरण है ‘वृक्ष’(वीआरआईकेएस एच- टिंबर लीगलिटी एसेसमेंट एंड वेरिफिकेशन स्कीम), जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रणाली है और भारतीय हस्तशिल्प सेक्टर इसका अनुपालन करता है। लेकिन जिओ-ऱेफरेंस्ड (भू-संदर्भित) ट्रेसबिलिटी प्रणाली के बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन के लिए नीति समर्थन, वित्तपोषण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। यह सामूहिक दृष्टिकोण प्रावधान अनुपालन को सुनिश्चित करेगा और भारतीय निर्यात प्रतिस्पर्धा को सुरक्षित रखेगा।”

हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसीएच) दुनिया भर के विभिन्न देशों में भारतीय हस्तशिल्प निर्यात को बढ़ावा देने और उच्च गुणवत्ता वाले हस्तशिल्प उत्पादों और सेवाओं के एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में विदेशों में भारत की छवि और होम, लाइफस्टाइल, टेक्स्टाइल, फर्नीचर और फैशन जूलरी ऐंड एक्सेसरीज प्रॉडक्ट के उत्पादन में लगे क्राफ्ट क्लस्टर के लाखों कारीगरों और शिल्पकारों के प्रतिभाशाली हाथों के जादू की ब्रांड इमेज बनाने के लिए जिम्मेदार एक नोडल संस्थान है। इस अवसर पर ईपीसीएच के कार्यकारी निदेशक आर के वर्मा ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान हस्तशिल्प का कुल निर्यात 33,123 करोड़ रुपये (3,918 मिलियन डॉलर) रहा। इसके साथ ही वर्ष 2024-25 के दौरान लकड़ी आधारित हस्तशिल्प का कुल निर्यात 8524.74 करोड़ रुपए (1008.04 मिलियन डालर) रहा जो रुपये के लिहाज से 6% और डॉलर के लिहाज से 3.84% की वृद्धि दर्ज हुई और अकेले यूरोपीय संघ को निर्यात ₹2,591.29 करोड़ (306.40 मिलियन अमेरिकी डॉलर), ईपीसीएच के कार्यकारी निदेशक आर. के. वर्मा ने भी बताया |


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