तमिलनाडु सरकार ने बदला रुपये का प्रतीक, हिंदी विरोध पर फिर गरमाई बहस.

टेन न्यूज़ नेटवर्क

तमिलनाडु (13 मार्च 2025): तमिलनाडु सरकार ने अपने हालिया बजट में रुपये के प्रतीक (₹) को हटाकर ‘ரூ’ (तमिल अक्षर) का इस्तेमाल किया, जिससे भाषा की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। इस कदम को हिंदी के कथित वर्चस्व के खिलाफ द्रविड़ राजनीति की मजबूत प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब तमिलनाडु सरकार ने हिंदी के खिलाफ मोर्चा खोला हो। पहले भी वहां की सरकार केंद्र के हिंदी-प्रचार से जुड़े कई फैसलों का विरोध कर चुकी है। इस नए फैसले के बाद अब बहस इस पर आ गई है कि क्या तमिलनाडु सरकार सिर्फ हिंदी ही नहीं, बल्कि भारतीय मुद्रा प्रणाली में इस्तेमाल होने वाले प्रतीकों को भी क्षेत्रीय बनाने की कोशिश कर रही है?

दूसरी ओर, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने हाल ही में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में हिंदी भाषा को लेकर बेहद व्यावहारिक दृष्टिकोण रखा। उन्होंने कहा, “किसी भी भाषा को जबरन थोपना गलत है, लेकिन अगर हिंदी सीखने से फायदा होगा, तो मैं जरूर सीखूंगा।” इसके साथ ही उन्होंने मजाकिया लहजे में जोड़ा कि हिंदी सीखने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि वे अब प्रधानमंत्री मोदी को खुलकर टोक सकते हैं। यह बयान बताता है कि दक्षिण भारत के नेता अब हिंदी को विरोध के नजरिए से नहीं, बल्कि एक संचार और राजनैतिक हथियार के रूप में भी देखने लगे हैं।

इसी कड़ी में, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी अपने राज्य में हिंदी समेत 10 भाषाएं सिखाने की योजना की घोषणा की। उन्होंने कहा कि बहुभाषी शिक्षा सिर्फ हिंदी या अंग्रेजी तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओं को भी बढ़ावा मिलना चाहिए। यह संकेत करता है कि अब दक्षिण भारत में भी भाषाई लचीलापन बढ़ रहा है और हिंदी का विरोध केवल राजनीति तक ही सीमित होता जा रहा है। ऐसे में तमिलनाडु सरकार का यह कदम अलग-थलग भी नजर आ सकता है, क्योंकि अन्य राज्य हिंदी को एक अवसर के रूप में देखने लगे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ हो जाता है कि हिंदी थोपने का मुद्दा सिर्फ एक राजनीतिक हथियार है, जिसका इस्तेमाल क्षेत्रीय दल अपनी पहचान मजबूत करने के लिए करते हैं। असल में, दक्षिण भारत के कई नेता अब हिंदी को व्यावहारिक लाभ के रूप में देख रहे हैं, जिससे राष्ट्रीय राजनीति और व्यापार में फायदा मिल सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या तमिलनाडु सरकार का यह कदम वास्तव में भाषाई विविधता की रक्षा के लिए है, या फिर यह हिंदी विरोध की पुरानी राजनीति को बनाए रखने का एक प्रयास है।।

 

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