भारत के उतरी हिमालयी क्षेत्र में जोरदार भूकंप की चेतावनी!, वैज्ञानिकों ने क्या कहा?
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (17 अप्रैल 2025): जरा सोचिए, आप गहरी नींद में हों और अचानक ज़मीन कांपने लगे। घर की दीवारें दरकने लगें, फर्श फटने लगे और चारों ओर चीख-पुकार मच जाए। ऐसा दृश्य किसी फिल्म का नहीं, बल्कि भविष्य में आने वाला एक भीषण सच हो सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय के नीचे एक “टाइम बम” छिपा है, जो कभी भी फट सकता है। इस भूकंप को ‘ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक’ कहा जा रहा है। इसकी तीव्रता 8.0 या उससे भी अधिक हो सकती है। और यह तबाही लाखों लोगों की ज़िंदगियां बदल सकती है।
हिमालय के नीचे दबा है खतरनाक तनाव
भारत की टेक्टोनिक प्लेट हर साल तिब्बत की ओर दो मीटर खिसक रही है। लेकिन हिमालय क्षेत्र में यह खिसकन रुक-रुक कर होती है क्योंकि वहां जमीन की दो परतें एक-दूसरे से अटककर रुक जाती हैं। ये रुकावटें वर्षों तक एक-दूसरे पर दबाव बनाती हैं। जब यह दबाव सहन सीमा से बाहर होता है, तो धरती अचानक खिसकती है। इसी प्रक्रिया को हम भूकंप कहते हैं। भू-वैज्ञानिक रोजर बिलहम ने चेताया है कि यह सिर्फ एक आशंका नहीं, बल्कि एक तयशुदा घटना है। हिमालय की चुप्पी एक बड़े तूफान का संकेत है।
70 वर्षों से शांत है हिमालय, लेकिन कब तक?
पिछले सात दशकों में हिमालय क्षेत्र में कोई भी बड़ा भूकंप नहीं आया है। इस दौरान धरती के भीतर लगातार दबाव जमा हो रहा है, जिसे अब तक कोई बड़ा झटका नहीं मिला। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह दबाव एक दिन अचानक भयंकर विस्फोट की तरह बाहर निकलेगा। उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, अरुणाचल और नेपाल इस भूकंप की सीधी चपेट में होंगे। यह क्षेत्र भूकंपीय जोन-5 में आते हैं, जो सबसे अधिक संवेदनशील माने जाते हैं। ऐसे में भूकंप की आशंका किसी भी समय वास्तविकता बन सकती है। सरकार और नागरिकों को इसकी तैयारी अभी से करनी होगी।
म्यांमार का भूकंप: एक खतरनाक संकेत
28 मार्च 2025 को म्यांमार में आए 7.7 तीव्रता के भूकंप ने पूरे दक्षिण एशिया को हिला दिया। इस भूकंप में 3,000 से अधिक लोगों की मौत हुई और हजारों घायल हुए। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह भूकंप स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट के कारण आया, जिसमें ज़मीन के दो हिस्से एक-दूसरे के समानांतर खिसकते हैं। इस भूकंप की ऊर्जा 300 परमाणु बमों के बराबर थी। इस तबाही ने कई पुल गिरा दिए और इमारतें चकनाचूर हो गईं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटना हिमालय में छिपे खतरे का संकेत हो सकती है। म्यांमार की त्रासदी भारत के लिए चेतावनी बन गई है।
भारत का 59% हिस्सा भूकंप के खतरे में
भारत के कई राज्य भूकंपीय दृष्टि से अति संवेदनशील माने जाते हैं। उत्तर भारत का अधिकांश हिस्सा, विशेषकर दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार और पूर्वोत्तर भारत, खतरे की रेखा पर हैं। दिल्ली चौथे जोन में आता है और यह हरिद्वार रिज के ऊपर स्थित है, जो एक्टिव फॉल्ट लाइन मानी जाती है। यदि हिमालय में 8 तीव्रता का भूकंप आता है, तो दिल्ली-NCR में भारी तबाही की आशंका है। हाई-राइज़ इमारतें, पुराने मकान और अस्थायी ढांचे सबसे पहले गिर सकते हैं। लाखों लोगों की जान पर खतरा मंडरा सकता है। इसकी तैयारी ज़रूरी है।
2015 नेपाल भूकंप से भी ज्यादा विनाशकारी होगा
2015 में नेपाल में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें लगभग 9,000 लोग मारे गए थे। लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाला हिमालयी भूकंप इससे कहीं ज्यादा शक्तिशाली होगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हिमालयी क्षेत्र का तीन-चौथाई हिस्सा 8.2 तीव्रता के झटके को झेलने को तैयार बैठा है। कुछ क्षेत्रों में 8.7 तीव्रता तक के भूकंप की संभावना जताई गई है। यह भूकंप 2015 की तुलना में 8 गुना अधिक ऊर्जा छोड़ सकता है। इसकी चपेट में भारत, नेपाल, तिब्बत और भूटान आ सकते हैं। जनहानि और आर्थिक नुकसान की कल्पना भी डरावनी है।
क्या भारत तैयार है इस महाविनाश के लिए?
देश में भूकंप प्रबंधन की स्थिति फिलहाल कमजोर है। अधिकांश इमारतें भूकंपरोधी मानकों पर खरी नहीं उतरतीं। छोटे शहरों और गांवों में तो जागरूकता की भारी कमी है। आपदा प्रबंधन के संसाधन सीमित हैं और रेस्क्यू टीमों की ट्रेनिंग भी अधूरी है। स्कूल, अस्पताल और सरकारी इमारतों को भी मजबूत बनाने की जरूरत है। समय रहते चेतना जरूरी है, नहीं तो भूकंप का झटका पूरे देश को वर्षों पीछे ले जा सकता है। हमें तकनीक, नीतियों और जागरूकता को मिलाकर एक मजबूत ढाल बनानी होगी।
तैयारी ही बचाव है, अब समय नहीं बचा
सरकार को चाहिए कि वह भूकंपरोधी निर्माण को अनिवार्य बनाए। स्कूलों, ऑफिसों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में समय-समय पर मॉक ड्रिल करवाई जाएं। सिविल डिफेंस और एनडीआरएफ जैसी एजेंसियों को और संसाधन दिए जाएं। आम नागरिकों को भी सिखाया जाए कि भूकंप के समय क्या करें और क्या न करें। मोबाइल ऐप्स और अलर्ट सिस्टम से लोगों को तुरंत चेतावनी दी जा सकती है। अब और देर नहीं की जा सकती। क्योंकि जब प्रकृति प्रहार करती है, तब तैयारी ही एकमात्र ढाल बनती है।।
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