भारत-पाकिस्तान संघर्ष: वैश्विक आर्थिक हलचलों के बीच चीन की भूमिका पर उठे सवाल

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (11 मई 2025): भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुई सीमा संघर्ष की घटना को लेकर कई विश्लेषक यह आशंका जता रहे हैं कि यह एक पूर्वनियोजित रणनीति का हिस्सा हो सकता है। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हमले के बाद से सीमा पर तनाव अचानक बढ़ गया, जिसके चलते दोनों देशों के बीच सैन्य झड़पें तेज़ हो गईं। लेकिन इस संघर्ष के समय और घटनाओं की पृष्ठभूमि को देखने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रही आर्थिक गतिविधियों की कड़ियाँ इससे जुड़ती प्रतीत होती हैं, जिससे कई विशेषज्ञों ने इसे एक गहराई से नियोजित साजिश की आशंका के रूप में देखा है।

इसी दौरान अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव ने वैश्विक बाजार को हिला कर रख दिया था। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर जवाबी टैरिफ लगाने शुरू कर दिए थे, जिससे व्यापारिक अस्थिरता बढ़ गई। चीन के भीतर सोशल मीडिया पर यह नैरेटिव तेज़ी से फैलाया गया कि विदेशी ब्रांड्स, खासकर अमेरिकी कंपनियां, चीन से बेहद सस्ते दामों पर माल खरीदकर उन्हें अमेरिका में कई गुना महंगे दामों पर बेच रही हैं। इस अभियान ने आम जनता और कुछ नीति-निर्माताओं के बीच राष्ट्रवादी भावनाओं को भी हवा दी और इससे चीन की अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता का माहौल बन गया।

इस अस्थिरता के परिणामस्वरूप कई वैश्विक कंपनियों ने चीन को छोड़कर भारत को अपनी नई मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में देखना शुरू कर दिया। भारत में श्रम की उपलब्धता, नीतिगत समर्थन और लोकतांत्रिक व्यवस्था इन कंपनियों को आकर्षित कर रही थी। यह बदलाव चीन के लिए चिंता का विषय बन गया, क्योंकि इसके चलते निवेश और नौकरियों का एक बड़ा हिस्सा भारत की ओर स्थानांतरित हो सकता था। ऐसे में ठीक उसी समय भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष का शुरू होना केवल संयोग माना जाए, यह सवालों के घेरे में आता है।

अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने भी इस संघर्ष पर टिप्पणी करते हुए यह संकेत दिए कि यह लड़ाई उस समय शुरू हुई जब भारत की छवि वैश्विक निवेश के लिए सबसे सुरक्षित और स्थिर स्थान के रूप में उभर रही थी। इससे संदेह और गहरा हो गया कि क्या यह संघर्ष वास्तव में पाकिस्तान द्वारा अकेले शुरू किया गया था, या फिर चीन की परोक्ष भूमिका इसमें छिपी हुई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह सच है, तो यह केवल एक सीमाई विवाद नहीं, बल्कि एक वैश्विक आर्थिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसमें भारत की आर्थिक प्रगति को बाधित करने की मंशा रही हो।

इस पूरे परिदृश्य में सबसे अहम सवाल यह उठता है कि क्या चीन ने अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए पाकिस्तान को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया? क्या भारत-पाक सीमा पर हुआ संघर्ष चीन की अर्थनीति की छाया में जन्मा एक भू-राजनीतिक कदम था? हालांकि इन सवालों के सीधे प्रमाण अभी नहीं मिले हैं, लेकिन घटनाओं की कड़ी और समय की समानता को देखकर यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि इस पूरे घटनाक्रम को केवल एक सामान्य सीमा विवाद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। जरूरत है गहराई से जांच और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस पर पारदर्शिता की मांग करने की।


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