भारत को आर्थिक संकट से निकालकर आर्थिक सुधार की ओर ले जाने वाले दूरदर्शी नेता डॉ. मनमोहन सिंह | टेन न्यूज की विशेष रिपोर्ट

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (2 जनवरी 2025): 1947 में आज़ादी के बाद भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों को आत्मनिर्भरता के सिद्धांत पर केंद्रित किया। इसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ावा देने और निजी क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए लाइसेंस राज की स्थापना की गई। इस नीति के कारण औद्योगीकरण की गति धीमी हो गई, और 1970 के दशक तक भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ने लगी।

1980 के दशक में सोवियत संघ के विघटन और खाड़ी युद्ध के चलते वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि ने भारत की आर्थिक स्थिति और खराब कर दी। 1990 तक भारत के पास मात्र ढाई अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जो केवल तीन हफ्ते के आयात के लिए पर्याप्त था। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने भारत की रेटिंग घटा दी, जिससे कर्ज लेना और भी मुश्किल हो गया।

1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, उस समय चंद्रशेखर की अल्पमत सरकार बजट पास करने और सुधार लागू करने में विफल रही। राजनीतिक अस्थिरता के बीच हुए चुनावों में पी.वी. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने और उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया।

डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक संकट से उबरने के लिए कठोर और दूरदर्शी कदम उठाए। उन्होंने सबसे पहले रुपए का अवमूल्यन किया, जिससे रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले 20% घट गई। इससे भारतीय निर्यात को बढ़ावा मिला। इसके साथ ही, भारत ने अपने 47 टन सोने को गिरवी रखकर आईएमएफ से कर्ज लिया।

आईएमएफ की शर्तों के तहत डॉ. सिंह ने 1991 का ऐतिहासिक बजट पेश किया। इसमें लाइसेंस राज को खत्म कर निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। आयात पर लगी पाबंदियों को हटाया गया और विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोले गए। भारतीय कंपनियों में विदेशी निवेश को 51% तक की अनुमति दी गई। इन सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्वीकरण के मार्ग पर आगे बढ़ाया।

विदेशी कंपनियों के आगमन और निवेश से देश में रोजगार के नए अवसर पैदा हुए। भारतीय उद्योगों को नई दिशा मिली, और देश वैश्विक मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहा। डॉ. मनमोहन सिंह के साहसिक निर्णयों ने भारत को आर्थिक संकट से बाहर निकाला और विकास की नई राह पर अग्रसर किया।

आज, डॉ. मनमोहन सिंह के योगदान को न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया सराहती है। उनका कार्यकाल भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

 


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