EPCH ने भारत के हस्तशिल्प सेक्टर पर अमेरिकी टैरिफ के खतरे के मद्देनज़र सरकार से त्वरित कार्रवाई की अपील की
दिल्ली/एनसीआर, 12 अगस्त 2025 – हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसीएच) ने अमेरिका द्वारा भारतीय हस्तशिल्प निर्यात पर 50% टैरिफ लगाए जाने के बाद त्वरित कार्रवाई की अपील की है। यह निर्णय न केवल इस क्षेत्र की स्थिरता को खतरे में डालता है, बल्कि लाखों कारीगरों की आजीविका पर भी संकट खड़ा कर रहा है। परिषद ने सरकार से आग्रह किया है कि वह निर्यातकों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने और भारत की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए वित्तीय सहायता, प्रोत्साहन और राजनयिक प्रयासों को तेज करे।
इस संकट पर विचार व्यक्त करते हुए, ईपीसीएच के अध्यक्ष डॉ. नीरज खन्ना ने कहा, “अमेरिका भारत के हस्तशिल्प के लिए सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण बाजार बना हुआ है, वित्तीय वर्ष 2024–25 में 1.57 बिलियन अमरीकी डॉलर के निर्यात के साथ अमरीकी बाजार भारत के कुल हस्तशिल्प निर्यात का लगभग 40 प्रतिशत है। भारतीय हस्तशिल्प उत्पादों पर 50 प्रतिशत रेसीप्रोकल टैरिफ लगाए जाने और इसके आगे बढ़ने की संभावना की वजह से इस क्षेत्र की व्यवहारिकता पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है। टैरिफ का लगा ये झटका अमेरिका को होने वाले निर्यात में 25–30 प्रतिशत की गिरावट ला सकता है, जिससे 400–450 मिलियन अमरीकी डॉलर का संभावित राजस्व नुकसान हो सकता है।”
इस संकट के रणनीतिक समाधान पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. खन्ना ने आगे कहा कि “इन जोखिमों को कम करने के लिए, ईपीसीएच ने कुछ त्वरित राहत उपाय प्रस्तावित रखे है, जो स्पष्ट रूप से ‘हस्तशिल्प/हस्त निर्मित’ के रूप में प्रमाणित शिपमेंट पर लागू होंगे। इनमें अमेरिका को होने वाले हस्तशिल्प निर्यात पर दो वर्षों के लिए या जब तक टैरिफ पुनः वार्ता में न आए, 30 प्रतिशत कॉस्ट इक्वलाइजेशन इंसेंटिव (लागत समानता प्रोत्साहन); इंट्रेस्ट इक्वलाइजेशन स्कीम (ब्याज समानता योजना) के लाभों को जारी रखने, जिसमें निर्माता और व्यापारी निर्यातकों दोनों के लिए लाभ 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत किया जाए; और आयकर अधिनियम की पूर्ववर्ती धारा 80HHC के अनुरूप निर्यात पर आयकर छूट प्रदान की जाए।”
निर्यातक समुदाय की तत्काल चिंताओं को उजागर करते हुए, ईपीसीएच के महानिदेशक की भूमिका में मुख्य संरक्षक और आईईएमएल के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार, ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि “स्थिति तेज और लक्षित कार्रवाई की मांग करती है। हमारे प्रस्ताव तत्काल लागत असमानताओं को संतुलित करने, खरीदार संबंधों को बनाए रखने और कारीगरों की आजीविका की रक्षा के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। साथ ही, हम अमेरिका के साथ सक्रिय राजनयिक संवाद की मांग कर रहे हैं ताकि भारतीय हस्तशिल्प को उनकी सांस्कृतिक, श्रम-प्रधान और सतत् मूल्य के आधार पर विशेष दर्जा मिल सके। हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वह इस क्षेत्र के भविष्य की रक्षा के लिए वित्तीय और राजनयिक दोनों स्तरों पर शीघ्र कार्रवाई करे।”
इस मौके पर ईसीपीएच के मुख्य संयोजक श्री अवधेश अग्रवाल, ने कहा कि “हमारे निर्यातक हाल के वर्षों के सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं, जहां मूल्य निर्धारण, मार्जिन और बाजार स्थिरता को लेकर उन पर लगातार दबाव बना हुआ है। अमेरिकी टैरिफ वृद्धि से ऑर्डर की कमी या हानि होना खरीदार के विश्वास में कमी और कार्यशील पूंजी की बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे व्यापार उन देशों की ओर स्थानांतरित हो सकता है जिन्हें अधिक अनुकूल टैरिफ शर्तें प्राप्त हैं। यदि सरकार समय पर और निर्णायक हस्तक्षेप करती है, तो हम इस चुनौती को अवसर में बदल सकते हैं, अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता को मजबूत कर सकते हैं और भारत के हस्तशिल्प को वैश्विक स्तर पर पुनः पहचान दिला सकते हैं।”
ईपीसीएच के कार्यकारी निदेशक श्री आर. के. वर्मा ने इस अवसर पर अपने विचार साझा करते हुए कहा, “हम सरकार के साथ मिलकर राहत उपायों, जैसे कि आपातकालीन राहत कोष, अमेरिका को भेजे जाने वाले माल के लिए सब्सिडी युक्त माल भाड़ा सहायता, ड्यूटी ड्रॉबैक और आरओडीटीईपी की दरों में वृद्धि, निर्यात प्रोत्साहन मिशन योजना के तहत लक्षित प्रचार योजनाओं का शीघ्र कार्यान्वयन, निर्यातकों के लिए दीर्घकालिक ऋण चुकौती पर दो वर्ष की मोहलत, अमेरिका के साथ टैरिफ पर द्विपक्षीय संवाद को तेज करना, साथ ही बाज़ार विविधीकरण, उत्पाद नवाचार और दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देना आदि को लागू करने पर कार्य कर रहे हैं I”
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