नई दिल्ली (12 दिसंबर 2024): राज्यसभा में विपक्ष के नेता एवं कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सभापति पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र तब ही मजबूत होता है जब सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों का समान स्थान हो। खड़गे ने यह आरोप भी लगाया कि इस समय राज्यसभा में विपक्ष की आवाज़ को दबाने के लिए सत्ता पक्ष द्वारा जानबूझकर संसदीय नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है। उन्होंने अपने बयान में दस प्रमुख बिंदु रखे, जिनमें सभापति के पक्षपाती रवैये और संसदीय मर्यादाओं के हनन का जिक्र किया गया है।
1. विपक्ष की आवाज़ दबाने की कोशिश: खड़गे ने आरोप लगाया कि सभापति विपक्ष के सदस्यों को अपनी बात रखने का मौका नहीं देते। वे विपक्ष से बिना कारण प्रमाण मांगे, जबकि सत्तापक्ष के सदस्यों को बिना रोक-टोक अपनी बात रखने की पूरी आज़ादी दी जाती है।
2. सदस्यों का मनमाना निलंबन: सभापति ने कई विपक्षी सदस्यों को अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित किया, जो संसदीय परंपराओं के खिलाफ था। कुछ मामलों में सत्र समाप्त होने के बाद भी निलंबन जारी रखा गया।
3. विपक्षी नेताओं की आलोचना: खड़गे ने कहा कि सभापति ने कई बार सदन के बाहर भी विपक्षी नेताओं की आलोचना की और भाजपा के पक्ष में बयान दिए, जो उनके पद की निष्पक्षता का उल्लंघन है।
4. सत्ता पक्ष की चापलूसी: उन्होंने आरोप लगाया कि सभापति प्रधानमंत्री की बिना आलोचना किए तारीफ करते हैं और विपक्षी वॉकआउट पर भी टिप्पणी करते हैं, जो संसदीय परंपरा का हिस्सा है।
5. भाषणों का अकारण खंडन: खड़गे ने बताया कि सभापति विपक्षी नेताओं के भाषणों के महत्वपूर्ण हिस्सों को मनमाने तरीके से और दुर्भावनापूर्ण ढंग से हटा देते हैं, जबकि सत्ता पक्ष के विवादास्पद बयान रिकॉर्ड पर रहते हैं।
6. रूल 267 का दुरुपयोग: सभापति ने विपक्षी सांसदों के नोटिसों को अस्वीकार किया, जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों को इसका फायदा दिया गया।
7. संसद टीवी का पक्षपाती कवरेज: संसद के प्रसारण में विपक्षी नेताओं के आंदोलनों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाता है और सत्ता पक्ष के पक्ष में पूरी कवरेज दी जाती है, खड़गे का यह आरोप है।
8. चर्चाओं का अभाव: राज्यसभा में अब कम ही Calling Attention और Short Duration Discussions हो रहे हैं। UPA सरकार के दौरान ये चर्चाएँ नियमित रूप से होती थीं, अब यह प्रक्रिया बंद हो गई है।
9. मनमाने निर्णय: सभापति ने कई फैसले बिना किसी सलाह-मशवरे के लिए, जैसे कि प्रतिमा स्थानांतरण और सुरक्षा व्यवस्थाओं में बदलाव, जिनका कोई भी सामान्य सांसद से विचार नहीं किया गया।
10. मंत्रियों के बयान पर सवालों का न रोका जाना: राज्यसभा में अब मंत्रियों के बयानों पर स्पष्टीकरण पूछने की परंपरा समाप्त कर दी गई है, जो एक महत्वपूर्ण संसदीय प्रक्रिया थी।
खड़गे ने इन आरोपों के साथ स्पष्ट किया कि विपक्ष संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए हमेशा खड़ा रहेगा, और कोई भी दबाव उसे अपनी बात रखने से रोक नहीं सकता।।
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