नई दिल्ली (02 मई 2025): दिल्ली हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह विवाद मामले में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को किसी भी प्रकार की कार्रवाई न करने का निर्देश दिया है। अदालत का यह फैसला उस याचिका के बाद आया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि DDA धार्मिक आयोजन के चलते ईदगाह प्रबंध समिति के खिलाफ मनमानी कर रहा है। याचिका में कहा गया कि दिसंबर 2024 में पार्क के उपयोग के एवज में 12 लाख रुपये की मांग की गई। कोर्ट ने 11 फरवरी 2025 को जारी नोटिस पर रोक लगाते हुए कहा कि DDA फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं करेगा। यह आदेश न्यायमूर्ति विकास महाजन की अदालत से आया है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 10 सितंबर को तय की है।
वक्फ ट्राइब्यूनल की निष्क्रियता बनी कानूनी अड़चन
अदालत ने माना कि जिस न्यायिक मंच यानी वक्फ ट्राइब्यूनल में यह मामला विचाराधीन है, वह वर्तमान में कार्य नहीं कर रहा है। इस वजह से याचिकाकर्ता को वहां से कोई राहत नहीं मिल पा रही है। अदालत ने इस परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए DDA के नोटिस पर रोक लगाई। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक ट्राइब्यूनल दोबारा काम नहीं करता, तब तक कोई प्रशासनिक कदम नहीं उठाया जाना चाहिए। इस बीच DDA से जवाब मांगा गया है कि वह पार्क पर किस आधार पर अपना स्वामित्व दावा करता है। कोर्ट इस बात को भी तवज्जो दे रही है कि धार्मिक स्थल और सरकारी भूमि के बीच विवाद संवेदनशील होता है।
पार्क के उपयोग पर 12 लाख की मांग को बताया गया अनुचित
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि DDA ने दिसंबर 2024 के आयोजन के लिए पार्क उपयोग पर 12 लाख रुपये मांगे हैं। अधिवक्ता ने दावा किया कि यह पार्क ईदगाह परिसर का हिस्सा है और इस पर DDA का कोई वैध स्वामित्व नहीं है। वकील ने कहा कि धार्मिक आयोजन पारंपरिक रूप से इसी स्थल पर होता रहा है। इसी मुद्दे को लेकर पहले से वक्फ ट्राइब्यूनल में मुकदमा दायर किया जा चुका है। कोर्ट से आग्रह किया गया कि जब तक विवाद का निपटारा नहीं होता, तब तक कोई जुर्माना या कार्रवाई न हो। अदालत ने याचिकाकर्ता की दलील को विचारणीय मानते हुए DDA से औपचारिक जवाब मांगा है।
डीडीए ने पार्क पर स्वामित्व का किया दावा
DDA के अधिवक्ता ने कोर्ट में यह दलील दी कि संबंधित पार्क डीडीए की संपत्ति है। उनका कहना था कि याचिकाकर्ता पूर्व में इसी जगह महारानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने की अनुमति मांग चुके हैं। इस मामले में कोर्ट के एकल न्यायाधीश ने साफ कहा था कि पार्क डीडीए की ज़मीन है। इसके खिलाफ अपील भी की गई थी, लेकिन खंडपीठ ने भी निर्णय में हस्तक्षेप नहीं किया। DDA ने यह भी कहा कि कोई भी धार्मिक आयोजन पूर्व अनुमति के बिना आयोजित नहीं किया जा सकता। संस्था के नियमों के मुताबिक, सार्वजनिक संपत्ति का उपयोग बिना इजाज़त अवैध माना जाता है।
धार्मिक आयोजन बिना अनुमति, DDA की आपत्ति
डीडीए ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि धार्मिक आयोजन बिना उसकी अनुमति के पार्क में आयोजित किया गया। प्राधिकरण का कहना है कि इस तरह की गतिविधियाँ सार्वजनिक व्यवस्था और प्रशासनिक नियंत्रण के लिए चुनौती बन सकती हैं। कोर्ट में DDA ने यह तर्क भी रखा कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़ा रुख ज़रूरी है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि जब तक ट्राइब्यूनल इस विषय में निर्णय नहीं देता, तब तक किसी निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाज़ी होगी। ऐसे मामलों में निष्पक्षता और कानून की प्राथमिकता सर्वोपरि होनी चाहिए।
अगली सुनवाई 10 सितंबर, कानूनी लड़ाई जारी
कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 10 सितंबर के लिए तय की है। इस दौरान DDA को अपना विस्तृत पक्ष अदालत में प्रस्तुत करना होगा। वक्फ ट्राइब्यूनल की कार्यविहीनता के कारण कानूनी रास्ते सीमित हो गए हैं, और ऐसे में हाई कोर्ट का यह अंतरिम आदेश अहम है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को उचित दलीलों के साथ तैयार रहने को कहा है। अब देखना होगा कि धार्मिक परंपरा और सरकारी स्वामित्व के इस टकराव में न्यायिक फैसला किस दिशा में जाता है। इस केस को लेकर शहर में काफी सतर्कता देखी जा रही है।
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