दिल्ली में निजी स्कूलों की मनमानी: शिक्षा निदेशालय के निर्देशों की अवहेलना

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (31 मई 2025): दिल्ली में निजी स्कूलों की ओर से शिक्षा निदेशालय (DoE) के दिशा-निर्देशों की खुलेआम अनदेखी ने अभिभावकों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है। एडवोकेट गीत सेठी, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सोशल मीडिया के नेशनल कोऑर्डिनेटर भी हैं, ने इस मुद्दे पर गंभीर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

शिक्षा निदेशालय ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि निजी स्कूलों को अपनी वेबसाइट पर कम से कम पांच अधिकृत विक्रेताओं के नाम, पते और संपर्क विवरण प्रकाशित करने होंगे, ताकि अभिभावक अपनी सुविधा अनुसार किताबें, वर्दी और लेखन सामग्री खरीद सकें। लेकिन सच्चाई यह है कि कई स्कूल या तो यह सूची प्रकाशित ही नहीं कर रहे हैं, या जिन विक्रेताओं के नाम दिए गए हैं, उनके फोन नंबर बंद या गलत हैं। कुछ विक्रेता तो अभिभावकों से सीधे स्कूल परिसर में ही किताबें खरीदने की बात कह रहे हैं, जो कि स्पष्ट रूप से निदेशालय के नियमों का उल्लंघन है।

इसके अलावा, स्कूल परिवहन शुल्क को लेकर भी पारदर्शिता नहीं बरत रहे हैं। नियमों के अनुसार, स्कूल केवल वास्तविक लागत के आधार पर ही परिवहन शुल्क वसूल सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक छात्र के लिए बस सेवा की वास्तविक लागत ₹1000 है, तो स्कूल को इससे अधिक शुल्क लेने का कोई अधिकार नहीं है। बावजूद इसके, कई स्कूल मनमाने तरीके से अधिक शुल्क वसूल रहे हैं, जिससे अभिभावकों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा है।

एडवोकेट गीत सेठी ने कहा कि यह न केवल अभिभावकों के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि शिक्षा के मूल उद्देश्य को भी विकृत करता है। उन्होंने सरकार से अपील की है कि ऐसे नियम उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर सख्त कार्रवाई की जाए और अभिभावकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए।

उन्होंने यह भी उजागर किया कि कई निजी स्कूल ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लिए आरक्षित 25 प्रतिशत सीटों का सही तरीके से आवंटन नहीं कर रहे हैं। सरकारी जमीनें इन्हीं शर्तों पर उन्हें रियायती दरों पर दी जाती हैं, लेकिन ये स्कूल लाखों रुपये की बचत करते हुए, उन शर्तों का पालन नहीं कर रहे। साथ ही, अन्य माध्यमों से भी भारी मात्रा में धन अर्जित कर रहे हैं, जो शिक्षा को एक व्यावसायिक गतिविधि बना रहा है।

इस पूरी स्थिति ने शिक्षा के क्षेत्र में गहराते व्यावसायीकरण और नियामक संस्थाओं की निष्क्रियता को उजागर किया है। यह आवश्यक हो गया है कि सरकार और शिक्षा विभाग इस विषय पर सख्त रुख अपनाएं, ताकि शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी, सुलभ और न्यायसंगत बनाया जा सके।


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