जस्टिस बीआर गवई बने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश, मां का लिया आशिर्वाद

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (14 मई 2025): भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में बुधवार का दिन एक भावनात्मक और ऐतिहासिक क्षण लेकर आया, जब जस्टिस बीआर गवई ने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। शपथग्रहण समारोह राष्ट्रपति भवन में संपन्न हुआ, जहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। मगर इस औपचारिक कार्यक्रम के बीच एक ऐसा दृश्य भी सामने आया, जिसने हर भारतीय के हृदय को छू लिया जब चीफ जस्टिस गवई ने अपनी मां कमलताई गवई के चरणों में झुककर आशिर्वाद लिया। यह दृश्य केवल एक बेटे का कृतज्ञता ज्ञापन नहीं था, बल्कि यह उस भारतीय मूल्य परंपरा की पुनः पुष्टि थी जिसमें मां को साक्षात् देवी माना गया है।

मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद गवई ने सबसे पहले राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शिष्टाचार भेंट की। इसके पश्चात उन्होंने अपने पूर्ववर्ती सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना से भी भेंट की, जिनके सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने यह पदभार संभाला है। लेकिन इन औपचारिक मुलाकातों के बाद जब गवई ने मंच के पास बैठीं अपनी मां को देखा, तो वे सीधे उनके पास पहुंचे और उनके चरणों में नतमस्तक हो गए। इस आत्मीय क्षण को देखकर वहां मौजूद सभी लोग भावविभोर हो गए। मां कमलताई ने भी अपने बेटे को दुलारते हुए ढेरों आशीर्वाद दिए और कहा “मेरा बेटा यहां अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर पहुंचा है।”

जस्टिस गवई ने शपथ हिंदी भाषा में ली, जो उनके भारतीय भाषाई गौरव और जड़ों से जुड़ाव को दर्शाता है। इस तरह एक तरफ वे सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा का निर्वहन करते नजर आए, तो दूसरी ओर भारतीय पारिवारिक संस्कृति के प्रतीक बने। उनका यह व्यवहार न्यायपालिका में संवेदनशीलता और नैतिकता की मिसाल बनकर सामने आया है।

गौरतलब है कि बीआर गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उन्होंने 16 मार्च 1985 को वकालत के क्षेत्र में कदम रखा और 18 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए। जस्टिस गवई अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले देश के पहले मुख्य न्यायाधीश हैं, जो भारतीय समाज की समावेशी प्रगति का प्रतीक है। अब बतौर सीजेआई वे लगभग छह महीने तक इस पद पर रहेंगे और नवंबर 2025 में सेवानिवृत्त होंगे। इस प्रकार जस्टिस गवई की शपथग्रहण की यह घड़ी न केवल संवैधानिक इतिहास का हिस्सा बनी, बल्कि भारतीय मूल्यों, संस्कारों और संघर्ष की जीवंत मिसाल भी बन गई। एक बेटा जब मां के चरणों में झुकता है, तो वह केवल श्रद्धा नहीं जताता बल्कि पूरे राष्ट्र को यह संदेश देता है कि कोई भी ऊंचा पद मां के आशीर्वाद से ऊपर नहीं हो सकता।।


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