दिल्ली के MCD स्कूलों में पैरेंट्स बनेंगे बच्चों के को-टीचर्स, ‘स्टार पैरेंट्स’ की गूंज

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (05 मई 2025): दिल्ली नगर निगम (MCD) स्कूलों ने शिक्षा प्रणाली में एक ऐसा नवाचार शुरू किया है, जिसने पैरेंट्स की भूमिका को एक नई दिशा दे दी है। ‘आइए मिलकर भविष्य को संवारें’ नाम की इस पहल के तहत अब स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता भी टीचर्स की तरह जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे। इसका उद्देश्य न केवल बच्चों की शिक्षा को मजबूती देना है, बल्कि अभिभावकों की भागीदारी बढ़ाकर स्कूल और घर के बीच की दूरी को भी पाटना है।

इस कार्यक्रम के तहत पहली से पांचवीं कक्षा तक के छात्रों को 5-5 बच्चों के समूह में बांटा गया है। हर ग्रुप में एक बच्चे को ग्रुप लीडर चुना गया है, जबकि पांच में से किसी एक छात्र के माता या पिता को ‘स्टार पैरेंट’ की भूमिका सौंपी गई है। यह स्टार पैरेंट अपने बच्चे के साथ-साथ ग्रुप के अन्य बच्चों की पढ़ाई, उपस्थिति और शैक्षणिक गतिविधियों पर भी नजर रखेगा। जरूरत पड़ने पर ये अभिभावक अपने घर या किसी अन्य सुविधाजनक स्थान पर बच्चों को एकत्रित कर पढ़ा भी सकते हैं।

दिल्ली के 1534 MCD स्कूलों में पढ़ने वाले लगभग 7.88 लाख बच्चों को इस पहल के दायरे में लाया गया है। इस अभियान के जरिए स्कूल प्रशासन चाहता है कि पढ़ाई और गतिविधियों में बच्चों की दिलचस्पी बढ़े, उनकी उपस्थिति में सुधार हो और पैरेंट्स का स्कूल के प्रति जुड़ाव और मजबूत हो। स्कूलों की प्रिंसिपलों के अनुसार, स्टार पैरेंट्स की भूमिका में अधिकतर महिलाएं शामिल हो रही हैं, क्योंकि आमतौर पर पिता काम के लिए सुबह ही घर से निकल जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह जिम्मेदारी स्थायी नहीं होगी। स्कूल प्रशासन ने तय किया है कि हर सप्ताह नए ग्रुप लीडर और स्टार पैरेंट चुने जाएंगे, जिससे अधिक से अधिक बच्चों और अभिभावकों को नेतृत्व और सहयोग का अवसर मिल सके। इस पहल का व्यापक उद्देश्य बच्चों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करना है, जिसमें स्कूल, पैरेंट्स और समाज की संयुक्त भागीदारी हो।

शनिवार को इस योजना के तहत पहली बार ‘स्टार पैरेंट्स’ की एक मीटिंग आयोजित की गई, जिसमें बड़ी संख्या में अभिभावकों ने उत्साह से हिस्सा लिया। मीटिंग के दौरान न केवल शैक्षणिक दिशा-निर्देशों पर चर्चा हुई, बल्कि मनोरंजन और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी इन पैरेंट्स ने सक्रिय भागीदारी दिखाई। इससे यह साफ झलकता है कि यदि अभिभावकों को सही दिशा और मंच मिले, तो वे बच्चों के विकास में एक मजबूत स्तंभ बन सकते हैं। ‘आइए मिलकर भविष्य को संवारें’ नाम की यह पहल भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए एक मिसाल बन सकती है, जहां माता-पिता सिर्फ फीस भरने वाले नहीं, बल्कि बच्चों के जीवन निर्माण में सक्रिय सहयोगी होंगे। क्या अन्य राज्यों को भी ऐसी पहल को अपनाने की आवश्यकता है? यह प्रश्न अब शिक्षा नीति-निर्माताओं के सामने विचारणीय बन चुका है।


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