नई दिल्ली (17 मार्च 2025): देश की राजधानी में यमुना नदी की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) की फरवरी 2025 की रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, यमुना के पानी में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर 16 मिलियन यूनिट प्रति 100 एमएल तक पहुंच गया है, जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के तय मानकों से 6400 गुना ज्यादा है। इतना ही नहीं, नदी में बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) का स्तर भी खतरनाक रूप से बढ़ गया है, जिससे जलीय जीवन पर भारी संकट मंडरा रहा है।
सीवेज और औद्योगिक कचरे ने बढ़ाई समस्या
विशेषज्ञों के अनुसार, यमुना के इस हालात के पीछे मुख्य कारण अनट्रीटेड सीवेज और औद्योगिक कचरा है, जो बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे नदी में बहाया जा रहा है। ह्यूमन वेस्ट से पानी में आने वाले बैक्टीरिया को फेकल कोलीफॉर्म कहा जाता है, जिसका उच्च स्तर पानी को पूरी तरह से दूषित कर देता है। रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2024 में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर 8.4 मिलियन यूनिट प्रति 100 एमएल था, जो फरवरी 2025 में 16 मिलियन यूनिट प्रति 100 एमएल तक पहुंच गया है। यह सीधे तौर पर यह संकेत देता है कि दिल्ली की सीवेज व्यवस्था पूरी तरह से असफल हो चुकी है।
जलीय जीवन पर मंडराया खतरा
बीओडी (BOD) का स्तर नदी में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा को मापने का एक पैमाना है, जो जलीय जीवों के जीवन के लिए बेहद आवश्यक है। वैज्ञानिक मानकों के अनुसार, नदी में बीओडी का स्तर 3 एमजी प्रति लीटर से कम होना चाहिए, लेकिन दिल्ली में यह स्तर असगरपुर में 72 एमजी प्रति लीटर तक दर्ज किया गया, जो मानकों से 24 गुना ज्यादा है। इसका सीधा असर जलीय जीवों पर पड़ रहा है, क्योंकि उच्च बीओडी स्तर पानी में घुली हुई ऑक्सीजन को खत्म कर देता है, जिससे मछलियों और अन्य जलचर जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है।
दिल्ली में 6 जगहों पर ऑक्सीजन स्तर शून्य
यमुना नदी में डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन (DO) का स्तर भी खतरनाक रूप से गिर गया है। DO, पानी में उपलब्ध घुली हुई ऑक्सीजन को दर्शाता है, जो जलीय जीवों के लिए बेहद आवश्यक होती है। DPCC द्वारा दिल्ली में 8 जगहों पर यमुना के पानी का सैंपल लिया गया, जिसमें केवल पल्ला (6 एमजी/लीटर) और वजीराबाद (5.3 एमजी/लीटर) में ही DO का स्तर सुरक्षित पाया गया। लेकिन इसके बाद नदी के सभी 6 पॉइंट्स पर ऑक्सीजन का स्तर शून्य दर्ज किया गया, जिससे यह साफ हो जाता है कि यहां का पानी जीवों के रहने लायक नहीं बचा है।
सरकार और एजेंसियों के प्रयास नाकाफी
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के निर्देश पर DPCC हर महीने यमुना नदी की जल गुणवत्ता की रिपोर्ट जारी करता है। इसके लिए दिल्ली में 8 जगहों से पानी के सैंपल लिए जाते हैं। हालांकि, सालों से चले आ रहे प्रदूषण को रोकने के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं, लेकिन नदी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। यमुना को स्वच्छ करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन हकीकत यह है कि यमुना आज भी सीवेज का तालाब बनी हुई है।
अगर नहीं उठाए गए ठोस कदम, तो आने वाले सालों में यमुना हो सकती है मृत नदी
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यमुना में प्रदूषण की यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले कुछ सालों में यह नदी पूरी तरह से “मृत नदी” में बदल सकती है, जहां न तो कोई जलीय जीवन रहेगा और न ही इसका पानी किसी भी उपयोग के लायक बचेगा। ऐसे में यह जरूरी है कि सरकार, प्रशासन और आम जनता मिलकर इस संकट का समाधान निकालें, ताकि यमुना को एक बार फिर से जीवंत और स्वच्छ बनाया जा सके।
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